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महिलाएं जानवर नहीं, खतना प्रथा उनके निजता के अधिकार का उलंघन- सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट में दाऊदी बोहरा मुस्लिम समुदाय में नाबालिग लड़कियों के खतने पर रोक लगाने वाली याचिका पर सुनवाई चल रही है. इस याचिका पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रथा पर सवाल उठाए हैं. सुप्रीम कोर्ट ने तल्ख लहजे में कहा कि लड़कियों को पति के लिए तैयार करने वाली यह प्रथा निजता के अधिकार का उलंघन करती है.

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female genital mutilation
  • July 30, 2018 7:55 pm Asia/KolkataIST, Updated 6 years ago

नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने दाऊदी बोहरा मुस्लिम समुदाय में नाबालिग लड़कियों के खतने की प्रथा पर सवाल उठाए हैं. लड़कियों के खतने पर रोक लगाने संबंधी याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस तरह महिलाओं का इस लिए खतना नही किया जा सकता कि उन्हें शादी करनी है. महिलाओं का जीवन केवल शादी और पति के लिए नही होता. शादी के अलावा भी महिलाओं का अलग दायित्व हित है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ये निजता के अधिकार का उलंघन है. इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने कहा ये लैंगिक संवेदनशीलता का मामला है और स्वास्थ्य ने लिए खतरनाक हो सकता है.

उच्चतम न्यायालय ने कहा कि ये किसी भी व्यक्ति के पहचान का केंद्र बिंदु होता है और ये एक्ट ( खतना) किसी की पहचान के खिलाफ है. इस तरह का एक्ट एक औरत को आदमी के लिए तैयार करने के मकसद से किया जाता है जैसे कि वो जानवर हो. किसी महिला पर ही ये दायित्व क्यों हो कि वो अपने पति को खुश करे? दाऊदी बोहरा मुस्लिम समुदाय की नाबालिग लड़कियों के खतना की प्रथा का विरोध करने वाली याचिका का केंद्र सरकार ने भी समर्थन किया है.

वहीं इंद्रा जय सिंह ने याचिकाकर्ता की तरफ से कहा किसी भी आपराधिक एक्ट को प्रैक्टिस के नाम पर जारी रखने की इजाजत नहीं दी जा सकती. उन्होंने कहा कि किसी भी लड़की के प्राइवेट पार्ट को छूना पॉस्को के तहत अपराध है. इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को भी सुनवाई जारी रहेगी. पिछली सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि धर्म के नाम पर कोई किसी महिला के यौन अंग कैसे छू सकता है. यौन अंगों को काटना महिलाओं की गरिमा और सम्मान के खिलाफ है.

इस मामले पर केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि धर्म की आड़ में लड़कियों का खतना करना जुर्म है और इसके लिए दंड विधान में सात साल तक कैद की सजा का प्रावधान भी है. सुप्रीम कोर्ट ने दाऊदी बोहरा मुस्लिम समाज में आम रिवाज के रूप में प्रचलित इस इसलामी प्रक्रिया पर रोक लगाने वाली याचिका पर केरल और तेलंगाना सरकारों को भी नोटिस जारी किया था. याचिकाकर्ता और सुप्रीम कोर्ट में वकील सुनीता तिहाड़ की याचिका पर कोर्ट में सुनवाई चल रही है. तिहाड़ ने कहा कि भारत ने संयुक्त राष्ट्र बाल अधिकार घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर किये हैं.

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