Hindi Diwas 2019: हिंदीवासियों में हिंदी को लेकर इतनी हीन भावना क्यों, क्या आपका स्टैंडर्ड घट जाएगा

Hindi Diwas 2019: हिंदी अब वो नहीं रही जो पहले हुआ करती थी जिसे हम कविताओं, कहानियों, चिट्ठियों और अखबारों में पढ़ा करते थे. हिंदी की हालात अब अंग्रेजी की छोटी बहन जैसी हो गई है. न जाने लोग हिंदी भाषा को लेकर हीन भावना के शिकार क्यों होते जा रहे हैं.

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Hindi Diwas 2019: हिंदीवासियों में हिंदी को लेकर इतनी हीन भावना क्यों, क्या आपका स्टैंडर्ड घट जाएगा

Aanchal Pandey

  • September 13, 2019 8:05 pm Asia/KolkataIST, Updated 5 years ago

नई दिल्ली. 14 सितंबर को देश में हिंदी दवस मनाया जाएगा लेकिन सिर्फ नाम के लिए. भारत की न जाने कितनी यूनिवर्सिटियों के हॉस्टलों में क्रांतिकारी युवा आज हिंदी दिवस मनाने की पूरी तैयारियों में होंगे. क्रांतिकारी इसलिए क्योंकि अब हिंदी का इस्तेमाल भारत में क्रांति करना जैसा ही है. शहर-शहर तो छोड़िए साहब अब तो गांव की गली की चौपाल पर बैठे मुखिया जी भी पोते को अंग्रेजी में बुलवाकर अपना माहौल बनाने लगे हैं. घर-घर में मां अपने बच्चों की अंग्रेजी को लेकर चिंतित है. ऐसी बात नहीं है कि अंग्रेजी खराब भाषा है. दुनिया की आम बोली जाने वाली भाषाओं में अंग्रेजी की अहम भूमिका है. लेकिन हिंदी हमारे देश की पहचान है, अंग्रेजी के लिए अगर ये पहचान खोने लगे तो इससे ज्यादा दुखद और क्या होगा.

चीन की भाषा के बाद दुनिया में सबसे ज्यादा 1 हजार साल पुरानी हिंदी बोली जाती है. हिंदी और उर्दू को जब साथ मिलकर बोलते हैं तो उसे हिंदुस्तानी भाषा कहते हैं. लेकिन अब उर्दू तो छोड़िए लोगों को हिंदी बोलने में शर्म आने लगी है. हैरान करनी वाली बात है कि स्कूलों में अगर बच्चा हिंदी में बात करे तो उसपर जुर्माना लगाया जाता है. मतलब ये तो हद है, आप देश में रहकर एक शिक्षा के मंदिर के भीतर भी अपनी मातृ भाषा नहीं बोल सकते हैं. सिर्फ स्कूल ही क्यों किसी बड़े अस्पताल के रिसेप्शन पर जाकर ड्रेस पहनकर तैयार खड़े जनाब या मोहतरमा से हिंदी में बात करना ऐसा लगता है जैसे आप यहां की नहीं बल्कि किसी दूसरे देश की भाषा बोल रहे हैं.

किसी मॉल में खरीदारी करने गए और किसी शॉरूम के बिल काउंटर पर खड़े हैं तो कई बार आप खुद भी सोचने लगते हैं कि बिल करवाते वक्त अंग्रेजी में क्या-क्या बोलना है. इतना ही नहीं, अगर मैक डॉनाल्ड्स में फूड ऑर्डर कर रहे हैं तो कई बार आस-पास से छूट रहे अंग्रेजी के तीर आपको भी घायल कर देते हैं और समाजिक दबाव में आकर आप भी ऑर्डर टूटी-फूटी अंग्रेजी में करते हैं. ये (आप) सब वे लोग हैं जो खोती जा रही हिंदी के ताबूत में आखिरी कील ठोकने का काम कर रहे हैं.

पहले तो लोग हिंदी को आसान और घरेलु समझना बंद करें. भारत में ज्यादातर जो लोग हिंदी बोलते हैं वो गलत होती है. यानी अधिकतर लोग अंग्रेजी तो गलत बोल ही रहे हैं साथ-साथ हिंदी भी गलत बोल रहे हैं. लोग हिंदी बोलते हुए शब्दों का इस्तेमाल अपनी बोली के अनुसार करते हैं जिसकी वजह से कई बार शब्द ही कुछ और बन जाता है. अच्छी हिंदी लिखना और बोलना भी कोई आसान बात नहीं. जब तक आप हिंदी भाषा को जान ही नहीं पाएंगे तो कैसे उसकी योग्यता का अंदाजा लगा सकते हैं और कैसे उसे स्टैंडर्ड मापने का जरिया बना सकते हैं. हिंदी को लेकर एक कवि ने क्या खूब कही है एक दिन ऐसा भी आएगा हिंदी परचम लहराएगा, इस राष्ट्र भाषा का हर ज्ञाता भारतवासी कहलाएगा.

अब घाटी की हर एक सुबह खूबसूरत होगी !

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