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Foreign Minister S Jaishankar America Visit: अमेरिका में विदेश मंत्री एस जयशंकर की ट्रंप प्रशासन को खरी-खरी, हम नहीं चाहते कोई दूसरा देश हमें बताए कि हमें किससे क्या खरीदना है क्या नहीं

नई दिल्ली. भारत के विदेश मंत्री सुब्रमण्यम जयशंकर अभी भी वाशिंगटन में जमे हैं, इस अंदाज में कि भारत का रहने वाला हूं भारत की ही बातें रखूंगा. वह वहां क्या कर रहे हैं और भारत के किस मिशन को अंजाम तक पहुंचाने में जुटे हैं इसकी थोड़ी सी झलक उनके प्रेस कांफ्रेंस से मिलती है. दो दिन पहले उन्होंने अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पॉम्पिओ से मुलाकात की थी और रूस से एस-400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम के करार को लेकर अमेरिकी दखलंदाजी पर आपत्ति जताई थी. इस दौरान जयशंकर ने सख्त लहजे में इस बात को कहा कि हम नहीं चाहते कि कोई देश हमें बताए कि रूस से क्या खरीदना है और क्या नहीं.

निश्चित रूप से लंबे अरसे बाद अमेरिकी प्रतिबंध की धमकी को नजरंदाज करते हुए भारत ने मजबूती से अपना पक्ष रखा है. जब यह खबर आई तो पता चला कि एस.जयशंकर संयुक्त राष्ट्र महासभा सत्र के दौरान से ही अमेरिका में डटे हैं और पूरी दुनिया के नेताओं से मुलाकात कर भारत के पक्ष को मजबूती से रख रहे हैं.

भारत जब भी कोई बड़ा निर्णय लेता है जिसकी गूंज पूरी दुनिया को सुनाई पड़ती है और ऐसा महसूस होता है कि दुनिया के ताकतवर देशों की टेढ़ी निगाहें भारत की तरफ हैं तो कूटनीतिक संवाद के जरिये अपने पक्ष को मजबूती से पेश करना होता है. जयशंकर इसी मिशन के तहत अमेरिका में हैं. 

याद करें तो इससे पहले अटल सरकार में जब भारत ने परमाणु परीक्षण किया था तब तत्कालीन विदेश मंत्री जसवंत सिंह ने भी इसी तरह के कूटनीतिक संवाद के जरिये दुनिया को समझाया था. इस बार मसला जम्मू कश्मीर से आर्टिकल 370 को खत्म करने के बाद वैश्विक पटल पर उपजी परिस्थिति को लेकर है.

एस.जयशंकर बेशक आज विदेश मंत्री की हैसियत से अमेरिका की यात्रा पर हैं लेकिन यह मत भूलिए कि वह इससे पहले मोदी सरकार के पिछले कार्यकाल में विदेश सचिव की भूमिका में थे और उससे पहले वह अमेरिका में भारत के राजदूत भी रह चुके हैं. नरेंद्र मोदी को इस बात का अंदाजा था कि भारत के पक्ष को किस मंच पर किस तरह से रखना है यह जयशंकर से बेहतर कोई और नहीं जान सकता है. लिहाजा उन्होंने विदेश मंत्री के रूप में जयशंकर का चुनाव किया. विदेश मंत्रालय के सूत्रों के हवाले से जो रिपोर्ट निकलकर आ रही है उसके मुताबिक, पिछले दो-तीन दिनों में जयशंकर वॉशिंगटन में पांच और न्यूयॉर्क में दो थिंकटैंकों से मिले हैं.

वॉशिंगटन डीसी के जिन पांच प्रमुख थिंकटैंकों से जयशंकर की मुलाकात हुई है उनमें कार्निज इन्डोमेंट फॉर इंटरनैशनल पीस, अटलांटिक काउंसिल, सेंटर फॉर स्ट्रैटिजिक एंड इंटरनैशनल स्टडीज, द ब्रुकिंग्स इंस्टिट्यून और द हेरिटेज फाउंडेशन शामिल हैं. इससे पहले वह न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र महासभा के सत्र से इतर सेंटर फॉर फॉरेन रिलेशंस और एशिया सोसाइटी से मुखातिब हुए थे. इससे पहले वह 42 देशों के विदेश मंत्रियों और 36 देशों के साथ द्विपक्षीय बातचीत को भी अंजाम दे चुके हैं. यह सब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अपने कूटनीतिक प्रयासों से अलग है.

इतना सब कुछ करने के बाद जब वह पत्रकारों से मुखातिब हुए तो कश्मीर को लेकर दनादन सवाल पूछे जाने लगे। जयशंकर ने सबको सुना और फिर भारत और पाकिस्तान को एक साथ रखने पर ऐतराज जताया. उन्होंने कहा, आप भारत और पाकिस्तान को एक साथ कैसे रख सकते हैं? आप एक ऐसे देश को हमारे साथ कैसे रख सकते हैं जो हमारी अर्थव्यवस्था का आठवां हिस्सा है. जो छवि के लिहाज से बिल्कुल उलट वजह से चर्चा में रहता है. जहां तक जम्मू कश्मीर में तमाम अस्थायी पाबंदियों की बात है तो धारा 370 को खत्म किए जाने के बाद जम्मू-कश्मीर में किसी की जान न जाए इसलिए अस्थायी पाबंदियां लगाई गई हैं.

मुख्य मकसद संभावित हिंसा को रोकना है. कहने का मतलब यह कि अमेरिकन इंस्टीट्यूशन के जरिये जो बात कही और रखी जाती है उसकी धमक पूरी दुनिया में होती है. इसीलिए जयशंकर ने इस रास्ते को चुना है. अमेरिकन थिंकटैंक की बात करें तो यह बहुत हद तक दुनिया के सबसे शक्तिशाली देश की विदेश नीति और अंतरराष्ट्रीय संबंधों को तय करते हैं. इनका असर सिर्फ अमेरिका ही नहीं, पूरी दुनिया पर पड़ता है.

अमेरिकन थिंकटैंक हो, अमेरिकन मीडिया हो या फिर ट्रम्प प्रशासन के तमाम दिग्गज, सबके बीच भारत अपना पक्ष मजबूती से रख रहा है कि जम्मू-कश्मीर का भारत में वैध तरीके से विलय हुआ है और पाकिस्तान ने उसके एक हिस्से पर अवैध कब्जा कर रखा है जिसे ‘पाकिस्तान के अवैध कब्जे वाला कश्मीर’ (पीओके) कहा जाता है.

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Aanchal Pandey

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