नई दिल्ली। गणेशोत्सव का पावन पर्व आज से शुरू हो रहा है। 10 दिनों तक चलने वाला गणपति बप्पा का ये पर्व 9 सितंबर 2022 को गणेश विसर्जन के साथ समाप्त होगा। इन 10 दिनों तक भक्त मंगलमूर्ति और विघ्नहर्ता भगवान गणेश की विधिवत रूप से पूजा-अर्चना और मंत्रोच्चार कर उन्हें प्रसन्न करेंगे।
भगवान गणेश के पर्व पर आज हम आपको ऐसे 8 मंत्रों के बारें में बताने जा रहे हैं, जिनके जाप से आप विघ्नहर्ता को प्रसन्न कर सकते हैं।
1- वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ।
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥
अर्थ- घुमावदार सूंड वाले,विशालकाय शरीर,करोड़ों सूर्य के समान कीर्ति और तेज वाले, मेरे भगवान गणेश हमेशा मेरे सारे कार्य बिना बाधा के पूरे करें।
2- एकदन्तं महाकायं लम्बोदरगजाननम्ं।
विघ्नशकरं देवं हेरम्बं प्रणमाम्यहम्॥
अर्थ- जिनके एक दांत और सुंदर मुख है, जो शरण में आए भक्तों की रक्षा और प्रणतजनों की पीड़ा को नाश करने वाले हैं, उन शुद्ध स्वरूप आप गणपित को कई बार प्रणाम है।
3- अमेयाय च हेरम्ब परशुधारकाय ते ।
मूषक वाहनायैव विश्वेशाय नमो नमः ॥
अर्थ- हे गणपति देव, आपको किन्ही प्रमाणों द्वारा मापा नहीं जा सकता, आप परशु धारण करने वाले हैं। आपका वाहन मूषक है। आप विश्वेश्वर को कई बार नमस्कार है।
4- एकदंताय विदमहे। वक्रतुण्डाय धीमहि। तन्नो दंती प्रचोदयात।।
अर्थ- एक दंत को हम जानते हैं। वक्रतुण्ड का हम ध्यान करते हैं। वह गजानन हमें प्रेरणा प्रदान करें।
5- गजाननाय पूर्णाय साङ्ख्यरूपमयाय ते ।
विदेहेन च सर्वत्र संस्थिताय नमो नमः ॥
अर्थ- हे गणेश्वर! आप गज के समान मुख धारण करने वाले, पूर्ण परमात्मा और ज्ञानस्वरूप हैं । आप निराकार रूप से सर्वत्र विद्यमान हैं, आपको बारम्बार नमस्कार है।
6- ऊँ नमो विघ्नराजाय सर्वसौख्यप्रदायिने।
दुष्टारिष्टविनाशाय पराय परमात्मने॥
अर्थ- सभी सुखों को प्रदान करने वाले सच्चिदानंद के रूप में बाधाओं के राजा गणेश को नमस्कार। गणपति को नमस्कार, जो सर्वोच्च देवता हैं, बुरे बुरे ग्रहों का नाश करने वाले।
7- शुक्लाम्बरधरं देवं शशिवर्णं चतुर्भुजम् ।
प्रसन्नवदनं ध्यायेत् सर्वविघ्नोपशान्तये ॥
अर्थ- समस्त विघ्नों को दूर करने के लिए श्वेत वस्त्रधारी श्रीगणेश का ध्यान करना चाहिए, जिनका रंग चन्द्रमा के समान है, जिनकी चार भुजाएं हैं और जो सुखी हैं।
8- गजाननं भूतगणादिसेवितं कपित्थजम्बूफलचारु भक्षणम्ं।
उमासुतं शोकविनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वरपादपङ्कजम्।।
अर्थ- जो समान समान हैं, गणिकादिसे सदा जीवित रहते हैं, कैथिक फली के गुण वाले अन्न हैं, जो पार्वती के समान हैं, जो शत्रु समान हैं।
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