Govt on Migrant Laborers Death: कोरोना लॉकडाउन के बाद बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूरों ने शहर से पलायन शुरू किया था. पलायन की ऐसी दर्दनाक तस्वीरें देश ने देखी थी जो शायद शब्दों में बयां करना भी मुश्किल है. कितने ही लोगों को सड़क पर चलते हुए गाड़ी ने कुचल दिया और कितने ही ऐसे रहे जो चलते चलते भूख-प्यास से ही मर गए. उन रोटी के टुकड़ों को कौन भूल सकता है जो रेलवे ट्रेक पर मजदूरों की लाश के पास पड़ी थी जहां मजदूर ये सोचकर रेलवे ट्रेक से जा रहे थे कि ट्रेन तो बंद है और चलते चलते थककर पटरी पर सोए और ट्रेन से कटकर मर गए. ऐसी कितनी ही कहानियां हैं जिसका ना कहीं जिक्र है और ना ही सरकार के पास कोई आंकड़ा.
नई दिल्ली: संसद के मॉनसून सत्र के पहले दिन आज लॉकडाउन में मारे गए प्रवासी मजदूरों का मामला उठा. सरकार से सवाल पूछा गया कि लॉकडाउन की वजह से कितने प्रवासी मजदूर मारे गए? इस सवाल के जवाब में केंद्र सरकार ने कहा कि उनके पास इसका कोई आंकड़ा मौजूद नहीं है. केंद्र सरकार ने कहा कि लॉकडाउन की वजह से लाखों मजदूरों ने शहरों से गांवों की ओर पलायन किया था, जिनमें से कई की मौत रास्ते में अलग-अलग वजहों से हुई. सरकार से ये भी सवाल पूछा गया कि घर लौटते हुए कितने मजदूरों की रास्ते में मौत हुई? किस राज्य में ऐसी कितनी मौते हुईं क्या इसका कोई डाटा सरकार के पास है? सरकार से ये भी पूछा गया कि क्या मृत्कों के परिवार वालों को सरकारी की तरफ से कोई मुआवजा दिया गया?
केंद्रीय श्रम और रोजगार मंत्रालय ने इन सवालों के जवाब में कहा कि मृतकों की संख्या को लेकर कोई डेटा उपलब्ध नहीं है. मंत्रालय ने जवाब में कहा कि इस तरह का डेटा नहीं जुटाया गया था इसलिए पीड़ितों या उनके परिवारों को मुआवजे का सवाल नहीं उठता. श्रम और रोजगार राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) संतोष कुमार गंगवार ने कहा, ”एक राष्ट्र के रूप में भारत ने केंद्र और राज्य सरकारों, लोकल बॉडीज, सेल्फ हेल्प ग्रुप्स, रेजिडेंट वेलफेयर असोसिएशंस, चिकित्साकर्मियों, सफाई कर्मचारियों और बड़ी संख्या में एनजीओ ने कोरोना वायरस और राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन की वजह से इस अभूतपूर्व मानवीय संकट के खिलाफ काम किया.
गौरतलब है कि कोरोना लॉकडाउन के बाद बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूरों ने शहर से पलायन शुरू किया था. पलायन की ऐसी दर्दनाक तस्वीरें देश ने देखी थी जो शायद शब्दों में बयां करना भी मुश्किल है. कितने ही लोगों को सड़क पर चलते हुए गाड़ी ने कुचल दिया और कितने ही ऐसे रहे जो चलते चलते भूख-प्यास से ही मर गए. उन रोटी के टुकड़ों को कौन भूल सकता है जो रेलवे ट्रेक पर मजदूरों की लाश के पास पड़ी थी जहां मजदूर ये सोचकर रेलवे ट्रेक से जा रहे थे कि ट्रेन तो बंद है और चलते चलते थककर पटरी पर सोए और ट्रेन से कटकर मर गए. ऐसी कितनी ही कहानियां हैं जिसका ना कहीं जिक्र है और ना ही सरकार के पास कोई आंकड़ा.
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