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कुमार विश्वास या आशुतोष को राज्यसभा ना भेजकर क्या अरविंद केजरीवाल अब संयोजक से आम आदमी पार्टी के सुप्रीमो बन गए हैं ?

नई दिल्ली. आंदोलन से पैदा हुई आम आदमी पार्टी की रीति और नीति अब गंभीर सवालों में घिरी है. पार्टी के संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने दावा किया था कि वो राजनीति बदलने आए हैं लेकिन पांच साल में ही दिखने लगा है कि केजरीवाल पार्टी के संयोजक से सुप्रीमो में बदल चुके हैं. केजरीवाल ही आम आदमी पार्टी हैं. बिल्कुल वैसे ही, जैसे मायावती ही बीएसपी हैं, लालू यादव ही आरजेडी हैं, उद्धव ठाकरे ही शिवसेना हैं, ममता बनर्जी ही तृणमूल कांग्रेस हैं.

केजरीवाल के बदल कर लालू, ठाकरे, ममता या मायावती हो जाने और आम आदमी पार्टी के बीएसपी या आरजेडी होने का सवाल सबसे पहले मयंक गांधी ने उठाया था. मयंक गांधी आंदोलन और आम आदमी पार्टी बनते समय केजरीवाल के साथ थे. फिर अलग हो गए. राज्यसभा टिकट के लिए कुमार विश्वास और आशुतोष की अनदेखी के बाद मयंक गांधी ने ट्वीट किया था- ‘सोचिए, क्यों सुशील गुप्ता को चुना गया? अब आप और बीएसपी में कोई फर्क नहीं है. ये नेतृत्व समर्थन करने के काबिल नहीं है. मैं आज बेहिचक कह सकता हूं कि आप भ्रष्ट हो गई है. कम्युनल और जातीय वोट बैंक की राजनीति के बाद हमने करप्शन की आखिरी हद भी लांघ दी है.’

केजरीवाल ने राज्यसभा के लिए उम्मीदवारों का चयन जिस अंदाज़ में किया, उसकी उम्मीद किसी को नहीं थी. विधानसभा और पार्षद के उम्मीदवारों के लिए भी जनता के बीच रायशुमारी कराने वाली पार्टी के संयोजक ने नाम लिया और उस पर पॉलिटिकल अफेयर्स कमेटी ने मुहर लगाने की रस्म निभा दी. ऐसी रीति तो ‘सुप्रीमो कल्चर’ वाली पार्टियों में चलती है, जहां नेता की हैसियत आका की होती है. जहां सलाहकार सिर्फ दिखाने के लिए रखे जाते हैं, जिनकी भूमिका सिर हिलाने और जयकार करने से ज्यादा नहीं होती.

अरविंद केजरीवाल ने ऐसा क्या किया कि राज्यसभा चुनाव से पहले क्रिसमस के बाद से ही कुत्ते-बिल्ली में फंसकर रह गए आप के आशुतोष ?

पार्टी के तीन राज्यसभा कैंडिडेट में दो नाम ऐसे हैं जिनमें से एक सुशील गुप्ता को लेकर कांग्रेस नेता अजय माकन का दावा है कि राज्यसभा टिकट का वादा मिलने के बाद उन्होंने 28 नवंबर को कांग्रेस से इस्तीफा दिया था तो दूसरे संजय सिंह हैं जिनका चुनावी एफिडेविट यानी शपथ पत्र का स्टांप पेपर 30 दिसंबर को ही खरीदा जा चुका था. टिकट का ऐलान 3 जनवरी को पीएसी और विधायकों की एक बैठक के बाद हुआ.

राज्यसभा की सीट के लिए 30 दिसम्बर को ही तैयार हो चुका था संजय सिंह का एफिडेविट तो क्या औपचारिकता के लिए बुलाई गई थी PAC मीटिंग

कुमार विश्वास और आशुतोष का नाम राज्यसभा के लिए चर्चा में था, इसलिए अब भी सिर्फ उन्हीं के हवाले से चर्चा हो रही है. इस ओर किसी ने ध्यान ही नहीं दिया कि आखिर आम आदमी पार्टी को राज्यसभा में भेजने के लिए उम्मीदवारों का आयात क्यों करना पड़ा? क्या केजरीवाल के फैसले से ये साबित नहीं होता कि आम आदमी पार्टी अब नाकाबिलों की जमात बन गई है, जिसमें संजय सिंह को छोड़कर कोई ऐसा नहीं है, जिसे केजरीवाल, उनके डिप्टी मनीष सिसोदिया और पॉलिटिकल अफेयर्स कमेटी को राज्यसभा सांसद बनने की काबिलियत दिखे? कुमार विश्वास और आशुतोष का टिकट कटने से ज्यादा गंभीर सवाल यही है. अगर आम आदमी पार्टी में केजरीवाल के अलावा कोई काबिल नहीं है तो फिर इस पार्टी का भविष्य क्या है?

अजय माकन का दावा, केजरीवाल ने नवंबर में ही सुशील गुप्ता का राज्यसभा टिकट फिक्स कर दिया था

केजरीवाल अब आम आदमी पार्टी को आलाकमान और सुप्रीमो संस्कृति की ओर आगे बढ़ा चुके हैं. इसे राजनीतिक मजबूरी की बजाय उनका डर ही समझा जाएगा क्योंकि पार्टी को खुद से बौना बनाने की चाल वही नेता चलता है, जिसे डर हो कि लोकतांत्रिक ढंग से चलने पर पार्टी उसके हाथ से फिसल जाएगी. हैरानी इस बात की है कि केजरीवाल के मन में ये डर इतनी जल्दी कैसे पैठ गया? कुमार विश्वास से डरने की वजह हो सकती है लेकिन पार्टी के हर नेता से डर? अगर ये डर नहीं है तो भी केजरीवाल ने राज्यसभा के लिए उम्मीदवार चुनने में सुप्रीमो वाला चेहरा ही दिखाया है. उन्होंने संदेश दिया है कि पार्टी में वही चलेगा, जिसे केजरीवाल चलाना चाहेंगे. अब पार्टी में किंग वही हैं, किंगमेकर वही हैं.

केजरीवाल सरकार गिराने की साजिश के गोपाल राय के दावे पर बोले कुमार विश्वास- गुप्ताओं से मिले योग-दान का आनंद लें और संयुक्त राष्ट्र अध्यक्ष बनें

चलिए आप इंडिया न्यूज के एडिटर-इन-चीफ दीपक चौरसिया के राजनीतिक बहस के कार्यक्रम टुनाइट विद दीपक चौरसिया में आज से चार साल पहले 12 मार्च, 2014 को हुई उस बहस का वीडियो नीचे देख सकते हैं जब हमने सवाल उठाया था- ‘आप में इतनी जल्दी घुस आया हाईकमान कल्चर’.

Aanchal Pandey

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