पटना: नीतीश कुमार के परिवारवाद को लेकर दिए बयान पर बिहार में सियासत गर्म है. इस बीच राज्य में जन सुराज यात्रा पर निकले चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने नीतीश कुमार पर बड़ा वार किया है. उन्होंने कहा है कि नीतीश कुमार जब जहां पर जाना होता है, वे उस हिसाब से बात करते हैं. […]
पटना: नीतीश कुमार के परिवारवाद को लेकर दिए बयान पर बिहार में सियासत गर्म है. इस बीच राज्य में जन सुराज यात्रा पर निकले चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने नीतीश कुमार पर बड़ा वार किया है. उन्होंने कहा है कि नीतीश कुमार जब जहां पर जाना होता है, वे उस हिसाब से बात करते हैं. जब उन्हें भारतीय जनता पार्टी की तरफ जाना होगा तो वे परिवारवाद की बात करने लगेंगे.
वहीं, जब उन्हें बीजेपी छोड़कर लालू प्रसाद यादव की ओर जाना होगा तो उन्हें संप्रदायवाद दिखने लगेगा. बता दें कि नीतीश कुमार ने बुधवार (24 जनवरी) को पटना में कर्पूरी ठाकुर की 100वीं जयंती पर आयोजित कार्यक्रम में कहा था कि हमने भी कर्पूरी जी से ही सीख कर कभी परिवारवाद की राजनीति नहीं की. आजकल तो लोग अपने परिवार को ही राजनीति में आगे बढ़ाते हैं.
प्रशांत किशोर ने आगे कहा कि नीतीश कुमार को खुद नहीं पता है कि वे कहां रहेंगे. उन्होंने कहा कि नीतीश अपने राजनीतिक जीवन के अंतिम दौर में पहुंच गए हैं. सामाजिक-राजनीतिक तौर पर भी नीतीश कुमार का इस वक्त अंतिम दौर चल रहा है. वे अब छटपटाहट में कभी दाएं, कभी बाएं कर रहे हैं, लेकिन उससे कुछ होने वाला नहीं है. अगर अभी चुनाव हो तो नीतीश कुमार को बिहार की जनता उनकी राजनीतिक औकात दिखा देगी. मैंने आजतक चुनाव को लेकर जो भी भविष्यवाणी की है, उसमें शायद ही कभी कोई भविष्यवाणी गलत हुई होगी. महागठबंधन में भी अगर नीतीश कुमार चुनाव लड़ेंगे तो उनके दल जेडीयू को 5 सीटें भी नहीं मिलने वाली हैं और ये बात उनके दल के लोग भी समझ रहे हैं. इसलिए भगदड़ होनी तय है. अब इस भगदड़ में नेता भागते हैं या फिर उसमें नीतीश कुमार खुद भाग जाते हैं इसका कोई भरोसा नहीं है.
प्रशांत ने आगे कहा कि नीतीश कुमार की घबराहट बिल्कुल दिख रही है, वे ऊपर से कुछ भी कहें. जनता ने अब नीतीस का साथ छोड़ दिया है, बिहार में जनता दल (यूनाइटेड) को वोट देने वाला अब बचा ही कौन है. नीतीश लोकसभा से पहले हाथ-पैर मारकर कोई रास्ता निकालने की कोशिश कर रहे हैं. लेकिन अगर वे लोकसभा से पहले नहीं भी गए तो आप सब ये लिखकर रखिए कि बिहार में महागठबंधन की स्थिति बदलेगी ही बदलेगी. ये व्यवस्था बहुत दिनों तक चलेगी तो लोकसभा चुनाव तक चलेगी. लोकसभा में जब ये लोग हारेंगे तो फिर भागना, तोड़ना शुरू हो जाएगा.