प्रयागराज: इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ पीठ ने विवादों से घिरी फिल्म ‘आदिपुरुष’ में जिस प्रकार महाकाव्य रामायण के प्रमुख किरदारों को चित्रित किया गया है, उस पर कल मंगलवार (27 जून) को गंभीर चिंता जाहिर की है. कोर्ट का कहना है कि हिंदू सहिष्णु हैं लेकिन हर बार उनकी ही परीक्षा क्यों ली जाती […]
प्रयागराज: इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ पीठ ने विवादों से घिरी फिल्म ‘आदिपुरुष’ में जिस प्रकार महाकाव्य रामायण के प्रमुख किरदारों को चित्रित किया गया है, उस पर कल मंगलवार (27 जून) को गंभीर चिंता जाहिर की है. कोर्ट का कहना है कि हिंदू सहिष्णु हैं लेकिन हर बार उनकी ही परीक्षा क्यों ली जाती है.
लखनऊ पीठ ने इस दलील को मानने से साफ इनकार कर दिया कि फिल्म के ‘डिस्क्लेमर’(ऐलान) में बताया गया था कि यह फिल्म रामायण नहीं है. न्यायमूर्ति राजेश सिंह चौहान और न्यायमूर्ति श्री प्रकाश सिंह की पीठ का कहना है कि जब फिल्म के मेकर्स ने भगवान राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण और लंका को दिखाया है तो डिसक्लेमर से कैसे दर्शकों को संतुष्ट करेंगे कि आदिपुरुष की कहानी रामायण से नहीं ली गई है.
दरअसल खंडपीठ ने मामले को आज बुधवार को पुनः सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करने का निर्देश देते हुए, डिप्टी सॉलिसिटर जनरल को केंद्र सरकार और सेंसर बोर्ड से आदेश प्राप्त कर यह अवगत कराने को कहा है कि इस मामले में वे क्या कार्रवाई कर सकते हैं. वहीं कोर्ट ने मौखिक टिप्पणी में कहा है कि हिंदू सहिष्णु हैं लेकिन क्यों हर बार उनकी सहनशीलता की परीक्षा ली जाती है, वे लोग सभ्य हैं तो उनको दबाना सही है क्या?
पीठ ने याचिकाकर्ता की तरफ से पेश अधिवक्ता रंजना अग्निहोत्री का तर्क सुनने के बाद मौखिक टिप्पणी की है, जिस प्रकार यह फिल्म बनाई गई है, यह न सिर्फ उन लोगों की भावनाओं को आहत करेगी जो भगवान राम, माता सीता, भगवान हनुमान की पूजा अर्चना करते हैं बल्कि रामायण के पात्रों को जिस प्रकार चित्रित किया है उससे समाज में वैमनस्य भी उत्पन हो सकता है.
कोर्ट का कहना है कि यह तो अच्छा है कि वर्तमान में चल रहा विवाद एक ऐसे धर्म के बारे में है जिसे मानने वालों ने कहीं लोक व्यवस्था को हानि नहीं पहुंचाया है. हमें उनका आभारी होना चाहिए जो कुछ लोग थिएटर बंद कराने गए थे लेकिन उन्होंने भी केवल हॉल बंद करवाया, वे और भी बहुत कुछ कर सकते थे.