नई दिल्ली: मई 2014 तक, भारत में खुदरा महंगाई दर 8.33% थी, जो कि विश्व बैंक के अनुसार 111वें स्थान पर थी. इसका मतलब है कि भारत में रहने वाले लोगों को अपने लिए आवश्यक वस्तुओं और सेवाओं के लिए पहले से कहीं अधिक पैसे खर्च करने पड़ रहे थे. भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के […]
नई दिल्ली: मई 2014 तक, भारत में खुदरा महंगाई दर 8.33% थी, जो कि विश्व बैंक के अनुसार 111वें स्थान पर थी. इसका मतलब है कि भारत में रहने वाले लोगों को अपने लिए आवश्यक वस्तुओं और सेवाओं के लिए पहले से कहीं अधिक पैसे खर्च करने पड़ रहे थे. भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के आंकड़ों के अनुसार, भारत में 2023-24 की चौथी तिमाही में (अक्टूबर-दिसंबर) खुदरा महंगाई दर 6.61% रही. यह पिछले साल 6.95% थी जो पिछले साल इसी अवधि की तुलना में कम है, लेकिन फिर भी RBI के 6% के लक्ष्य से अभी भी ऊपर है.
2004 में जब मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बने तक उपभोक्ता कीमतों के आधार पर महंगाई दर 3.76 % थी, मनमोहन सिंह के शासनकाल में 2005 में महंगाई दर 4.24, 2006 में 5.79, 2007 में 6.37, 2008 में 8.34, 2009 में 10.88, 2010 में 11.98, 2011 में 8.85, 2012 में 9.31, 2013 में 11.06 और 2014 में 6.65 % रही. मनमोहन सिंह के शासनकाल में 2009, 2010 और 2013 ऐसे साल रहे जब महंगाई दर 10 से भी ज्यादा रही. वहीं मनमोहन सिंह के 10 साल के शासनकाल के दौरान सिर्फ 2004 और 2005 में ही यह 5 %से नीचे रही.
2014 में उपभोक्ता कीमतों (CPI) के आधार पर भारत में महंगाई दर 6.65 थी, और यही वह साल था जब नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बने. इसके बाद 2015 में महंगाई दर 4.907, 2016 में 4.948, 2017 में 3.328, 2018 में 3.945, 2019 में 3.723 और 2020 में 6.623 % रही. इस तरह देखा जाए तो पीएम मोदी के शासनकाल में लगातार 5 साल महंगाई दर 5 % के नीचे रही, और 3 साल तो यह 3 % के भी नीचे रही. 2019 के अंतिम दिनों में कोरोना ने दुनिया में अपने पैर फैलाने शुरू किए और 2020 आते-आते पूरी दुनिया इसकी चपेट में आने लगी.
2014 में उपभोक्ता कीमतों (CPI) के आधार पर भारत में महंगाई दर 6.65 थी, यही वह साल था जब नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बने. इसके बाद 2015 में महंगाई दर 4.90, 2016 में 4.948, 2017 में 3.328, 2018 में 3.945, 2019 में 3.723 और 2020 में 6.62% रही, 2021 में 5.51% रही, 2022 में 5.51%, 2023 में 5.51%. इस तरह देखा जाए तो पीएम मोदी के शासनकाल में लगातार 5 साल महंगाई दर 5 फीसदी के नीचे रही, और इन सालों में 4 बार 5% से ऊपर के दर से बढ़ी.
जुलाई 2004 में पेट्रोल 36.81 रुपये/लीटर और डीजल 22.74 रुपये/लीटर था, जबकि कच्चे तेल की कीमत 41.51 डॉलर/बैरल थी. जून 2014 तक पेट्रोल की कीमत 71.51 रुपये/लीटर और डीजल की कीमत 55.49 रुपये/लीटर हो गई, जो क्रमशः 94% और 143% की वृद्धि है. हालांकि, इस दौरान कच्चे तेल की कीमत भी लगभग ढाई गुना बढ़कर 109.55 डॉलर/बैरल हो गई.
जून 2014 से आज (8 जनवरी 2024) तक पेट्रोल की कीमत 25.21 रुपये/लीटर (35%) और डीजल की कीमत 34.13 रुपये/लीटर (61%) बढ़ी है। हालांकि, इस दौरान कच्चे तेल की कीमत में लगभग 44% की गिरावट आई है.
कुल मिलाकर, कच्चे तेल की कीमतों में बदलावों को ध्यान में रखते हुए दोनों सरकारों का प्रदर्शन लगभग बराबर लगता है. यूपीए और एनडीए के कार्यकाल में दोनों ही पेट्रोल और डीजल की कीमतों में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, हालांकि अंतरराष्ट्रीय बाजार के उतार-चढ़ाव का भी इसमें बड़ा योगदान रहा है. एनडीए के कार्यकाल में कच्चे तेल की कीमतों में कमी के बावजूद पेट्रोल और डीजल की कीमतों में इजाफा हुआ है, जिसके कई कारण हो सकते हैं जैसे कर दरों में बदलाव या घरेलू रिफाइनिंग लागत में वृद्धि.
यह ध्यान रखना जरूरी है कि पेट्रोल और डीजल की कीमतों को प्रभावित करने वाले कारक जटिल और बहुआयामी हैं. सरकार द्वारा लिए गए निर्णयों के अलावा अंतरराष्ट्रीय बाजार की स्थितियां, रुपये-डॉलर विनिमय दर, रिफाइनिंग लागत आदि भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.दोनों सरकारों के कार्यकाल में पेट्रोल और डीजल के दाम बढ़े हैं.
2014 के मार्च में सरकारी तेल कंपनी IOCL के हिसाब से रसोई गैस सिलेंडर पर 410 रुपये का सब्सिडी मिलती थी. मतलब सस्ता गैस मिलता था. मार्च 2015 में मोदी सरकार ने एक नया तरीका अपनाया. गैस पर मिलने वाली सब्सिडी सीधे लोगों के बैंक खातों में डालने लगी. हर साल 12 सिलेंडर तक इस सब्सिडी का फायदा मिलता था. लेकिन कोरोना महामारी के बाद सब बदल गया. धीरे-धीरे सब्सिडी कम होती गई और आखिर में बंद ही हो गई. अब सिर्फ उज्ज्वला योजना के तहत गैस कनेक्शन लेने वालों को ही सब्सिडी मिलती है. बाकी सभी को बिना सब्सिडी, यानी महंगे दाम पर गैस सिलेंडर लेना पड़ता है.
2004: साल की शुरुआत में दिल्ली में एक गैस सिलेंडर की कीमत 261.60 रुपये थी, जो दिसंबर 2004 तक बढ़कर 290.50 रुपये हो गई।
2005: कीमतों में लगातार बढ़ोतरी होती रही और दिसंबर 2005 तक दिल्ली में एक सिलेंडर 372.00 रुपये का हो गया।
2006-2008: इस अवधि में अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट के कारण रसोई गैस के दामों में भी कमी आई। दिसंबर 2008 तक दिल्ली में एक सिलेंडर की कीमत 337.50 रुपये हो गई।
2009-2011: वैश्विक बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में उछाल के कारण फिर से गैस सिलेंडर महंगे हो गए। दिसंबर 2011 तक दिल्ली में एक सिलेंडर की कीमत 489.50 रुपये हो गई।
2012-2014: सरकार ने रसोई गैस पर सब्सिडी बढ़ा दी, जिससे कीमतों में कुछ स्थिरता आई। दिसंबर 2014 तक दिल्ली में एक सिलेंडर की कीमत 410.50 रुपये थी।
2014 जनवरी: 410.5 रुपये
2015 दिसंबर: 548.5 रुपये
2017 दिसंबर: 608.5 रुपये
2019 दिसंबर: 581.25 रुपये
2021 दिसंबर: 849.50 रुपये
2023 दिसंबर: 903 रुपये
2014 जनवरी: 410.5 रुपये (पूरी सब्सिडी)
2015 दिसंबर: 203.10 (आंशिक सब्सिडी)
2016 दिसंबर: 202.25 (आंशिक सब्सिडी)
2017 दिसंबर: 214.50 (आंशिक सब्सिडी)
2018 दिसंबर : 180.50 (आंशिक सब्सिडी)
2019 दिसंबर: 256.25 (आंशिक सब्सिडी)
2020 दिसंबर: 247.50 (आंशिक सब्सिडी)
2021 दिसंबर: 151.50 (आंशिक सब्सिडी)
2023 दिसंबर: 0 रुपये (कोई सब्सिडी नहीं, PAHAL योजना के तहत प्रत्यक्ष लाभ अंतरण)
बिना सब्सिडी के कीमतों में 2014 से 2023 के बीच 168% की भारी वृद्धि हुई है. सब्सिडी का स्तर समय के साथ कम होता गया है और दिसंबर 2023 से इसे पूरी तरह से हटा दिया गया है. PAHAL योजना के तहत अब सब्सिडी सीधे लाभार्थियों के बैंक खातों में जमा की जाती है, जिससे सिलेंडर की बाजार कीमत से उनकी खरीद में मदद मिलती है.
सब्सिडी की कमी घरेलू एलपीजी के लिए सीमित थी। गैर-घरेलू उपभोक्ताओं को शुरू से ही बाजार मूल्य पर एलपीजी खरीदनी पड़ती है. एलपीजी की घरेलू खपत पर अब तक सीमा निर्धारित है, आमतौर पर प्रति परिवार/वर्ष 12 सिलेंडर। सीमा से अधिक सिलेंडर गैर-सब्सिडी वाले बाजार मूल्य पर खरीदे जाते हैं.
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