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Explainer: जानिए बदहाल देशों में नोट छापने का पैमाना… क्यों फ़ैलाते हैं हाथ?

Banknote Printing: भारत के दो पड़ोसी देशों पाकिस्तान और श्रीलंका के आर्थिक हालात बदहाल होते जा रहे हैं. पाकिस्तान का विदेशी मुद्रा भंडार सिर्फ 20 दिनों के लिए बचा है, ऐसे में अनाज के अभाव में लोग आटा-चावल जैसी जरूरी चीजें नहीं खरीद पा रहे हैं. प्याज के दाम 200 रुपये और सरसों तेल के […]

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Explainer: जानिए बदहाल देशों में नोट छापने का पैमाना… क्यों फ़ैलाते हैं हाथ?
  • January 11, 2023 8:41 pm Asia/KolkataIST, Updated 2 years ago

Banknote Printing: भारत के दो पड़ोसी देशों पाकिस्तान और श्रीलंका के आर्थिक हालात बदहाल होते जा रहे हैं. पाकिस्तान का विदेशी मुद्रा भंडार सिर्फ 20 दिनों के लिए बचा है, ऐसे में अनाज के अभाव में लोग आटा-चावल जैसी जरूरी चीजें नहीं खरीद पा रहे हैं. प्याज के दाम 200 रुपये और सरसों तेल के दाम 500 रुपये प्रति किलो से ज्यादा हो गए हैं। अब जब हालात इतने खराब हैं तो सवाल उठता है कि आखिर सभी देश ऐसी स्थिति में पहुंचे सभी देश बड़े पैमाने पर नोट छापकर अपने आर्थिक संकट का समाधान क्यों नहीं करते?

 

• पाकिस्तान और श्रीलंका कंगाल

पाकिस्तान और श्रीलंका दोनों ने विश्व बैंक और आईएमएफ सहित अन्य देशों से मदद की गुहार लगाई है। भारत ने भी श्रीलंका की काफी आर्थिक मदद की है। लेकिन क्या आपने सोचा है कि दुनिया भर के देश बैंकनोट छापने से क्यों हिचकिचाते हैं? भारत में भी, रिजर्व बैंक कितनी भी मजबूरी के बाद भी ज़्यादा नोट प्रिंट नहीं करता है। आपको यह भी सोचना चाहिए कि जब सरकार नोट को प्रिंट करने का काम कर रही है, तो क्यों नहीं सरकार बड़ी मात्रा में नोट छाप दें ताकि गरीबी से भूखे मर रहे लोगों की मदद जा सके। आखिरकार, सरकारें ऐसा क्यों नहीं करती हैं? अगर आप इसके पीछे का गणित समझेंगे तो आपको मालूम होगा कि ऐसा करना पैर में कुल्हाड़ी मारने जैसा होगा। कैसे? आइए आपको बताते हैं:

• ज़्यादा नोट छपने लगे तो?

आपको बता दें, ज़्यादा नोट छपने से महंगाई सातवें आसमान पर पहुंच जाएगी. आइए आपको बताते हैं क्यों? दरअसल ज्यादा नोट छापने से लोगों के पास ज्यादा पैसा पहुंचेगा और उनकी जरूरतें भी अचानक बढ़ जाएंगी। इससे बाजार में खपत में बढ़ावा होगा और उत्पादन सीमित होने से कीमतों पर दबाव पड़ेगा और महंगाई दिन-रात बढ़ने लगेगी।

• मिसाल से समझें

अब जैसे मान लें कि आपकी मासिक आए 10,000 रुपए हैं. अब अगर सरकार आपको मुफ्त में बहुत सारा पैसा दे दें तो आप क्या करेंगे? अगर आपको 1 लाख दे दिए जाएं तो आप जाहिर हैं कि सबसे पहले बाजार पहुंचेंगे और अपनी तमाम जरूरी और ख्वाहिशों की चीज़ें खरीदेंगे। अब देश का हर व्यक्ति ऐसा करने लगे तो बाजार में डिमांड बढ़ जाएगी क्योंकि लोगों की जेब में मोटा पैसा होगा।

 

• डिमांड बढ़ने से क्या होगा?

आपने सुना होगा कि जब एक चीज़ को खरीदने वाले लोग हज़ार हो तो वो चीज़ अपने आप में बेशक़ीमती हो जाती है. ठीक इसी तरह अगर हर किसी की जेब में मुफ्त का पैसा होगा तो अपनी ख्वाहिशों और जरूरत की चीज़ें पर पैसे खर्च करेंगे और हर हालत में उसे हासिल करने की सोचने।

 

• मुफ्त पैसा बाँटने से क्या होगा?

अब अगर आप यह सोच रहे हैं कि सरकार मुफ्त पैसा क्यों नहीं बाँटने लगती तो आपको इसका भी सरल सा जवाब दे देते हैं. अब फिर से आप अपनी आय का उदाहरण लीजिए। अब अगर आपको किसी काम-काज के लिए 10,000 रुपए मिलते हैं और सरकार आपको मुफ्त का 1 लाख दे दे तो क्या आप काम करेंगे? जाहिर जब देश की सरकार मुफ्त का पैसा बाँटने लगेगी तो लोग अपने काम-काज बंद कर देंगे और इकॉनोमिक गतिविधि टूट जाएगी। और फिर शायद दुकानदार भी दुकान खोलने से इनकार कर दे. फिर आप सामान कैसे खरीदेंगे?

 

• साउथ अफ्रीका में यही हुआ …

इस स्थिति को दक्षिण अमेरिकी देश वेनेजुएला और अफ्रीकी देश जिम्बाब्वे के आर्थिक संकट से समझा जा सकता है। दोनों देशों ने कर्ज चुकाने के लिए बड़ी मात्रा में नोट छाप डाले। जब बेहिसाब पैसा लोगों के हाथ लगा तो वे भी जमकर खरीदारी करने लगे। जैसे-जैसे मांग बढ़ी, उत्पाद की कीमतें तेजी से बढ़ने लगीं। वेनेजुएला में आपको एक बोरी रोटी के लिए भी लाखों डॉलर खर्च करने पड़ते थे। जिम्बाब्वे में स्थिति ऐसी थी कि महँगाई दर बढ़कर लगभग करीब 2 करोड़ फीसदी तक पहुँच गई.

• तो क्या है नोटों का प्रिंट स्केल?

जानकारी के लिए बता दें, किसी देश को अपनी जीडीपी के मुताबिक ही नोट छापने चाहिए। इसके अतिरिक्त बैंक नोट छपाई के पैमाने पर उस देश की वित्तीय स्थिति और विकास दर भी बनाई जाती है। वेनेजुएला ने बड़ी संख्‍या में नोट छापकर अपनी करेंसी का मूल्‍य इतना गिरा दिया था कि एक अमेरिकी डॉलर की बराबरी के लिए 2.5 करोड़ वेनेजुएला डॉलर खर्च करना पड़ा.

 

अब आप समझ गए होंगे कि पाकिस्तान और श्रीलंका जैसे देश खराब हालात के बावजूद नोट छापने की गलती क्यों नहीं करते। दोनों देशों ने वेनेजुएला और जिम्बाब्वे से बहुत कुछ सीखा है। किसी से कर्ज लेकर अपने खर्चों को पूरा करना बेहतर है, क्योंकि यह बोझ कुछ वक़्त का होगा और बाद में अच्छी ग्रोथ रेट से इसे कवर किया जा सकता है। लेकिन अगर महंगाई हजारों प्रतिशत अंक चढ़ती है, तो अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाना मुश्किल होगा।

 

 

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