नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने सीनियर एडवोकेट सौरभ कृपाल को दिल्ली हाई कोर्ट का जज नियुक्त किए जाने की अपनी सिफारिश को दोहराया है. यह सिफारिश केंद्र सरकार से की गई है. कॉलेजियम ने जो सिफारिश केंद्र को भेजी है इसमें सौरभ कृपाल के नाम के दोहराव के पीछे कई ठोस वजह भी […]
नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने सीनियर एडवोकेट सौरभ कृपाल को दिल्ली हाई कोर्ट का जज नियुक्त किए जाने की अपनी सिफारिश को दोहराया है. यह सिफारिश केंद्र सरकार से की गई है. कॉलेजियम ने जो सिफारिश केंद्र को भेजी है इसमें सौरभ कृपाल के नाम के दोहराव के पीछे कई ठोस वजह भी बताई गई है ऐसा कम ही देखने को मिलता है. लेकिन सरकार ने एक बार फिर इसपर आपत्ति जता दी है आइए जानते हैं सरकार की आपत्ति पर क्या बोली SC.
सौरभ कृपाल की बात करें तो उन्होंने दिल्ली के सेंट स्टीफंस कॉलेज से ग्रेजुएशन की है. सौरभ ने ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन में लॉ की डिग्री ली है और पोस्टग्रेजुएट (लॉ) कैंब्रिज यूनिवर्सिटी से किया है. इसके अलावा उन्होंने दो दशक तक सुप्रीम कोर्ट में प्रैक्टिस की है. वह यूनाइटेड नेशंस के साथ जेनेवा में भी काम कर चुके हैं. ‘नवतेज सिंह जोहर बनाम भारत संघ’ के केस को लेकर सौरभ की ख्याति जानी जाती है, सौरभ धारा 377 हटाये जाने को लेकर याचिकाकर्ता के वकील थे. बता दें, 2018 के सितंबर में धारा 377 को लेकर कानून को सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दिया था.
सौरभ कृपाल के नाम पर बरसों से सिफारिश लंबित है. सबसे पहले कॉलेजियम ने साल 2017 में उन्हें दिल्ली हाईकोर्ट का जज बनाए जाने को लेकर सिफारिश की थी. तब से आज तक उनकी नियुक्ति अटकी पड़ी है. पिछले साल 11 नवंबर को हुई कॉलेजियम की बैठक में भी उनकी सिफारिश हुई लेकिन कुछ नहीं हो पाया. मार्च 2022 में केंद्र सरकार से चीफ जस्टिस एसए बोबडे ने सौरभ कृपाल को जज बनाये जाने को लेकर सवाल किया था. उन्होंने सरकार से इस बारे में अपनी राय स्पष्ट करने की बात कही थी.
केंद्र की मुख्य आपत्ति दो वजहों को लेकर है. इनमें से पहली ये है कि कृपाल के पार्टनर स्विस नागरिक हैं. दूसरी आपत्ति का पहलू उनका अपने सेक्सुअल ओरिएंटेशन को लेकर काफी ओपन होना है. जिसमें केंद्र सरकार ने अप्रैल 2019 के रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) के लेटर का भी जिक्र किया गया है. सौरभ के नाम को मंजूरी देने की सिफारिश पर इन्हीं दो आपत्तियों को उठाया गया.
इसके अलावा केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू की एक चिट्ठी का भी जिक्र है. चिट्ठी में रिजिजू कहते है कि, भारत में समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर रखा गया है, लेकिन सेम सेक्स मैरेज अब भी मान्यता से बाहर है. इस पत्र में इस बात पर भी आशंका जाहिर की गई कि कृपाल के विचार पक्षपात वाले रह सकते हैं क्योंकि वे समलैंगिक लोगों के अधिकारों की लड़ाई लड़ चुके हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने कृपाल को जज बनाने की सिफारिश में सरकार की जताई गई सभी आपत्तियों के जवाब दिए हैं. कृपाल कहते हैं कि किसी की सेक्सुअल ओरिएंटेशन को आधार बनाकर उसे प्रमोट करने से रोका नहीं जा सकता है. इसपर कोर्ट ने कहा कि कृपाल की इस बात की तारीफ होनी चाहिए कि वह सेक्सुअल ओरिएंटेशन को लेकर खुलकर बात करते हैं.
कॉलेजियम ने सिफारिश में ज़िक्र किया है कि उनका व्यवहार और कानून व न्याय शास्त्र का ज्ञान और समझ हमेशा उत्कृष्ट रही है. बतौर जज उनकी नियुक्ति बेंच में विविधता को बढ़ाएगी. कॉलेजियम का कहना है कि संवैधानिक पदों पर मौजूद बहुत लोगों के पार्टनर विदेशी नागरिक रहे हैं. ऐसे में विदेशी जीवन साथी होने की वजह से उनका नाम खारिज करना औचित्य नहीं है.
– पहली आपत्ति के संबंध में कॉलेजियम ने कहा कि वकील सौरभ कृपाल के पार्टनर को लेकर रिसर्च एंड एनालिसिस विंग उनके व्यक्तिगत आचरण या व्यवहार के संबंध में किसी भी आशंका को दिखाने में विफल रहा है. क्या वह इस बात को साफ़ कर सकते हैं कि सौरभ कृपाल के जज बनने से राष्ट्रीय सुरक्षा पर कैसा असर पड़ता है? मौजूदा और पूर्व में संवैधानिक पदों में कई व्यक्तियों के पति-पत्नी विदेशी नागरिक रह चुके हैं. ऐसे में सैद्धांतिक रूप से, इस आधार पर सौरभ कृपाल की उम्मीदवारी पर कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए.
– दूसरी आपत्ति को लेकर कॉलेजियम ने कहा कि संविधान पीठ के फैसलों मेंप्रत्येक व्यक्ति को उसकी गरिमा और व्यक्तित्व के साथ यौन इच्छा के अधिकारों को बनाए रखने के अधिकार की बात कही गई है. ऐसे में यौन इच्छा पर खुल कर बात करना उम्मीदवारी खारिज नही कर सकता. सौरभ कृपाल के पास योग्यता, सत्यनिष्ठा और मेधा की कमी नहीं है ऐसे में उनकी नियुक्ति जहां नए मूल्य को जोड़ेगी, वहीं कोर्ट में समावेश और विविधता को भी जोड़ने का काम करेगी.
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को लेकर केंद्र सरकार को जल्द से जल्द निर्णय लेने को कहा है.
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