नई दिल्ली: देश में कोविड-19 के आने के बाद से बहुत बदलाव आए हैं। रिश्तों से लेकर नौकरी तक, सबके अंदाज बदल गए हैं। इसी नई डेवलपमेंट में एक और नई चीज उभर कर सामने आई है, गिग इकोनॉमी। इसी के साथ आया है गिग वर्कर्स का चलन। इसके आने से लोगों के काम करने […]
नई दिल्ली: देश में कोविड-19 के आने के बाद से बहुत बदलाव आए हैं। रिश्तों से लेकर नौकरी तक, सबके अंदाज बदल गए हैं। इसी नई डेवलपमेंट में एक और नई चीज उभर कर सामने आई है, गिग इकोनॉमी। इसी के साथ आया है गिग वर्कर्स का चलन। इसके आने से लोगों के काम करने के तरीके में क्रांति आ गई है।
गिग इकोनॉमी एक ऐसा लेबर मार्केट है, जो फ्रीलांस और शॉर्ट टर्म कार्य व्यवस्था पर काम करता है। इस व्यवस्था में काम करने वालों को गिग वर्कर्स या स्वतंत्र ठेकेदार कहते हैं। गिग इकोनॉमी में वर्कर्स ट्रेडिशनल फुलटाइम इंप्लॉयमेंट की तरह लॉन्ग टर्म कांट्रैक्ट्स से बंधे नहीं होते हैं, बल्कि आजाद होते हैं कि उन्हें कब, कहां और कितना काम करना है।
गिग कर्मचारी गिग इकोनॉमी का वो हिस्सा होते हैं, जिसमें वे स्थाई कर्मचारी ना होकर एक फ्रीलांसर की तरह काम करते हैं। गिग वर्कर्स को बहुत स्वतंत्रता होती है। वे अपना काम करने का समय और जगह खुद तय करते हैं। कब कितना कमाना है, वो भी ये लोग खुद ही डिसाइड करते हैं।
गिग वर्कर बनकर काम करना आपके लिए सही साबित हो सकता है अगर आप क्रिएटिव हैं और नई चीजें सीखने में दिलचस्पी रखते हैं। गिग वर्कर्स की एलिजिबिलिटी देखकर ही कंपनियां उन्हें पैसे देती है। तो सिर्फ वही लोग इस व्यवस्था में अच्छा कमा सकते हैं जो खुद को अपने काम में बेहतरीन बना लें।
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