लखनऊ: अयोध्या में श्रीराम मंदिर निर्माण की तैयारी चल रही है। नेपाल से शालिग्राम पत्थर लाने के बाद सागौन की लकड़ी को अब महाराष्ट्र के चंद्रपुर और गढ़चिरौली से अयोध्या लाया जा रहा है। बता दें, इनका इस्तेमाल मंदिर के दरवाजे और अन्य निर्माण में किया जाएगा। वहीं, महाराष्ट्र के पर्यावरण मंत्री सुधीर मुनगंटीवार ने कहा है कि हम अयोध्या में उच्च गुणवत्ता वाली सागौन की लकड़ी भेज रहे हैं। मई तक इसे 6 टुकड़ों में भेज दिया जाएगा। इसका पहला शिपमेंट भेज दिया गया है।
वैसे आपको बता दें, यह पहली बार नहीं है कि बड़े निर्माण में सागौन की लकड़ी का उपयोग किया गया है। सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट में भी इसका इस्तेमाल बड़े पैमाने पर किया गया था। लेकिन सवाल यह है कि उसमें ऐसा क्या गुण है जो बड़े पैमाने पर इसे इस्तेमाल में लाया जाता है? इस सवाल का जवाब आपको इनखबर के इस खबर के जरिए जरूर मिल जाएगा। आइए आपको बताते हैं वो 5 वजहें जिसकी वजह से सागौन की लकड़ी को उम्दा माना गया है।
भले ही यह गुण आपको चौंका दे, लेकिन यह सच है। सागौन की लकड़ी से बने फर्नीचर और अन्य चीजों में दीमक नहीं लगती। यह दीमक और अन्य कीड़ों को दूर रखता है जो आपके फर्नीचर को नष्ट कर सकते हैं। सागौन की लकड़ी में प्राकृतिक तेल होते हैं जो इसे सड़ने और खराब होने से बचाते हैं। यही कारण है कि 500 से 600 साल तक इस लकड़ी में दीमक नहीं दिखाई देती।
बताया जाता है कि सागौन की लकड़ी में कई विशेषताएं होती हैं। तमाम तरह के निर्माण के मामले में अन्य लकड़ियों की तुलना में सागौन सबसे अच्छा माना जाता है। सुंदरता बढ़ाने के साथ ही यह लकड़ी काफी ठोस होती है। यही वजह है कि ठोस होने के चलते इसे बेहतर माना गया है।
सागौन की लकड़ी हीट रेसिस्टेंट होती है, जिसका अर्थ है कि गर्मी का मौसम इस पर जल्दी असर नहीं करता है। इस कारण यह लंबे समय तक चलती है। अंदर से ठोस होने के कारण यह गर्मी में ज्यादा गर्म या सर्दी के महीनों में ज्यादा ठंडा नहीं होता है। इसे अन्य लकड़ियों की तुलना में आसानी से तोड़ा नहीं जा सकता।
आपको बता दें, बारिश के मौसम में आमतौर पर लकड़ी पर फंगल अटैक होता है, लेकिन सागौन के साथ ऐसा नहीं होता है। इसी गुण के कारण इसे अन्य लकड़ियों से बेहतर विकल्प माना जाता है।
इस लकड़ी की देखभाल करना आसान है। इसके रंग और चमक को बनाए रखने के लिए इसे पॉलिश किया जा सकता है। इससे बने फर्नीचर को अगर ज्यादा देर तक खुली हवा में रखा जाए तो भी उसे ज्यादा नुकसान नहीं होता है। यह प्राकृतिक मौसम के असर को झेलने में सक्षम है।
मिली जानकारी के मुताबिक , महाराष्ट्र वन विकास निगम लिमिटेड मंदिर के लिए लकड़ी प्रदान करेगा। कहा जाता है कि इस लड़की की पहली खेप को बड़ी ही धूमधाम से भेजा जाएगा। सागौन को महाराष्ट्र के चंद्रपुर और गढ़चिरौली क्षेत्रों से काटा और भेजा जाता है जो अपने घने जंगलों के लिए पूरे देश में प्रसिद्ध हैं।
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