देश-प्रदेश

पहली बार भारतीय धरती से हुए पवित्र कैलाश पर्वत के दर्शन, अब चीन की अनुमति की जरूरत खत्म!

देहरादून: भारत के श्रद्धालुओं के लिए यह बेहद खास मौका है, जब उन्होंने पहली बार भारतीय धरती से पवित्र कैलाश पर्वत के दर्शन किए हैं। भगवान शिव के निवास स्थान माने जाने वाले इस पर्वत को देखने के लिए अब चीन की अनुमति लेने की जरूरत नहीं पड़ेगी। यह अद्भुत घटना 3 अक्टूबर को उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले की व्यास घाटी से हुई।

पहले चीन से लेनी पड़ती थी अनुमति

अब तक भारतीय तीर्थयात्रियों को कैलाश पर्वत के दर्शन के लिए तिब्बत जाना पड़ता था, जो चीन के अधीन है। इस यात्रा के लिए चीन से अनुमति लेनी पड़ती थी। लेकिन अब भारतीय सीमा के भीतर से ही इस पवित्र पर्वत के दर्शन किए जा सकते हैं।

कैसे हुआ यह संभव?

उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में स्थित पुराने लिपुलेख दर्रे के पास व्यास घाटी से इस स्थान की खोज की गई है। उत्तराखंड पर्यटन विभाग, सीमा सड़क संगठन (BRO), और भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP) की टीम ने कुछ महीने पहले यहां से कैलाश पर्वत के स्पष्ट दर्शन करने का रास्ता खोज निकाला।

तीर्थयात्रा की योजना और रूट

उत्तराखंड सरकार ने इस तीर्थयात्रा के लिए खास योजना बनाई है। तीर्थयात्री पहले धारचूला में स्वास्थ्य जांच करवाएंगे और वहीं से परमिट मिलेगा। पहले दिन हेलीकॉप्टर से पिथौरागढ़ से गुंजी पहुंचा जाएगा, जहां रात बिताई जाएगी। दूसरे दिन तीर्थयात्री कार से आदि कैलाश के दर्शन करेंगे और शाम को गुंजी लौटेंगे। तीसरे दिन, वे कैलाश व्यू पॉइंट जाएंगे और दर्शन करके लौट आएंगे। चौथे दिन, हेलीकॉप्टर से वापस पिथौरागढ़ लौट आएंगे।

सीएम धामी और पर्यटन मंत्री की प्रतिक्रिया

उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इस यात्रा को सफल बनाने वाले सभी विभागों को बधाई दी है। उन्होंने कहा कि अब शिव भक्तों को कैलाश-मानसरोवर यात्रा का इंतजार नहीं करना पड़ेगा और वे भारतीय सीमा से ही भगवान शिव के दर्शन कर सकेंगे। पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज ने इस यात्रा को ऐतिहासिक बताया और कहा कि राज्य सरकार शिव भक्तों को एक अनूठा अनुभव प्रदान करने के लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध है।

अब नहीं होगी चीन पर निर्भरता

कोविड के चलते कैलाश-मानसरोवर यात्रा तीन साल तक बंद रही थी। जब यात्रा फिर से शुरू हुई, तो चीन ने सख्त नियम लागू कर दिए और यात्रा शुल्क लगभग दोगुना कर दिया। इसके अलावा, अगर कोई तीर्थयात्री नेपाल से किसी सहायक को साथ ले जाना चाहता है, तो उसे अतिरिक्त 300 डॉलर (लगभग 25,000 रुपए) चुकाने पड़ते हैं, जिसे ‘ग्रास डैमेजिंग फी’ कहा जाता है। लेकिन अब भारतीय तीर्थयात्रियों को तिब्बत जाने की जरूरत नहीं होगी, जिससे उनका समय और पैसा बचेगा। अब शिव भक्तों के लिए यह यात्रा न केवल आसान हो गई है, बल्कि उन्हें भारतीय धरती से ही पवित्र कैलाश पर्वत के दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त होगा। यह यात्रा निश्चित रूप से उनके लिए एक अनमोल और भावुक अनुभव साबित होगी।

 

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Anjali Singh

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