नई दिल्लीः गण्डकी नदी को भगवान विष्णु की प्रिया कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि जो भी पत्थर इस नदी में आता है वह भगवान विष्णु का रूप शालिग्राम बन जाता है। लेकिन क्या आपको पता है कि गण्डकी नदी एक नदी का रूप लेने से पहले वेश्या हुआ करती थी। आज हम […]
नई दिल्लीः गण्डकी नदी को भगवान विष्णु की प्रिया कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि जो भी पत्थर इस नदी में आता है वह भगवान विष्णु का रूप शालिग्राम बन जाता है। लेकिन क्या आपको पता है कि गण्डकी नदी एक नदी का रूप लेने से पहले वेश्या हुआ करती थी। आज हम आपको इसकी संपूर्ण कथा बताते हैं।
पौराणिक कथा के अनुसार एक समय में गण्डकी नाम की वेश्या रहती थी, जो अपने शरीर को बेचकर जीवन जीती थी। एक बार उस गांव में महात्मा आए। वह लोगों धर्म का ज्ञान देते थे। वैश्या भी महात्मा के पास गई। महात्मा ने उसे बोला कि पुत्री तुम यह वेश्यावृत्ति का काम छोड़ दो। गण्डकी ने बोला प्रभु मैं यह काम नहीं छोड़ सकती क्योकि मुझे इसकी आदत है। तब महात्मा ने कहा फिर तुम ऐसा करो, जो भी पुरुष तुम्हारे पास आये, उसे एक रात के लिए अपना पति मान लो। पूरी रात उस पुरुष की पति की तरह सेवा करो।
इसके बाद महात्मा से अनुमति लेकर गण्डकी अपने घर आ गई और अगले दिन से जो भी पुरुष उसके पास आता, वह पूरी रात उसके साथ पत्नी की तरह व्यवहार करती। खुद खाने से पहले वह पुरुष को खाना खिलाती और उसके बाद ही खुद खाना खाती। समय ऐसे ही बीतता गया और एक दिन भगवान विष्णु उस वेश्या की परीक्षा लेने के लिए पुरुष के वेश में आए। गंडकी ने उनका बहुत आदर-सत्कार किया। उसके बाद उसने मानव रूपी विष्णु जी के साथ पत्नी की तरह व्यवहार किया। फिर दोनों सो गए। सुबह होते ही अचानक विष्णु जी को सिर में दर्द होने लगा और कुछ देर बाद मानव रूपी विष्णु जी का निधन हो गया।
जब भगवान विष्णु के मनुष्य रूपी शरीर को जलाने के लिए जाया गया तो गण्डकी भी उनके साथ सती होने के लिए गई। फिर जब श्मशान में शव को चिता पर रखा गया तो वह वेश्या भी शव को गोद में लेकर चिता पर बैठ गई। यह देखकर गांव वाले आश्चर्यचकित हो गए। अंतिम संस्कार करने के बाद चिता से लपटें उठने लगीं। गंडकी मन ही मन भगवान को याद कर रही थी। कुछ देर बाद अचानक भगवान विष्णु अग्नि के बीच में प्रकट हुए और गण्की से बोले, हे पुत्री मैं तुम्हारी भक्ति से प्रसन्न हूं।
विष्णु जी को अपने सामने देखकर वैश्या रोने लगी। तब विष्णु जी ने उसे वरदान दिया- आज से तुम नदी के रूप में धरती पर रहोगी और पूजनीय मानी जाओगी। तब गण्डकी ने कहा प्रभु मेरी एक विनती है, जैसे आप चिता पर मेरी गोद में थे, वैसे ही इस नदी में पत्थर के रूप में रहो। भगवान विष्णु ने उसे आशीर्वाद दिया और कहा, कलयुग के अंत तक मैं शालिग्राम के रूप में गंडकी नदी में निवास करूंगा।
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