मानवाधिकार के समर्थक और दिल्ली हाई कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस राजिंदर सच्चर नहीं रहे. उनका दिल्ली में निधन हो गया. सच्चर कमिटी की रिपोर्ट के बाद वे तेजी से चर्चाओं में आए थे. कांग्रेस सरकार ने उनके नेतृत्व में देश में मसलमानों की स्थिति जानने के लिए एक कमिटी बनाई थी.
नई दिल्ली. भारत में मुसलमानों की सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक पिछड़ेपन की हालत जानने के लिए यूपीए सरकार में बनाई गई सच्चर कमेटी का नेतृत्व करने वाले दिल्ली हाई कोर्ट के पूर्व जस्टिस राजिंदर सच्चर का शुक्रवार को निधन हो गया. राजिंदर सिंह ने 94 वर्ष की उम्र में शुक्रवार को अंतिम सांस ली. वे काफी समय से बीमार थे और दिल्ली के एक अस्पताल में उनका इलाज चल रहा था. राजिंदर सच्चर 6 अगस्त 1985 से 22 दिसंबर 1985 तक चीफ जस्टिस रहे थे.
राजिंदर सच्चर ने 1952 में वकालत शुरू की थी. उन्हें 1970 में दो साल के लिए दिल्ली हाई कोर्ट का एडिशनल जज बनाया गया था. एडिशनल जज के बाद वे दिल्ली हाई कोर्ट के जज बने. राजिंदर सच्चर दिल्ली हाई कोर्ट के अलावा कई राज्यों के कार्यवाहक चीफ जस्टिस रह चुके थे. पूर्व जस्टिस राजिंदर सच्चर का दोपहर 12 बजे के करीब निधन हुआ.
राजिंदर सच्चर मानवाधिकारों के समर्थक थे. 9 मार्च, 2005 को कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने राजिंदर सच्चर के नेतृत्व में एक कमेटी का गठन किया था, जिसे सच्चर कमेटी का नाम दिया दिया गया. सच्चर कमेटी देश में मुस्लिमों की आर्थिक, सामाजिक और शैक्षिक पिछड़ेपन की हालत जानने के लिए गठित की गई थी. 30 नवंबर 2006 को सच्चर कमिटी की 403 पन्नों की रिपोर्ट लोकसभा में पेश की गई थी. इस रिपोर्ट में कहा गया था कि मुस्लिमों की हालत दलितों से भी बदतर है. सच्चर कमिटी में शिक्षाविद् और एएमयू के पूर्व कुलपति सैयद हामिद, सामाजिक कार्यकर्ता ज़फर महमूद भी थे.
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