नई दिल्ली, 25 जुलाई 2022 को भारत के वर्तमान राष्ट्रपति का कार्यकाल पूरा होने जा रहा है. जल्द ही भारत अपना अगला और 16वां राष्ट्रपति भी चुन लेगा. इससे पहले की नए राष्ट्रपति का चुनाव है आपके लिए ये जानना जरूरी है की आखिर भारत में राष्ट्रपति कैसे चुना जाता है? कौन इसके लिए वोट […]
नई दिल्ली, 25 जुलाई 2022 को भारत के वर्तमान राष्ट्रपति का कार्यकाल पूरा होने जा रहा है. जल्द ही भारत अपना अगला और 16वां राष्ट्रपति भी चुन लेगा. इससे पहले की नए राष्ट्रपति का चुनाव है आपके लिए ये जानना जरूरी है की आखिर भारत में राष्ट्रपति कैसे चुना जाता है? कौन इसके लिए वोट करता है और वोटिंग की क्या प्रक्रिया होती है? आइये आज आपको भारत के राष्ट्रपति चुनाव की पूरी प्रक्रिया के बारे में समझने में मदद करते हैं.
भारत जल्द ही अपना 16वां राष्ट्रपति चुनने जा रहा है. जहां 25 जुलाई को भारत के मौजूदा राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद का कार्यकाल आधिकारिक रूप से समाप्त हो जाएगा. आज हम आपको महज तीन प्रश्नों के माध्यम से भारत के राष्ट्रपति चुनाव की पूरी प्रक्रिया को समझाने का प्रयास करेंगे. आज हम आपको जो भारत में राष्ट्रपति चुनाव की जो प्रक्रिया बताने जा रहे हैं यही हमेशा से राष्ट्रपति चयन का आधार रही है अर्थात भारत में हमेशा से इसी प्रक्रिया द्वारा राष्ट्रपति चुनाव होता आया है. तो चलिए जानते हैं तीन मुख्य बिंदु.
कैसा होगा अगर हम आपसे कहें कि भारत का राष्ट्रपति भी आप ही यानी जनता चुनती है? आपके मन में यह सवाल आएगा कि राष्ट्रपति के लिए किसी तरह के कोई चुनाव नहीं करवाए जाते, फिर ऐसा कैसे संभव है. दरअसल राष्ट्रपति चुनने की प्रक्रिया में भारत के नागरिक अप्रत्यक्ष रूप से हिस्सा लेते हैं. राष्ट्रपति कौन होगा इसका फैसला जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधि (विधायक और सांसदों) द्वारा ही किया जाता है. संविधान में इस बात का ज़िक्र है कि भारत का राष्ट्रपति कैसे चुना जाएगा.
इस संबंध में अनुच्छेद 54 कहता है कि राष्ट्रपति का चुनाव इलेक्टोरल कॉलेज यानी निर्वाचन मंडल द्वारा किया जाएगा. बता दें, निर्वाचन मंडल का गठन राष्ट्रपति और उप राष्ट्रपति दोनों के चुनाव के लिए किया जाता है. जहां इस मंडल के सदस्य लोकसभा व राज्यसभा के सांसद तथा विभिन्न राज्यों की विधानसभा के विधायक होते हैं जो राष्ट्रपति चुनाव से पहले विधायक बने हो. ये सब सदस्य राष्ट्रपति के चुनाव के लिए मतदान करते हैं. जहां इनका प्रतिनिधित्व अनुपातिक होता है. इस प्रक्रिया को सिंगल ट्रांसफरेबल वोट सिस्टम कहते हैं जो किसी आम चुनाव से अलग है. आइये आपको समझाते हैं की आखिर यह सिंगल ट्रांसफरेबल वोट सिस्टम क्या है?
वह सभी सदस्य जो राष्ट्रपति चुनाव में अपना मत देने वाले हैं वो इस प्रक्रिया के द्वारा ही अपना मत देते हैं. इस प्रक्रिया के अंतर्गत काफी ख़ास तरीके से वोटिंग की जाती है. जहां प्रत्येक सदस्य चुनाव में हिस्सा ले रहे तमाम उम्मीदवारों में से अपनी पहली, दूसरी और तीसरी पसंद बैलट पेपर में लिखकर बता देते हैं.
अब तीन स्तरों पर सभी उम्मीदवारों को मत मिलते हैं. जहां से पहली पसंद वाली सूची में यदि कोई उम्मीदवार बहुमत हासिल करता है तो वह जीत जाता है और अगर ऐसा नहीं भो पता तो उन उम्मीदवारों को दूसरी पसंद के खाते में ट्रांसफर कर दिया जाता है जिन्हें अधिक वोट हासिल हुए हैं. और सबसे कम मत मिलने वाले को इस प्रथम सूची से निकाल दिया जाता है. वहीं वोटर की दूसरी पसंद को नए सिंगल वोट की तरह ट्रांसफर कर दिया जाता है. इस प्रकार अंत में सबसे अधिक वोट पाने वाले को राष्ट्रपति पद के लिए आगे किया जाता है. इसी प्रक्रिया को सिंगल ट्रांसफरेबल वोट सिस्टम कहते हैं.
राष्ट्रपति को चुनने की इस प्रक्रिया में केवल वह विधायक और सांसद भाग लेते हैं जो आम चुनावों में जनमत द्वारा चुनकर आते हैं. अब आप सोच रहे होंगे कि क्या ऐसे भी सदस्य विधानसभा और संसद का भाग होते हैं जिन्हें जनता नहीं चुनती? आपको बता दें, राज्य सभा में कुल 12 सदस्य मनोनीत होते हैं. यह 12 सांसद कला, साहित्य, पत्रकारिता, विज्ञान और सामाजिक क्षेत्र से आते हैं जिनका चुनाव खुद राष्ट्रपति करता है. इसलिए यह मनोनीत सदस्य राष्ट्रपति चुनाव में भाग नहीं लेते.
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