नई दिल्ली: इंदिरा गांधी 1966 मे पीएम जब बनीं तो किसी को अंदाजा नहीं था कि वो इतनी लम्बी पारी खेलेंगी और उनको पीएम बनाकर अपने इशारों पर चलाने की ख्वाहिश रखने वालों को भी किनारे लगा देंगी. लेकिन ये सब होने लगा तो इंदिरा को हटाने की कोशिशें होनी लगीं, यहां तक कि दैवीय आपदाओं के पीछे भी इंदिरा को बताने की कोशिशें होने लगीं. अफवाहें चलने लगीं शपथ के दिन भाभा मर गए, पहली 15 अगस्त स्पीच के दिन दिल्ली में भूकम्प आ गया, सूखा और बाढ़, मानसून लेट के पीछे उसके विधवा होने को अपशकुन बताया गया, गाय कटने और भाषाई विरोध दंगों में तब्दील हो गया था.
जो लोग इंदिरा से मुकाबला नहीं कर पा रहे थे उसके हाथों बड़े बड़े प्रोजेक्ट्स का उदघाटन करने पर भी सवाल उठाने लगे कि वो विधवा हैं, हालांकि खुलकर ऐसी बातें कोई नहीं करता था, लेकिन पब्लिक प्रोपेगेंडा खूब होता था. देश की सारी समस्याओं के लिए इंदिरा के विधवा या अनलकी होने को दोषी ठहराया जाने लगा. इधर 1967 चुनाव के लिए कामराज इंदिरा को कैंडिडेट सलेक्शन में दखल देने से मना करने लगे.
इंदिरा ने हार नहीं मानीं वो ज्यादा से ज्यादा दौरे करने लगीं, पब्लिक रैलियां सम्बोधित करने लगीं, ऐसी ही भुवनेश्वर की एक रैली में इंदिरा पर किसी ने पत्थर फेंका और उनकी नाक टूट गई, बहते खून को साड़ी से दबाकर इंदिरा भाषण देती रही, रुकी नहीं. बाद में पट्टी बांधकर ही हर सभा में गईं, जिससे लोगों में उनके लिए सुहानुभूति भी पैदा हुई. 1967 के चुनाव में कामराज को किसने हराया, जानने के लिए देखिए हमारा ये वीडियो शो, विष्णु शर्मा के साथ.
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