नई दिल्ली. हरियाणा विधानसभा चुनाव के लिए नामांकन की प्रक्रिया शुरू हो गई है. भाजपा ने 67 उम्मीदवारों की जैसे ही पहली लिस्ट जारी की पार्टी में भगदड़ मच गई. कई पुराने नेता पार्टी को अलविदा कह गये. मान मनौव्वल का भी दौर चला लेकिन बात बनती हुई नहीं दिख रही है. कांग्रेस उम्मीदवारों के नामों पर लगातार मंथन कर रही है लेकिन लिस्ट इसलिए अभी जारी नहीं कर रही है कि उसे भी भगदड़ का डर है.
एक अनार सौ बीमार वाली कहावत चरितार्थ हो रही है. सूबे में कुल 90 विधानसभा की सीटें हैं. स्वभाविक सी बात है कि कोई भी पार्टी सिर्फ 90 लोगों को ही टिकट दे सकती है. एक सीट पर दर्जनों दावेदार हैं. ऐसे में कुछ नाराज होकर घर बैठेंगे, कुछ निर्दलीय लड़ेंगे और कुछ बगावत कर दूसरे दल में जा मिलेंगे. खैर ये तो रही चुनाव की बात. चुनावी मौके पर ऐसा होता है लेकिन क्या आपको पता है कि आया राम, गया राम की कहावत हरियाणा में ही घटी एक सच्ची घटना पर आधारित है. और ये बोल हैं एक सीएम के जो कि दल बदल करने वाले किसी नेता के लिए जुमले की तरह इस्तेमाल होता है.
1966 में पंजाब से अलग होकर हरियाणा नया राज्य बना था. 1967 में चुनाव हुआ था जिसमें पलवल-होडल के हसनपुर विधानसभा क्षेत्र से गया लाल निर्दलीय विधायक चुने गये थे. इस सुरक्षित सीट पर भयंकर संग्राम हुआ था और गया लाल ने कांग्रेस के एम सिंह को 360 वोटों से हराया था. अस्थिरता का माहौल था और दलबदल कानून नहीं बना था लिहाजा गया लाल कुछ दिनों बाद कांग्रेस में शामिल हो गये.
तत्कालीन 81 सदस्यों वाली हरियाणा विधानसभा के चुनाव में 48 सीटें जीतकर कांग्रेस ने बहुमत हासिल किया था. जनसंघ 12, स्वतंत्र पार्टी 3, आरपीआई 2 सीटें जीती थी. इस चुनाव में रिकार्ड 16 निर्दलीय जीते थे. बहुमत हासिल करने के बाद कांग्रेस ने सरकार बनाने का दावा पेश किया.
भगवत दयाल शर्मा ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली लेकिन एक हफ्ते के भीतर ही कांग्रेस के 12 विधायकों ने दलबदल कर लिया और कांग्रेस सरकार गिर गई. निर्दलीय विधायकों ने संयुक्त विधायक दल (एसवीडी) बना लिया जिसे संयुक्त मोर्चा भी कहा गया और उसका नेतृत्व राव बीरेंद्र ने किया. दल बदल के सहारे इन्होंने अपनी सदस्य संख्या 48 कर ली और राव बीरेंद्र नये सीएम बन गये.
गया लाल सत्ता के साथ रहना चाहते थे लिहाजा कांग्रेस छोड़कर एसवीडी में शामिल हो गये. फिर कांग्रेस में गये और चंद घंटों में ही एसवीडी में आ गये. इस तरह 9 घंटे के अंदर उन्होंने तीन बार पार्टी बदली थी. तब सीएम राव बीरेंद्र ने प्रेस कांफ्रेंस करके कहा था कि “गया राम, अब आया राम हैं”. तभी से आया राम, गया राम का मुहावरा बन गया. ये बात अलग है कि राव बीरेंद्र भी ज्यादा दिनों तक सीएम नहीं रह पाये और 8 महीनें में ही उनकी भी सरकार चली गई थी.
1968 में फिर से चुनाव हुआ था. गया लाल इसके बाद भी एक जगह नहीं टिके थे और कई दलों में शामिल होते रहे थे. दलबदल की बीमारी जब ज्यादा बढ़ गई तो राजीव गांधी सरकार 1985 में दल बदल विरोधी कानून लेकर आई जिससे एक हद तक लगाम तो लगा लेकिन राजनीति की ये बीमारी अभी भी लाइलाज ही है.
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