नई दिल्ली: लेबनान में इजरायली सेना लगातार हिज्बुल्लाह आतंकवादियों का नामोनिशान खत्म करके एक के बाद एक मोर्चे फतह करती जा रही हैं। परंतु लेबनान में आतंकवाादियों के खात्मे की अच्छी खबरों के साथ-साथ भारतीयों के लिए एक बुरी खबर भी सामने आई है। लेबनान में भारत की एक निशानी का वजूद खतरे में दिखाई […]
नई दिल्ली: लेबनान में इजरायली सेना लगातार हिज्बुल्लाह आतंकवादियों का नामोनिशान खत्म करके एक के बाद एक मोर्चे फतह करती जा रही हैं। परंतु लेबनान में आतंकवाादियों के खात्मे की अच्छी खबरों के साथ-साथ भारतीयों के लिए एक बुरी खबर भी सामने आई है। लेबनान में भारत की एक निशानी का वजूद खतरे में दिखाई दे रहा है। लेबनान में चार हजार साल पुराने प्राचीन मंदिर पर आतंकी हमला होने का खतरा मंडरा रहा है।
लेबनान की राजधानी बेरूत से कुछ ही दूर 67 किलोमीटर दूरी पर एक चार हजार साल पुराने प्राचीन मंदिर स्थित है। शिया मुसलमानों की बहुलता के कारण इसके आस-पास हिज्बुल्लाह का मजबूत ठिकाना माना जाता है। इजरायली सेना इस कारण धीरे-धीरे इस ओर आ रही है। हालांकि दो हजार साल पुराने इस बालबेक मंदिर के खंडहर ही अब बचे हुए हैं। सदियों से ये खंडहर भी सीना ताने हुए भारतीय गौरव की पताका लहरा रहे हैं। हिज्बुल्लाह आतंकवादी उसके विशाल परिसर में छिपने के लिए वहां का रुख कर सकते हैं। ऐसी दशा में इजरायली सुरक्षा बलों का प्राचीन मंदिर पर भी हमला हो सकता है। हिज्बुल्लाह आतंकी संगठन होने के साथ ही वहीं एक चरमपंथी धार्मिक संगठन भी है। यहां मौजूद धार्मिक चिन्हों को मिटाने के लिए हिज्बुल्लाह के भागते गुरिल्ले खंडहर के बचे अवशेषों को भी जमींदोज कर सकते हैं।
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सद्गुरु जग्गी वासुदेव ने अपनी पुस्तक ‘भारत: एक राष्ट्र की लय’ में लिखा है कि लेबनान में रहने वाले बच्चे अपने स्कूल के कोर्स में पढ़ते हैं कि भारतीय योगियों के द्वारा बालबेक मंदिर को चार हजार साल पहले भारतीय कलाकारों, श्रमिकों और हाथियों की मदद से बनाया गया था और यह एक विशाल मंदिर है। बालबेक मंदिर की नींव में रखे गए अधिकतर पत्थर 300 टन से अधिक वजन के हैं। इसके अलावा मंदिर की छतों में कमल के फूल की आकृतियां भी उकेरी गई हैं। कमल के फूल लेबनान में निःसंदेह नहीं होते हैं। कमल को भारतीय संस्कृति में आध्यात्मिकता का प्रतीक माना जाता है। दुनिया के हर हिंदू मंदिर में कमल की आकृति जरूर देखने को मिलती है। ये भारतीय कलाकारों द्वारा बनाए गए थे और हर लेबनानी बच्चा यह जानता है।
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सद्गुरु जग्गी वासुदेव अपनी पुस्तक में आगे लिखते हैं कि यूनानी, अरब, रोमन साम्राज्य से पहले के भी बने इस मंदिर में उस वक्त काफी पैसा खर्च हुआ था। स्थानीय पुस्तकों के अनुसार मंदिर में लगाए गए पत्थरों को ढोने और 50 फीट ऊंचे स्तंभों को खड़ा करने के लिए हाथियों का इस्तेमाल किया गया था। पश्चिम एशिया में हाथी नहीं पाए जाते थे। भारत ही हाथी पाया जाने वाला लेबनान का सबसे नजदीकी देश माना जाता है। सद्गुरु जग्गी वासुदेव के अनुसार एक सोलह कोणीय पत्थर बालबेक के म्यूजियम में भी रखा गया है। उस पत्थर को वहां गुरु पूजा पत्थऱ कहा जाता है। यह प्रक्रिया आध्यात्मिक है और षोडशोपचार कहलाती है। कहीं हजारों साल पुराना गुरु पूजा के लिए निर्मित खास केंद्र बालबेक मंदिर के अलावा दुनिया में और कहीं मौजूद नहीं है।
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