कैसे होती है महंगाई दर की गणना, उपभोक्ता मूल्य सूचकांक और थोक मूल्य सूचकांक में अंतर समझें

नई दिल्ली: महंगाई दर का मतलब है कि किसी देश में सामान और सेवाओं की कीमतें एक समय से दूसरे समय में कितनी बढ़ गई हैं. किसी भी देश की महंगाई दर को कैलकुलेट करने के लिए Consumer Price Index (CPI) का इस्तेमाल किया जाता है. CPI एक सूचकांक है जो सामान और सेवाओं की […]

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कैसे होती है महंगाई दर की गणना, उपभोक्ता मूल्य सूचकांक और थोक मूल्य सूचकांक में अंतर समझें

Vaibhav Mishra

  • January 9, 2024 2:34 pm Asia/KolkataIST, Updated 10 months ago

नई दिल्ली: महंगाई दर का मतलब है कि किसी देश में सामान और सेवाओं की कीमतें एक समय से दूसरे समय में कितनी बढ़ गई हैं. किसी भी देश की महंगाई दर को कैलकुलेट करने के लिए Consumer Price Index (CPI) का इस्तेमाल किया जाता है. CPI एक सूचकांक है जो सामान और सेवाओं की कीमतों में होने वाले बदलाव को मापता है.

CPI (Consumer Price Index) यानी उपभोक्ता मूल्य सूचकांक

ये एक तरह से ये बताता है कि रोजमर्रा की चीज़ें, जैसे सब्जी, दूध, तेल, साबुन, कपड़े, किराया, आदि कितनी महंगी या सस्ती हुई हैं. ये आम लोगों की नज़र से महंगाई को नापता है. जैसे, अगर CPI 5% बढ़ता है तो इसका मतलब है कि आम लोगों के लिए ज़िंदगी का खर्च 5% बढ़ गया है. मान लीजिए कि साल 2023 में एक किलो गेहूं की कीमत ₹50 थी. 2024 में एक किलो गेहूं की कीमत ₹55 हो गई. इसका मतलब है कि 2024 में गेहूं की कीमतें 2023 की तुलना में 10% बढ़ गई हैं. इससे CPI भी बढ़ेगा. अगर CPI इस साल 5% है तो इसका मतलब है कि पिछले एक साल में सामान और सेवाओं की कीमतें औसतन 5% बढ़ गई हैं.

CPI की गणना करने के लिए, सरकार एक Basket of Goods और Services तैयार करती है. इस Basket में उन सभी सामान और सेवाओं को शामिल किया जाता है जिन्हें आमतौर पर लोग खरीदते हैं. फिर सरकार इन सामान और सेवाओं की कीमतों को समय-समय पर कलेक्ट करती है.

WPI (Wholesale Price Index) यानी थोक मूल्य सूचकांक

ये एक तरह से बताता है कि थोक में बिकने वाली चीज़ें, जैसे अनाज, तेल, मशीन, आदि, कितनी महंगी या सस्ती हुई हैं. ये थोक व्यापारियों और उद्योगों की नज़र से महंगाई को नापता है. WPI में बदलाव का असर CPI पर भी पड़ता है, क्योंकि थोक में महंगी हुई चीज़ें कुछ समय बाद दुकानों में भी महंगी हो जाती हैं. मान लीजिए, पिछले साल एक फैक्ट्री 100 रुपये में 1 किलो स्टील खरीदती थी. इस साल, उसे उसी 1 किलो स्टील के लिए 120 रुपये देने पड़ते हैं. इसका मतलब है कि स्टील की थोक कीमत 20% बढ़ गई है, और WPI भी बढ़ेगा. कुछ समय बाद, स्टील से बनी चीज़ें, जैसे बर्तन, गाड़ियां, आदि, भी महंगी हो जाएंगी. जिससे CPI भी बढ़ेगा.

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