नई दिल्ली. जम्मू कश्मीर पर बड़ी-बड़ी बात कहने वाले प्रधानमंत्री इमरान खान के पाकिस्तान को अंतराष्ट्रीय स्तर पर बड़ा झटका लगा है. फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स के एशिया पैसिफिक समूह ने टेरर फंडिग और मनी लॉन्ड्रिंग के 40 में से 32 पैरामी़टर पर आयोग्य करार देते हुए पारकिस्तान को ब्लैकलिस्ट में डाल दिया है. बुधवार को आर्थिक तंगी से जूझ रहे पाकिस्तान ने फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स को रिपोर्ट सौंपकर अपना एक्शन प्लान बताया था. इससे पहले साल 2018 में एफएटीएफ ने पाकिस्तान को ग्रे लिस्ट में डाल दिया था. साल 2012 से लेकर 2015 तक भी पाकिस्तान एफएटीएफ की ग्रे लिस्ट में रहा था.
गौरतलब है कि ऑस्ट्रेलिया के कैनबरा में फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स की बैठक हो रही है. एफएटीएफ की फाइनल रिपोर्ट के अनुसार, पाकिस्तान कानूनी और वित्तीय प्रणालियों के लिए 40 में से 32 मानकों को पूरा करने में विफल रहा है. वहीं टेरर फंडिंग के खिलाफ सुरक्षा उपायों के लिए 11 में से 10 मापदंडों को पाकिस्तान पूरा नहीं कर पाया है. अक्टूबर में पाकिस्तान को ब्लैक लिस्ट में डाला जाएगा क्योंकि एफएटीएफ के 27 पॉइंट एक्शन प्लान की 15 महीनों की समयावधि इसी महीने में खत्म हो रही है.
बुधवार को पाकिस्तान ने एफएटीएफ को अनुपालन रिपोर्ट सौंपी जिसमें 27 पॉइंटर एक्शन प्लान बताया. जिसे लेकर एपीजी ने पाया कि इस्लामाबाद की ओर से कई मामलों में खामियां हैं, साथ ही मनी लॉन्ड्रिंग और टेटर फंडिंग को रोकने के लिए भी पाकिस्तान खास कोशिश नहीं कर रहा है.
पाकिस्तान को 6 अरब डॉलर की खैरात का नुकसान
पुरे विश्व में सिर्फ 2 ही ऐसे देश हैं ईरान और नार्थ कोरिया जिन्हें ब्लैकलिस्ट के दायरे में रखा गया था, अब तीसरा नाम पाकिस्तान का भी जुड़ गया है. पाकिस्तान के ब्लैकलिस्ट होने से अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष से जो 6 अरब डॉलर की आर्थिक मदद मिलने वाली थी उस पर भी अब संकट गहरा गया है. अर्थव्यवस्था में तेजी से गिरावट आने का खतरा बन गया है जिसका नुकसान पाकिस्तानी नागरिकों पर पड़ने वाला है.
पाकिस्तान के ब्लैक लिस्ट होने के बाद आने वाले समय में मुद्रास्फीति भी देखी जा सकती है. FATF की ग्रे लिस्ट में आने से पाकिस्तान लगभग 10 अरब डॉलर का नुक्सान हर साल झेल रहा है और अब ब्लैकिस्ट में आने से ये रकम और भी बढ़ जाएगी जो की पाकिस्तान के अर्थव्यवस्था के लिए चुनौती होगी.
पाकिस्तान के ब्लैकलिस्ट में आने से क्या होगा ?
FATF के ब्लैकलिस्ट में आने से देश की रेटिंग घट जाती है और उधार लेने की क्षमता कम हो जाती है. विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष से लोन लेने में काफी परेशानियां होती हैं, उच्च ब्याज दर के साथ कड़ी नियमों के साथ लोन मिलता है. ब्लैकलिस्ट होने से निवेशक निवेश नहीं करते और अगर निवेश आता भी है तो चीन से आता है, इसके अलावा बैंक को अंतरराष्ट्रीय ट्रांसकेशन करने में ज्यादा समय लगता है जिससे व्यापार को नुकसान झेलना पड़ता है.
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