दिल्ली में एक सप्ताह में छह सफाई कर्मियों की मौत हो गई. इस बीच सफाई कर्मचारियों की मौत के सरकारी और एक एनजीओ के आंकड़े सामने आए हैं. सरकारी आंकड़े कहते हैं सालभर में 123 सफाईकर्मी सीवर में मरे तो एनजीओ का दावा है कि अकेले दिल्ली में ही 400 से ज्यादा लोगों की जान चली गई.
नई दिल्ली: दिल्ली में सीवर की सफाई के दौरान मौत का मामला सामने आया है. इस मामले में सफाई ठेकेदार पर कार्रवाई की बात की जा रही है. सीवर लाइन या सेप्टिक टैंक में सफाईकर्मियों की मौत का मामला नया नहीं है. आए दिन ऐसे हादसे सामने आते रहते हैं. आंकड़े कहते हैं कि जनवरी 2017 से हर पांच दिन में एक सफाईकर्मी की मौत सीवर या सेप्टिक टैंक में हो रही है. सफाई कर्मियों के विकास के लिए काम करने वाला संगठन सफाई कर्मचारी आंदोलन ने अपना आधिकारिक सर्वे डेटा पेश किया है. इसमें कहा गया है कि साल 2016 से 2018 के बीच अकेले दिल्ली में 429 लोगों की सीवर या सेप्टिक टैंक में दम घुटने से मौत हो चुकी है.
वहीं दूसरी तरफ, संसद के एक अधिनियम द्वारा स्थापित वैधानिक निकाय नेशनल कमीशन फॉर सफाई कर्मचारी (NCSK) द्वारा एकत्रित किया गया डेटा बताता है कि देशभर में मैनुअल स्कैवेंजर्स के रूप में कार्यरत 123 लोगों की पिछले एक साल में सफाई के दौरान जान गई है. सफाई कर्मचारी आंदोलन का आंकड़ा एनसीएसके के आंकड़ों पर सवाल खड़ा करता है क्योंकि इसमें कहा गया है कि सिर्फ दिल्ली में ही 429 लोगों की जान जा चुकी है.
सफाई कर्मचारी आंदोलन के आंकड़े कहते हैं कि साल 2018 में सीवर में 83 सफाई कर्मचारियों की मौत हुई है. अकेले दिल्ली में ही एक हफ्ते में 6 कर्मचारियों की मौत हो चुकी है. हाल ही में पांच सफाई कर्मचारियों की एक साथ मौत हुई थी. एनसीएसके का गठन संसद द्वारा सफाई कर्मचारियों के विकास के लिए बनाया गया था. इसके आंकड़े मुख्यतौर पर मीडिया रिपोर्ट से लिए गए हैं. इससे जुड़े एक अधिकारी ने बताया कि ये आंकड़े हिंदी और अंग्रेजी अखबारों की खबरों पर हो सकते हैं. हो सकता है कुछ खबरें क्षेत्रीय मीडिया रिपोर्ट्स में भी छपी हों जिन्हें कलेक्ट नहीं किया गया हो.
एनसीएसके के आंकड़ों में 13 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में हुई सफाई कर्मियों की मौत की जानकारी दी गई है. साल 2011 की सामाजिक- आर्थिक जाति सूचकांक (एसईसीसी) के मुताबिक, महाराष्ट्र के ग्रामीण इलाकों के 65 हजार 181 घरों में प्रत्येक में कम से कम एक व्यक्ति सफाईकर्मी था. एसईसीसी के आंकड़ों में शहरी भारत को शामिल नहीं किया गया था.