नई दिल्ली. इंजीनियरिंग क्षेत्र में जाने वाले अधिकतर बच्चों का सपना होता है कि वे देश के सबसे प्रतिष्ठित संस्थान इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (आईआईटी) से पढ़ाई करें. लिमिटेड सीट और टफ कॉम्पिटिशन के चलते भारी संख्या में से कुछ ही छात्र चुनकर आईआईटी पहुंचते हैं. ऐसे में संस्थान को लेकर आए मानव संसाधन विकास मंत्रालय के आकंड़े जरूर आपको चौंका सकते हैं. आकंड़ों के अनुसार, पिछले दो सालों में आईआईटी में दाखिला लेने के बाद 2 हजार 461 छात्रों ने बीच में ही पढ़ाई छोड़ दी है.
इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी जैसे संस्थानों की पढ़ाई छोड़ने वाले छात्रों में करीब 50 फीसदी छात्र पिछड़े वर्ग से आते हैं. जिनमें अनुसूचित जाति (एससी) के 371, अनुसूचित जनजाति (एसटी) के 199 और ओबीसी के 601 छात्र शामिल हैं. दिल्ली आईआईटी के 782 छात्र बीच में ही ड्रॉप आउट कर चुके हैं जो सर्वाधिक हैं. जिसके बाद आईआईटी खड़गपुर के 622 और आईआईटी बोम्बे के 263 छात्रों ने पढ़ाई छोड़ी है. पोस्ट ग्रेजुएट और पीएचडी कोर्सेज के सबसे ज्यादा छात्रों ने पढ़ाई छोड़ी है. बता दें कि इन कोर्सों में सालाना 13 हजार से अधिक छात्रा आईआईटी में प्रवेश करते हैं.
आईआईटी जैसे बड़े संस्थान से भी ड्रॉप आउट को लेकर मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने कई कारण बताए. उन्होंने कहा कि बीच में पढ़ाई छोड़ने की व्यक्तिगत, पीजी कोर्सेज के दौरन प्लेसमेंट, विदेश में हायल स्टडी या मेडिकल समेत कई वजहें हो सकती हैं. साथ ही केंद्रीय मंत्री पोखरियाल ने कहा कि ग्रेजुएट प्रोग्राम में डॉप आउट की वजह कॉलेज का गलत चुनाव, खराब शैक्षणिक प्रदर्शन भी हो सकती है.
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