नई दिल्ली. नरेन्द्र मोदी का जीवन यूं तो इतने सालों से सार्वजनिक तौर पर कट रहा है कि रोजमर्रा की बातें छुपाना मोदी के लिए मुमकिन नहीं हो पाता. लेकिन उनको करीब से जानने वाले ये मानते आए हैं कि मोदी की राजनीति प्रतीकों के इर्दगिर्द काफी घूमती है। मोदी के मन में क्या चल रहा है उसकी थाह लेना भले ही मुमकिन ना हो लेकिन उसका अनुमान जरूर लगाया जा सकता है. 26 फरवरी को पाकिस्तान पर हुआ एयर स्ट्राइक भी मोदी के प्रतीकों की राजनीति की स्टडी करने वालों के लिए शोध का विषय हो सकता है.
आप सबने 24 फरवरी को मोदी की कुम्भ यात्रा की वो दो तस्वीरें जरूर देखी होंगी, एक जिसमें मोदी कुम्भ के आयोजन में लगे सफाई कर्मचारियों के पांव पखार रहे हैं, तौलिए से उन्हें पौंछ रहे हैं, इसका क्या मैसेज करोड़ों दलितों के दिलों में गया होगा, ये राजनैतिक पंडित बखूबी समझते हैं. लेकिन दूसरी तस्वीर ज्यादा चौंकाने वाली थी, वो थी गंगा में डुबकी लगाने की. लोगों ने मजाक उडाया कि मोदी पठानी सूट में गंगा में क्यों उतरे, कोट पहनकर क्यों नहाए वगैरह वगैरह. लेकिन तमाम सोशल मीडिया ग्रुप खास तौर पर कट्टर हिंदू ग्रुप इस वीडियो को लेकर कुछ और चर्चा कर रहे थे, वो ये कि मोदी गले में रुदाक्ष की माला को लेकर क्या बुदबुदा रहे थे. बहुत कम लोगों को पता होगा कि इंदिरा गांधी की मौत के बाद उनकी अंतिम इच्छा के मुताबिक सोनिया गांधी भी एम्स से बीच में घर आईं थीं ताकि उनकी रुद्राक्ष की माला को उनके शव के गले में पहनाया जा सके.
लेकिन जब 26 फरवरी का अटैक हुआ तो उन्हीं हिंदू ग्रुप्स में मोदी के काले लबादे को लेकर भी चर्चा हुई कि क्या मोदी ने अघोरियों वाले कपड़े पहने थे? क्या मोदी गंगा की गोद में 2 रोज पहले रुद्राक्ष की माला हाथ में लेकर बुदबुदाते हुए कुछ संकल्प ले रहे थे. उसके बाद अगले रोज मोदी वार मेमोरियल का उदघाटन कर रहे थे और मौके पर मौजूद कुछ जीवित परमवीर चक्र विजेता उनकी तारीफों के पुल बांध रहे थे और सारे टीवी चैनल्स भी. उस वक्त मोदी के दिमाग में कुछ भी चल रहा होगा, वो भी किसी के लिए समझना खासा मुश्किल था. लेकिन उस दिन मोदी के साथ तीनों सेनाओं के प्रमुखों और रक्षा मंत्री की उस तस्वीर को लेकर मीडिया ने 26 फरवरी को डिसकस किया कि क्या वो तस्वीर प्रतीक के तौर पर मीडिया के सामने पेश की गई?
26 फरवरी को क्यों चुना? इसका खुलासा कभी नहीं होगा. लेकिन उसी दिन रवीना टंडन ने मोदी के करीबी एक पत्रकार की ट्वीट को रिट्वीट किया कि कैसे मोदी ने वीर सावरकर की पुण्यतिथि को इस अटैक के लिए चुना था. आज की आधी पीढी सावरकर को एक कट्टर हिंदू आइकॉन के तौर पर जानती है, शाह अपने दफ्तर में चाणक्य के साथ सावरकर की तस्वीर लगाते हैं, अटलजी सावरकर पर लम्बा भाषण देते हैं. लेकिन राजनीति के इस पक्ष के लिए सावरकर क्या है, ये समझना और समझाना काफी मुश्किल है. सो लम्बी बहस को यहीं छोड़ते हैं.
बात प्रतीकों की है, तो अगर इसे संयोग मान लिया जाए कि मोदी ने सावरकर की पुण्य तिथि को एयर स्ट्राइक के लिए चुना था, तो लोग शायद यकीन ना करें. लेकिन जो इस विचार के हैं, उनका ये धारणा पक्की हो गई है कि मोदी ने जानबूझकर ये दिन चुना था. उसकी वजह एक दूसरी भी है, मोदी का उसी दिन दुनियां की सबसे बड़ी गीता प्रति के अनावरण समारोह में जाना, यानी अटैक वाले दिन ही, 26 फरवरी को ही. ऐसे में बहुतों के दिलों में ये ख्याल आ सकता है कि आखिर इन दोनों बातों में क्या कनेक्शन हो सकता है?
भाजपा के नेता और मोदी भले ही गांधीजी को तमाम मौकों पर याद करते हैं, लेकिन सावरकर को भी वो पूरा सम्मान करते आए हैं. गांधीजी भी सावरकर भाइयों के मित्र थे, लेकिन कुछ मुद्दों को लेकर उनके मतभेद थे और ये मतभेद हुए थे हिंदुओं के पवित्र ग्रंथ गीता की एक व्याख्या को लेकर. दरअसल ये शायद 1909 की बात है, जिस साल सावरकर के शिष्य मदनलाल धींगरा ने लंदन में ब्रिटिश अधिकारी कर्नल वायली की गोली मारकर हत्या कर दी थी. श्यामजी कृष्ण वर्मा ने लंदन में इंडिया हाउस बनवाया था, जिसमें अक्सर क्रांतिकारी शरण पाते थे, सावरकर भी उन्ही की छात्रवृत्ति पर लंदन गए थे और इंडिया हाउस में रहते थे, वहीं रहकर ब्रिटिश लाइब्रेरी में 1857 स्वातंत्र समर, अपनी किताब के लिए फैक्ट्स इकट्ठे कर रहे थे, भारत और विदेश के क्रांतिकारियों को मदद कर रहे थे.
एक शाम साउथ अफ्रीका से गांधीजी लंदन प्रवास के दौरान इंडिया हाउस में रुके, श्याम जी कृष्ण वर्मा और वीर सावरकर से उनकी लम्बी बातचीत हुई. उन दिनों तक गांधी अंग्रेजों के ज्यादा खिलाफ नहीं थे, बल्कि खुद को ब्रिटिश प्रजा मानकर उनसे कानूनों में सुधार चाहते थे, जबकि सावरकर हिंसा के रास्ते अंग्रेजों को बाहर करना चाहते थे, तो सावरकर ने गीता का उदाहरण दिया कि गीता में युद्ध करने को कहा गया है. गांधीजी भी गीता को काफी मानते थे, उनका कहना था कि गीता में मनोवैज्ञानिक रूप से युद्ध करने की, खुद पर विजय प्राप्त करने की, अपनी बुराइयों से लडने की बात है, ना कि हथियार उठाने की. उनकी इस बहस ने उन लोंगों को बीच मतभेद पैदा कर दिए थे. जब गांधीजी ने हैदराबाद के निजाम के खिलाफ सावरकर के आंदोलन को सपोर्ट नहीं किया, तो उन्होंने भी भारत छोड़ो आंदोलन का सपोर्ट नहीं किया. बाद में गांधी हत्या में सावरकर का नाम आया, गिरफ्तार किया गया, कोई सूबूत नहीं मिला, मुकदमा चला, निर्दोष साबित हुए, लेकिन कांग्रेसी हमेशा सावरकर से नफरत करते रहे. नाथूराम गोडसे सावरकर के सम्पर्क में था.
लेकिन गीता की व्याख्या को लेकर अब भी बीजेपी या संघ में शायद ही कोई हो, जो गांधीजी की थ्यौरी को मानता हो, यहां तक इंदिरा गांधी ने भी ना उनकी ब्रह्मचर्य की सलाह मानी थी और ना ही युद्ध ना करने की. खुद गांधीजी दोनों विश्वयुद्धों में अंग्रेंजों की मदद करते रहे थे, कभी एम्बुलेंस कोर बनाकर तो कभी सेना में भर्ती अभियान चलाकर. लेकिन आज गांधीजी का कद सबके दिलोदिमाग में इतना बडा है कि लगभग हर पार्टी या विचार के लोगों ने उन्हें अपनी प्रेरणा मान लिया है, डा. अम्बेडकर की ही तरह.
ऐसे में अगर नरेन्द्र मोदी सावरकर की पुण्यतिथि पर पाकिस्तान के खिलाफ और आतंकवाद के खिलाफ युद्ध जैसा कदम उठाते हैं, एयर स्ट्राइक करते हैं, और उसी दिन गीता से जुड़े समारोह में जाते हैं तो कहीं ना कहीं ये इशारा लगता है कि वो क्या कहना चाह रहे हैं. दिलचस्प बात ये है कि उसी दिन वो गांधी पीस प्राइज के अवॉर्ड फंक्शन में भी जाते हैं, लेकिन सावरकर पर एक ट्वीट भी नहीं करते. शायद इसलिए क्योंकि 26 फरवरी की तारीख की शुरूआत सुबह साढे तीन बजे ही वो एयर स्ट्राइक के जरिए वीर सावरकर के विचार के जरिए, एयर स्ट्राइक के जरिए उनको श्रद्धाजंलि देकर कर चुके थे.
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