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तो नहीं हो पाती शिकागो पार्लियामेंट ऑफ वर्ल्ड रिलीजंस में स्वामी विवेकानंद की ऐतिहासिक स्पीच

उस सिफारिशी खत में लिखा था, ”Here is a man who is more learned than all our learned professors out together”. यानी सारे अमेरिकी प्रोफेसर्स के ज्ञान को मिला लिए जाए तो भी स्वामी विवेकानंद का ज्ञान उनसे ज्यादा होगा. कहां तो स्वामी विवेकानंद के लिए शिकागो पार्लियामेंट ऑफ वर्ल्ड रिलीजंस के लिए भाग लेना ही मुश्किल हो गया, जब उनको पता चला कि बिना किसी अधिकृत बुलावे या किसी परिचय के इस पार्लियामेंट में इजाजत नहीं मिलेगी और कहां उनके ज्ञान का इतना बखान. ये खत लिखा था हॉवर्ड यूनीवर्सिटी के एक प्रोफेसर ने, जिससे स्वामी विवेकानंद की मुलाकात के बाद उसके ऊपर उनके व्यक्तित्व का जादुई असर हुआ था.

पार्लियामेंट ऑफ वर्ल्ड रिलीजंस 11 से 27 सितम्बर 1893 में शिकागो में हुई, आज उस स्थान पर शिकागो आर्ट इंस्टीट्यूट है. शिकागो के इसी कार्यक्रम में स्वामी विवेकानंद का ऐसा जादू चला कि आज शिकागो की एक रोड का नाम स्वामी विवेकानंद वे रखा गया है. लेकिन उसमें भाग लेना उनके लिए आसान नहीं था. जब उनको पता चला कि सारे धर्मों की एक विश्व धर्म संसद शिकागो में हो रही है, तो उन्होंने तय किया कि हिंदू धर्म के बारे में बाकी विश्व को सही तरीके से बताने का ये बेहतरीन मौका होगा.

बॉम्बे से 31 मई 1893 को स्वामी विवेकानंद अमेरिका के लिए निकले, पानी के जहाज के जरिए इस यात्रा में चीन, जापान और कनाडा उनके पड़ाव थे. चीन के गुआंगझोऊ में उन्होने कई बौद्ध मठों का दौरा किया, पुरानी संस्कृत और बंगाली की पांडुलिपियां देखीं. उसके बाद वो जापान पहुंचे, पहला शहर था नागासाकी, जिसे आज एटम बम की वजह से हर कोई जानता है , जापान के तीन और शहरों का दौरा उन्होंने किया, जिनमें से एक क्योटो भी था, मोदी जी की वजह से जो आज मशहूर हो गया है. बाकी दो शहर थे, ओसाका और टोकियो. उसके बाद वो योकोहामा पहुंचे, जहां से उन्हें कनाडा के लिए शिप लेना था

इसी शिप पर उनकी मुलाकात हुई जमशेतजी टाटा से, वो भी शिकागो जा रहे थे. इस मुलाकात में स्वामी विवेकानंद ने टाटा को दो बड़े सपने दिखाए, प्रेरणा दी और टाटा ने बाद में वो सपने साकार किए. 25  जुलाई को विवेकानंद वेंकूवर पहुंचे, वहां से ट्रेन लेकर 30 जुलाई को वो शिकागो पहुंच गए. लेकिन पार्लियामेंट को शुरू होने में अभी 1 महीने 11 दिन का वक्त था. शिकागो मंहगा शहर था, स्वामी विवेकानंद के पास ज्यादा पैसे नहीं थे, वो थोड़े सस्ते शहर बोस्टन में चले आए. 

वहां वो मिले हॉवर्ड यूनीवर्सिटी में प्रोफेसर और स्कॉलर जॉन हेनरी राइट से, जॉन राइट ने वर्ल्ड हिस्ट्री को 24 वोल्यूम में लिखा है. वो अमेरिकन जनरल ऑफ ऑर्कियोलोजी के चीफ एडीटर भी थे. लेकिन विवेकानंद से मिलकर वो उनके फैन हो गए. स्वामी विवेकानंद 25 से 27 अगस्त तक उनके कहने पर उनके ही घर पर ही बोस्टन में रुके, जब विवेकानंद को ये पता चला कि पार्लियामेंट ऑफ वर्ल्ड रिलीजंस में बिना किसी क्रेडेशिंयल के उसमें हिस्सा नहीं ले सकते हैं तो विवेकानंद ने ये बात राइट से डिसकस की, तो राइट का जवाब था—आप से क्रेडेशिंयल्स मांगना स्वामी बिलकुल ऐसा है जैसे सूरज से उसके चमकने के अधिकार को लेकर पूछना. 

उसके बाद की कहानी जानने के लिए देखिए ये वीडियो स्टोरी-

 

Aanchal Pandey

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