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अपने रोमांटिक रिश्तों को लेकर काफी बेबाक थे हरिवंश राय बच्चन, जानिए उनकी पहली बीवी और प्रेमिकाओं की कहानी

नई दिल्ली. युवा पीढ़ी हरिवंश राय बच्चन को अमिताभ बच्चन के जरिए ही जानना सीखी, हिंदी के छात्र-छात्राओं को छोड़ दिया जाए तो युवाओं में उन्हें बेहद ही कम लोग जानते थे. वो उन्हें जानने लगे, मधुशाला को जानने लगे, कुछ लाइंस भी याद हो गईं जो अमिताभ अक्सर लिखते-बोलते रहते हैं. ऐसे में अगर कोई उन्हें ये कहे कि अमिताभ और अजिताभ हरिवंश राय बच्चन की पहली नहीं बल्कि दूसरी बीवी की संतान थे और हरिवंश जी की प्रेम कहानियां अमिताभ की प्रेम कहानियों से कहीं ज्यादा थीं, तो शायद उन्हें यकीन ना हो. उस पर भी दिलचस्प बात ये कि अमिताभ ना रेखा से अपने रिश्तों के बारे में कुछ बोलते हैं और ना परवीन बॉबी से और ना ही किसी और से. लेकिन उनके पिताजी ने बड़ी बेबाकी से अपने सारे रिश्तों के बारे में खुल्लम खुल्ला लिखा है, चाहे वो वैध रिश्ते थे या फिर अवैध.

कुल चार हिस्सों में ऑटोबायोग्राफी लिखी हरिवंश राय बच्चन ने, क्या भूलूं क्या याद करूं, नीड का निर्माण फिर, बसेरे से दूर और दशद्वार से सोपान तक. पहला पार्ट था क्या भूलूं क्या याद करूं, इसी में उन्होंने अपनी पहली बीवी श्यामा के बारे में लिखा है और इस किताब को श्यामा की मौत पर ही खत्म किया है. श्यामा से उनकी शादी 19 साल की उम्र में हुई थी, तब वो 14 की थीं. तीन साल गौने के बाद जब वो घर आईं तो काफी बीमार थीं. दरअसल उनकी मौत भी शादी के दस साल बाद ही टीबी से हो गई थी. श्यामा की मां को टीबी की बीमारी थी, उन्हीं की सेवा में दिन रात लगी श्यामा को भी लग गई. अमिताभ के फैंस को पता होगा कि अमिताभ बच्चन खुद भी टीबी की बीमारी से उबर कर आए हैं, तभी वो सरकार के टीबी कैम्पेन के ब्रांड अम्बेसडर भी बन गए.

श्यामा से भी शादी से पहले हरिवंश का एक अफेयर हुआ, अपने दोस्त करकाल की बीवी चम्पा से, और ये करकाल की मर्जी से था. हालांकि हरिवंश इसे राधा-श्याम के प्रेम की तरह परिभाषित करते हैं. करकाल की असामयिक मौत से पहले करकाल ने उनसे उसका ध्यान रखने का भी वायदा लिया था. उसकी मौत के बाद दोनों के रिश्ते भी बने और चम्पा प्रेग्नेंट भी हो गई. चम्पा की सास कैसे उसको लेकर हरिद्वार के लिए रवाना हुई, उसको विस्तार से हरिवंश ने अपनी बायोग्राफी में लिखा है. इधर किसी ज्योतिषी ने हरिवंश के पिता को कहा था कि तुम्हारा बेटा एक दिन बहुत बड़ा आदमी बनेगा, उसको बढ़ने से रोकना नहीं. उनके माता-पिता को चम्पा का पूरा एपिसोड पता होने के वाबजूद उन्होंने कुछ नहीं कहा, यहां तक कि चम्पा की मौत के बाद अपने बेटे की मेंटल कंडीशन की चिंता ज्यादा थी. ऐसे में श्यामा से शादी करके उन्हें लगा कि इससे उसका ध्यान बंटेगा.

हरिवंश राय बच्चन ने विस्तार से अपनी बायोग्राफी में लिखा है कि कैसे उनके एक करीबी श्रीमोहन ने पहचाना कि उनकी जीवनसंगिनी किस तरह की लड़की हो सकती है और कैसे उन्होंने श्यामा को ढूंढा. श्यामा उम्र से ज्यादा परिपक्व और समझदार थीं, उनके कवि मन को भा गई. श्यामा की याद में उन्होंने तीन कविताएं लिखी थीं, निशा निमंत्रण, एकांत संगीत और आकुल अंतर. घरवाले उन्हें बीमार श्यामा से दूर रखना चाहते थे. लेकिन वो उनसे बात करना चाहते थे. घर की महिलाओं को डर था कि कहीं वो टीबी से ग्रसित श्यामा से सेक्सुअल रिलेशन ना बना ले. लेकिन पति पत्नी की ट्यूनिंग के आगे घरवाले निरुत्तर रह गए. इसी तरह बच्चन ने कभी आजाद-भगत सिंह के साथी यशपाल की पत्नी प्रकाशवती कौर उर्फ प्रकाशो से रिश्तों के बारे में भी लिखा है कि कैसे वो उनके घर में रानी नाम से रहती थीं और सच्चाई किसी को पता नहीं थी.

हरिवंश राय बच्चन ने अपने रोमांटिक ही नहीं घरेलू रिश्तों, अपनी कायस्थ जाति और अपने पूर्वजों के बारे में भी खुलकर लिखा और बताया कि कैसे सामाजिक आंदोलनों में भाग लेने की वजह से उनके चाचा के परिवार के लोगों ने उनके परिवार का इस कदर बहिष्कार कर दिया कि श्यामा की मौत के बाद कांधा देने तक नहीं आए. हालांकि हरिवंश ने उन्हें तेजी बच्चन के साथ शादी के बाद ‘एट होम’ समारोह में बुलाया तो वो खुद नहीं आए बल्कि बच्चे भेज दिए, ताकि नई बहू के बारे में जानकारी मिल सके. लेकिन उनकी एक खानदानी चाची ने बच्चों को सबके साथ खाना खाने से रोक दिया ये कहकर, ‘’नहीं..ई लोग इस पंगत में ना खइहें’’. उनके अलग खाने की व्यवस्था की गई, लेकिन तेजी बच्चन ने इससे काफी अपमानित महसूस किया. टीवी पर अक्सर अमिताभ के चाचा आदि खानदानियों की कहानियां आती हैं कि कैसे बच्चन उनकी मदद नहीं करते, दरअसल इसके पीछे की ये सब वजहें थीं, जो हरिवंश राय बच्चन ने अपनी बायोग्राफी में लिखी हैं.

श्यामा की मौत के बाद वो अकेले पड़ गए थे, पांच साल बाद 1941 में उनकी मुलाकात हुई तेजी बच्चन से. ये मुलाकात हुई बरेली में उनके दोस्त प्रकाश के घर. नई साल का जश्न था, 31 दिसम्बर की रात थी. उनसे सबने कविता पाठ का आग्रह किया. आगे की कहानी बच्चन साहब के शब्दों में पढ़िए, “ये कविता मैंने बड़े सिनिकल मूड में लिखी थी. मैंने गीत सुनाना शुरू किया. मैं एक पलंग पर मैं बैठा था, मेरे सामने प्रकाश बैठे थे और मिस तेजी सूरी उनके पीछे खड़ी थीं. गीत सुनाते-सुनाते न जाने मेरी आवाज में कहां से वेदना भर आई. मैंने ‘उस नयन से बह सकी कब इस नयन की अश्रु-धारा..’ लाइन पढ़ी ही थी कि मिस सूरी की आंखें नम हो गईं और उनके आंसू टप-टप प्रकाश के कंधे पर गिर रहे थे. ये देखकर मेरा गला भर आता है. मेरा गला रुंध जाता है. मेरे भी आंसू नहीं रुक रहे थे. ऐसा लगा मानो, मिस सूरी की आखों से गंगा-जमुना बह चली है और मेरे आंखों से जैसे सरस्वेती.”
और वो कविता ये थी ….
क्या करूं संवेदना लेकर तुम्हारी?
क्या करूं?
मैं दुखी जब-जब हुआ
संवेदना तुमने दिखाई,
मैं कृतज्ञ हुआ हमेशा,
रीति दोनों ने निभाई,
किंतु इस आभार का अब
हो उठा है बोझ भारी,
क्या करूं संवेदना लेकर तुम्हारी?
क्या करूं?
एक भी उच्छ्वास मेरा
हो सका किस दिन तुम्हारा?
उस नयन से बह सकी कब
इस नयन की अश्रु-धारा?
सत्य को मूंदे रहेगी
शब्द की कब तक पिटारी?
क्या करूं संवेदना लेकर तुम्हारी?
क्या करूं?

हरिवंश राय बच्चन जन्मदिन विशेष: जब अमिताभ ने अपने पिता से पूछा- आपने मुझे पैदा ही क्यों किया, तो क्या था पिता का जवाब?  

Aanchal Pandey

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