हरित क्रांति के जनक एम एस स्वामीनाथन का 98 साल की उम्र में निधन, जानें उनके जीवन से जुड़ी खास बातें

चेन्नई: भारत के महान कृषि वैज्ञानिक और हरित क्रांति के जनक कहे जाने वाले एम एस स्वामीनाथन का गुरुवार को निधन हो गया। उन्होंने तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई में सुबह 11.20 बजे अंतिम सांस ली। बता दें कि उनका जन्म 7 अगस्त, 1925 को हुआ था। कौन थे स्वामीनाथन? स्वामीनाथन का जन्म ब्रिटिश राज में […]

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हरित क्रांति के जनक एम एस स्वामीनाथन का 98 साल की उम्र में निधन, जानें उनके जीवन से जुड़ी खास बातें

Arpit Shukla

  • September 28, 2023 12:37 pm Asia/KolkataIST, Updated 1 year ago

चेन्नई: भारत के महान कृषि वैज्ञानिक और हरित क्रांति के जनक कहे जाने वाले एम एस स्वामीनाथन का गुरुवार को निधन हो गया। उन्होंने तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई में सुबह 11.20 बजे अंतिम सांस ली। बता दें कि उनका जन्म 7 अगस्त, 1925 को हुआ था।

कौन थे स्वामीनाथन?

स्वामीनाथन का जन्म ब्रिटिश राज में 7 अगस्त, 1925 को तमिलनाडु में हुआ। मूल रूप से वे आनुवांशिक विज्ञान के वैज्ञानिक थे लेकिन वह कृषि की ओर मुड़े और देश के सबसे प्रसिद्ध कृषि वैज्ञानिक की पहचान बनाई। उनके काम को पूरी दुनिया में सराहना मिली। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम द्वारा उनको “आर्थिक पारिस्थितिकी के जनक” का नाम दिया गया।

उनके बारे में कुछ खास बातें

बता दें कि एमएस स्वामीनाथन के पास दो स्नातक डिग्रियां थीं। एक प्राणीशास्त्र में और दूसरा कृषि विज्ञान में। उन्होंने 1943 में बंगाल के अकाल का अनुभव करने के बाद कृषि के क्षेत्र में ही आगे बढ़ने का निर्णय लिया। 1960 में जब देश बड़े पैमाने पर भोजन की कमी का सामना कर रहा था, तब एमएस स्वामीनाथन ने नॉर्मन बोरलॉग और अन्य वैज्ञानिकों के साथ मिलकर गेहूं के HYV बीज विकसित किए। इसी विकास की वजह से भारत में हरित क्रांति हुई। बता दें कि उन्हें ‘हरित क्रांति के जनक’ के नाम सा भी जाना जाता है। उनके उतकृष्ट कार्यों की वजह से भारत सरकार ने उन्हें 1967 में पद्मश्री और 1972 में पद्म भूषण से सम्मानित किया। बता दें कि उन्होंने 1972 से 1979 तक भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद और 1982 से 1988 के बीच अंतर्राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान के महानिदेशक के रूप में अपनी सेवा दी। उन्होंने कुछ समय कृषि मंत्रालय के प्रधान सचिव के रूप में भी कार्य किया। साल 1986 में एमएस स्वामीनाथन को अल्बर्ट आइंस्टीन विश्व विज्ञान पुरस्कार से नवाजा गया।

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