नई दिल्ली: इस समय सुप्रीम कोर्ट में समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने की मांग वाली याचिकाओं पर सुनवाई चल रही है. इस सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार और याचिकाकर्ताओं की ओर से दलीलें दी जा रही हैं जिसके बाद ही शीर्ष अदालत किसी फैसले पर पहुंचेगी. इसी बीच समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने के मामले में 121 पूर्व जजों, 6 पूर्व राजदूतों और 101 पूर्व नौकरशाहों ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू (President Draupadi Murmu) को पत्र लिखा है.
दरअसल इस पत्र में कहा गया है कि सेम सेक्स मैरिज करने वालों की शादी को कानूनी मान्यता प्रदान करने की कोशिशों से उन्हें धक्का पहुंचा है. अगर इस बात की अनुमति मिल जाती है तो पूरे देश को इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी इसलिए उन्हें लोगों के भले की चिंता है. राष्ट्रपति को लिखे गए इस पत्र में आगे कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट को ये बताया जाना चाहिए कि ‘नई लकीर खींचने’ से सांस्कृतिक नुकसान पहुंचेगा. इस नई लकीर से समाज पर क्या असर होगा? समलैंगिक यौन संस्कृति को हमारा समाज स्वीकार नहीं करता है. इसलिए विवाह की अनुमति देने पर ये आम हो जाएगा. और हमारे बच्चों के स्वास्थ्य और सेहत पर इससे ख़तरा पड़ने की गुंजाइश है.
इस पत्र में आगे ये भी कहा गया है कि इस वैधता से परिवार और समाज नाम की संस्थाएं भी नष्ट हो जाएंगी. पूर्व जजों और नौकरशाहों ने इस चिट्ठी में साफ़ कहा है कि इस बारे में केवल संसद को ही फैसला करने का अधिकार है क्योंकि पार्लियामेंट में ही लोगों के प्रतिनिधि होते हैं. दूसरी ओर विवाह अनुच्छेद 246 (Article 246) में एक सामाजिक कानूनी संस्थान है जिसे केवल सक्षम विधायिका द्वारा ही रचित, स्वीकृत और कानूनी मान्यता प्रदान हो सकता है।
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