Ram Mandir का इतिहास, आज़ादी से पहले कैसे शुरू हुआ विवाद

नई दिल्ली : गुरुवार (5 जनवरी) को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने अयोध्या में तैयार हो रहे राम मंदिर को लेकर बड़ा ऐलान कर दिया है. त्रिपुरा में जनता को संबोधित करते हुए उन्होंने अगले साल की शुरुआत तक राम मंदिर के बनकर तैयार होने की बात कही है. उन्होंने कहा कि 1 जनवरी 2024 को अयोध्या में राम मंदिर तैयार मिलेगा। इस दौरान उन्होंने कांग्रेस पर जमकर निशाना भी साधा और बताया कि जब से देश आज़ाद हुआ तब से ये मामला कोर्ट में ही उलझा रहा था. मोदी जी आए और एक दिन SC का फैसला आया.

कई दशकों बाद बना मंदिर

अमित शाह के ऐलान के बाद राम मंदरी एक बार फिर चर्चा में है. करोड़ों हिंदुओं की आस्था से जुड़े इस मुद्दे पर एक नज़र डालना बेहद जरूरी है. इस मुद्दे ने सैंकड़ों सालों तक पूरे देश को भावनात्मक रूप से अपनी ओर खींचा है. कई राजनीतिक चुनौतियों के बाद अब अयोध्या का राम मंदिर बनकर तैयार होने जा रहा है. बाबरी विवाद, सुप्रीम कोर्ट में लंबी लड़ाई और फिर शीर्ष अदालत का फैसला राम मंदिर का विवाद आज़ादी से भी पुराना है. देश वासियों ने कई दशकों तक इस मंदिर के बनने का इंतज़ार किया है. जो कइयों का बस सपना रहा अगले ही साल यह बकर तैयार होने वाला है. आइए एक नज़र डालते हैं आज़ादी के पहले राम मंदिर के इतिहास पर.

आजादी के पहले

1528 : अयोध्या जो हिन्दुओं के भगवन राम की धरती मानी जाती है वहाँ मस्जिद के निर्माण से ये विवाद शुरू हुआ जिसे बनवाने का आरोप बाबर पर लगा। कहा जाता है कि बाबर की ही शह पर उसके सेनापति मीर बाकी ने मंदिर तोड़कर मस्जिद बनवाई थी.

1853 : 1528 से 1853 तक मुगलों और नवाबों के शासन की वजह से इस मामले में हिंदू बहुत मुखर नहीं हो पाए. मुगलों और नवाबों का शासन कमजोर पड़ने पर अंग्रेजी हुकूमत आई जिसके प्रभावी होने पर हिंदुओं ने इस मामले को फिर उठाया. हिंदू पक्ष ने दावा किया कि भगवान राम के जन्मस्थान मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनाई गई थी. इस विवाद ने हिन्दूओं और मुसलामानों में झगड़ा शुरू कर दिया.

1859 :

अंग्रेजी हुकूमत ने इस मामले में सबसे पहला फैसला दिया. जहां तारों की एक बाड़ खड़ी कर विवादित भूमि के आंतरिक और बाहरी परिसर को विभाजित कर दिया गया. मुस्लिमों तथा हिंदुओं को अलग-अलग पूजा और नमाज की इजाजत दे दी गई.

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