Har ghar tiranga abhiyan: कैसे बना तिरंगा? जानें तिरंगे से जुड़ी कुछ रोचक बातें

नई दिल्ली, स्वतंत्रता के 75 साल पूरे होने पर सरकार आजादी का अमृत महोत्सव मना रही है, जिसके तहत सरकार 13 से 15 अगस्त तक हर घर तिरंगा अभियान चलाया जा रहा है. सरकार ने हर घर तिरंगा अभियान के तहत लोगों से अपने घरों में तिरंगा लगाने और इसे फहराने की अपील की है. पीएम मोदी ने देशवासियों से अपील की है कि सभी लोग अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर तिरंगे की डीपी लगाकर इस अभियान को और सशक्त बनाएं. अब पीएम की अपील के बाद लोगों ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर तिरंगे की फोटो लगानी शुरू कर दी है.

तिरंगे का इतिहास

भारत का पहला राष्ट्रीय ध्वज साल 1904 में सिस्टर निवेदिता द्वारा डिजाइन किया गया था, यह लाल रंग का झंडा था जिसके किनारों पर पीली धारियां थीं और बीच में एक वज्र था जिसके दोनों ओर वंदे मातरम लिखा हुआ था. 7 अगस्त, 1906 को कोलकाता के पारसी बागान स्क्वायर (ग्रीर पार्क) में पहला तिरंगा झंडा फहराया गया था, उस समय तिरंगे में नीले, पीले और लाल रंग के तीन क्षैतिज बैंड थे, जिसमें आठ सितारे उस समय भारत के आठ प्रांतों का प्रतिनिधित्व करते थे और वंदे मातरम शब्द पीले बैंड में अंकित था. नीचे की लाल पट्टी में सूर्य और एक अर्धचंद्र है, साथ ही टारे को भी दर्शाया गया है. मैडम भीकाजी कामा ने 22 अगस्त, 1907 को जर्मनी के स्टटगार्ट में इसी तरह का झंडा फहराया था, साल 1917 में, यूनियन जैक के साथ एक तीसरा झंडा दिखाई दिया, जिसमें पांच लाल और चार क्षैतिज बैंड, सात तारे और एक अर्धचंद्र था. इसे होमरूल आंदोलन के दौरान डॉ. एनी बेसेंट और लोकमान्य तिलक ने फहराया था.

तिरंगे की कहानी

भारत के लिए झंडा बनाने की कोशिशें बहुत बार की गई, लेकिन तिरंगे की परिकल्पना आंध्र प्रदेश के पिंगली वेंकैया ने की थी. उनकी चर्चा महात्मा गांधी ने साल 1931 में अपने अखबार यंग इंडिया में की थी. कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में पढ़ाई करने वाले वेंकैया की मुलाकात उस दौरान राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी से हुई थी. उन्हें झंडों में बहुत रूचि थी, गांधी जी ने उनसे भारत के लिए एक झंडा बनाने को कहा था. वेंकैया ने 1916 से 1921 तक कई देशों के झंडों पर रिसर्च करने के बाद एक झंडा डिजाइन किया. साल 1921 में विजयवाड़ा में आयोजित भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन में गांधी से मिलकर उन्हें लाल औऱ हरे रंग से बनाया हुआ झंडा दिखाया. इसके बाद से देश में कांग्रेस के सारे अधिवेशनों में इस दो रंगों वाले झंडे का इस्तेमाल होने लगा, इसी बीच जालंधर के लाला हंसराज ने झंडे में एक चक्र चिन्ह बनाने का सुझाव दिया, बाद में गांधी जी के सुझाव पर वेकैंया ने शांति के प्रतीक सफेद रंग को तिरंगे में शामिल किया. साल 1931 में कांग्रेस ने केसरिया, सफेद औऱ हरे रंग से बने झंडे को स्वीकार किया, हालांकि उस समय झंडे के बीच में अशोक चक्र नहीं बल्कि चरखा था.

बाद में झंडे के बीच चरखे की जगह अशोक चक्र ने ले ली. इस झंडे को भारत की आजादी की घोषणा के 24 दिन पहले 22 जुलाई 1947 को संविधान सभा ने भारतीय राष्ट्रीय ध्वज के रुप में अपनाया गया था.

तिरंगे का रंगों का महत्व

राष्ट्रीय ध्वज का केसरिया रंग साहस का प्रतिनिधित्व करता है, वहीं सफेद भाग शांति और सच्चाई का प्रतिनिधित्व करता है और अशोक चक्र धर्म या नैतिक कानून का प्रतिनिधित्व करता है, इसी कड़ी में तिरंगे का हरा रंग उर्वरता, वृद्धि और शुभता का प्रतिनिधित्व करता है.

 

 

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