सीएम कैंडिडेट प्रेम कुमार धूमल हारे, बीजेपी हाईकमान के पास अब हैं ये 5 विकल्प

हिमाचल प्रदेश में बीजेपी का परचम लहराने ही वाला है. लेकिन बीजेपी के सामने सबसे बड़ी परेशानी ये आन खड़ी है कि उनका सीएम उम्मीदवार कौन होगा. क्योंकि सीएम कैंडिडेट प्रेम कुमार धूमिल सुजानपुर सीट से हार गये हैं. वरना बीजेपी की जीत के बाद सीएम उनका बनना तय था. लेकिन धूमल की हर के बाद 5 नाम आगे चल रहे हैं जिन्हें सीएम बनाया जा सकता है. अनिल शर्मा, अनुराग ठाकुर, जयराम ठाकुर और जेपी नड्डा को अगले हिमाचल प्रदेश के सीएम के उम्मीदवार हो सकतै हैं.

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सीएम कैंडिडेट प्रेम कुमार धूमल हारे, बीजेपी हाईकमान के पास अब हैं ये 5 विकल्प

Aanchal Pandey

  • December 18, 2017 4:23 pm Asia/KolkataIST, Updated 7 years ago

शिमला. हिमाचल से बीजेपी को एक अच्छी खबर मिली और एक बुरी. पार्टी जीत गई लेकिन पार्टी का सीएम चेहरा हार गया. अब ऐसे में हर जगह बस एक ही चर्चा है कि कौन बनेगा मुख्यंत्री? क्या धूमल अपनी राजनीतिक पारी से ऐसे विदा होंगे, पार्टी जिताकर लेकिन खुद हारकर? क्या जेपी नड्डा को मौका मिलेगा, सीएम बनने का? या अनुराग ठाकुर को भी सीएम बनने का मौका दिया जा सकता है? या फिर कहीं अरुण जेटली जैसा एक्सपेरीमेंट यहां भी कर सकता ही बीजेपी हाईकमान, यानी हारने के बाद भी बैकगेट से सरकार का चेहरा.

दरअसल बैकगेट से यानी बाईपोल के जरिए फिर से प्रेम कुमार धूमल को लाने का फैसला अगर बीजेपी हाईकमान ले सकता है तो इसके पीछे तीन बड़ी वजह हैं. एक तो आखिरी वक्त में ही सही, धूमल को ही सीएम कैंडिडेट घोषित करके वोट मांगा गया था और बीजेपी को राज्य में अच्छी कामयाबी मिली भी है, धूमल ने मेहनत भी काफी की है. अगर धूमल को मौका नहीं दिया गया तो धूमल का राजनीतिक विदाई होना तय है क्योंकि वो 72-73 साल के हो चुके हैं, और ऐसी विदाई कोई नहीं लेना या देना चाहता है, इससे देश भर में पार्टी नेताओं में गलत मैसेज जाएगा. तीसरी और अहम वजह ये है कि प्रेम कुमार धूमल ने सुजानपुर सीट से चुनाव आला नेताओं के कहने पर लडा था, उनकी अपनी सीट तो हमीरपुर सदर थी. चूंकि बीजेपी उस सीट पर कमजोर थी, इसलिए धूमल के नाम के सहारे जीतने की रणनीति के तहत धूमल के ना चाहने पर भी उनकी सीट उनसे ले ली गई थी.

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सुजानपुर सीट वाकई में दिलचस्प है, 2012 में बनी इस सीट से बीजेपी से धूमल के राजनीतिक गुरु जगदेव चंद की बहू उर्मिला ठाकुर चुनाव लडीं थी, और वो बुरी तरह हारकर तीसरी पोजीशन पर रहीं. ये सीट जीती एक निर्दलीय उम्मीदवार राजेन्द्र राणा ने, जिसके राजनीतिक गुरु रहे हैं खुद प्रेम कुमार धूमल, बतौर मीडिया सलाहकार कभी राणा को लाल बत्ती गाड़ी धूमल ने ही दी थी. लेकिन 2010 में शिमला के एक होटल में पुलिस रेड के बाद राणा और धूमल परिवार पर एक सैक्स स्कैंडल के चलते आरोप लगे और दोनों के रिश्ते खराब हो गए. दो साल तक विधायक रहने के बाद राजेन्द्र राणा अनुराग ठाकुर के सामने हमीरपुर लोकसभा सीट से खड़े हुए और 80 हजार वोटों से हार गए.

इधर उनकी छोड़ी सुजानपुर विधानसभा सीट से उनकी पत्नी अनीता राणा कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लडीं, लेकिन उन्हें जगदेव चंद के बेटे नरिंदर ठाकुर ने हरा दिया. हालांकि पिछले दो तीन सालों में राजेन्द्र राणा ने इस सीट पर काफी काम किया और इलाके में उनकी पकड़ काफी अच्छी है. बीजेपी ने सोचा हमीरपुर सदर सीट तो जीती जिताई है, अदलाबदली करते हुए नरिंदर ठाकुर को उस सीट पर भेज दिया और धूमल को कहा कि आप सुजानपुर से लड़िए. धूमल को पार्टी का आदेश मानना पड़ा और अब उसी का खामियाजा वो भुगत रहे हैं, क्योंकि उस सीट पर तो वो ज्यादा वक्त नहीं दे पाए, उलटे पूरे राज्य में भागते रहे.

अगर इन तीन वजहों को भी पार्टी नजरअंदाज करके कोई दूसरा चेहरा चुनती है तो वो चेहरा जेपी नड्डा का हो सकता है. हिमाचल की बीजेपी सरकार में मंत्री रह चुके नड्डा हिमाचल बीजेपी का दूसरा बड़ा चेहरा है, टकराव से बचने के लिए उन्हें केन्द्र की राजनीति में बुलाकर स्वास्थ्य मंत्रालय दे दिया गया था. अमित शाह के करीबी हैं और इस बार सीएम पद के लिए तगड़े उम्मीदवार भी थे, फिर सोचा गया कि धूमल को 75 का होने पर हटाया जा सकता है. ऐसे में अगर धूमल के हारने को बहाना बनाया जाए तो जेपी नड्डा वो पहला चेहरा होंगे, जो हिमाचल का सीएम हो सकता है.

हालांकि लोग कयास लगा रहे हैं कि जिस राजेन्द्र राणा ने धूमल को इस चुनाव में पटखनी दी है, उसे बड़े अंतर से लोकसभा चुनाव में पहले अनुराग ठाकुर हरा चुके हैं. ऐसे में धूमल खुद की राजनीतिक पारी से विदा होने के ऐवज में अपने बेटे के लिए भी सीएम पद मांग सकते हैं. अनुराग युवा मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रह चुके हैं, बीसीसीआई प्रेसीडेंट रह चुके हैं. सार्वजनिक जीवन में सक्रिय रहते हैं और युवा चेहरा भी हैं. लेकिन खुद वो केन्द्र की राजनीति और क्रिकेट के मैनेजमेंट के शौक से निकल कर हिमाचल तक सीमित होना चाहेंगे कि नहीं, ये बस उन्हें पता है.

सबसे दिलचस्प बात ये कि चूंकि हिमाचल में विधान परिषद नहीं है, ऐसे में जो भी सीएम चुना जाएगा, उसे 6 महीने के अंदर विधानसभा का ही सदस्य बनना होगा. जो ना तो अभी प्रेम कुमार धूमल हैं, ना ही अनुराग ठाकुर हैं और ना ही जेपी नड्डा. अनुराग और जेपी नड्डा दोनों संसद सदस्य हैं, ऐसे में उनको तो अपनी सीट खाली करनी प़ड़ेगी ही, एक बीजेपी विधायक को भी अपनी विधानसभा सीट की कुर्बानी उनके लिए देनी होगी. फिर उनकी छोड़ी हुई लोकसभा सीट पर दोबारा से जीतनी होगी. जोकि थोड़ा मुश्किल काम है.

ऐसे में पार्टी के पास एक विकल्प ये बचता है कि इन तीनों ही विकल्पों को बजाय जीते हुए विधायकों में से ही कोई चेहरा चुना जाए. यूं तो बीजेपी की अघोषित रणनीति है कि पार्टी के पीएम और सीएम पद के चेहरों के लिए वो पार्टी या संघ से सालों से जुड़ा हुआ ही कोई चेहरा चुनते हैं, ऐसे में जीतने वाले विधायकों में से किसी एक के नाम पर स्वीकृति बने, ये काम भी आसान नहीं. तो मंडी सीट से जीते अनिल शर्मा का नाम भी सामने आ सकता है, अनिल शर्मा कांग्रेस की वीरभद्र सरकार में रुरल डेवलपमेंट मिनिस्टर रहे हैं. उनके पिता सुखराम का सालों से मंडी सीट पर कब्जा रहा है.

बीजेपी उनकी पार्टी हिमाचल विकास कांग्रेस के साथ मिलकर हिमाचल में सरकार भी चला चुकी है. पिछली दो बार से अनिल शर्मा इस सीट पर कांग्रेस से जीत रहे थे, लेकिन इस बार वो बीजेपी से जीते हैं. सलमान खान की बहन से उनकी बेटे आयुष की शादी हुई है, इसलिए तजुर्बे और कद में वो किसी से कम नहीं, लेकिन बीजेपी या संघ की जड़ों से ना होना उनके लिए नेगेटिव हो सकता है. ऐसे में बीजेपी हाईकमान के पास पांचवा विकल्प हो सकता है हरियाणा जैसा यानी किसी भी प्रचारक को सीएम की कुर्सी पर दिया जा सकता है और हरियाणा के तो कई प्रचारक बीजेपी और संघ की टॉप पोस्ट्स पर काम कर भी रहे हैं. हालांकि ऐसे जयराम ठाकुर जैसे पूर्व केबिनेट मंत्री भी हैं, जो एबीवीपी और युवा मोर्चा से जुड़े रह चुके हैं, और बीजेपी के हिमाचल के प्रदेश अध्यक्ष भी रहे हैं. सो गेंद आलाकमान के हाथ में है कि वो इन पांचों विकल्पों में से चुनता है या और कोई सरप्राइज बाकी है.

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