देश-प्रदेश

183 साल बाद यूपी के मदरसों में घुसेगी मैकाले की अंग्रेजी, योगी सरकार तैयारी में

नई दिल्ली. 2 फरवरी 1835 का दिन, थॉमस बैंबिंगटन मैकाले इंग्लैंड के हाउस ऑफ कॉमंस में अपनी मशहूर स्पीच दे रहा था, कुछ लाइनें पढ़िए, ‘’ We must at present do our best to form a class who may be interpreters between us and the millions whom we govern, – a class of persons Indian in blood and colour, but English in tastes, in opinions, in morals and in intellect.’’। ये लाइनें उस मैकाले मिनट का हिस्सा हैं, जो भारतीयों को अरबी, फारसी या संस्कृत की बजाय अंग्रेजी पढ़ाने की वकालत करने के लिए तैयार किया गया था। मैकाले ने उस मशहूर स्पीच में कहा था कि मैंने अरबी और संस्कृत दोनों के बड़े ग्रंथों के ट्रांसलेशन पढ़े हैं और कोई इस बात से इनकार नहीं कर सकता कि यूरोप की किसी भी लाइब्रेरी का एक सैल्फ भर भारत और अरब देशों की पूरे साहित्य पर भारी है।

मैकाले कामयाब हुआ, आज बिना अंग्रेजी के आप किसी भी नौकरी की कल्पना नहीं कर सकते यहां तक कि चपरासी और वेटर की भी नहीं। मदरसे वाले जिद पर अड़े रहे, और नतीजा ये है कि मदरसे से निकले छात्र आउटडेटेड हो गए हैं, और स्वदेशी की वकालत करने वाली सरकार उन मदरसों को भी उसी मैकाले की शिक्षा पद्धति में लाने जा रही है, ठीक 183 साल बाद।

यूपी की योगी सरकार ने यूपी मदरसा बोर्ड के तहत आने वाले सभी मदरसों के लिए निर्देश जारी किए हैं कि वो हिंदी, उर्दू और इंगलिश में एनसीईआरटी की किताबों को लागू करने की दिशा में काम करे। साथ ही साइंस, मैथ, कम्यूटर और सोशल साइंस जैसे विषय भी पढ़ाने को कहा गया है, इसके लिए एनसीईआरटी का सिलेबस ही फॉलो करने को कहा गया है। तो क्या मदरसों का स्वरूप एकदम बदल जाएगा? क्या वो पब्लिक स्कूल की श्रेणी में आ जाएंगे? क्या मदरसों का इस्लामी तालीम से अब कोई लेना देना नहीं होगा? ऐसे तमाम सवाल आपके जेहन में उठ सकते हैं, लेकिन यूपी सरकार के अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री ने बयान जारी करके इस बारे में स्थिति थोड़ी स्पष्ट की है।

यूपी सरकार के अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री लक्ष्मी नारायण चौधरी कहते हैं, ‘’मदरसा शिक्षा दो भागों में बंटी होती हैं। एक दीनी शिक्षा, जिसमें इस्लाम से जुड़ी पढ़ाई की जाती है और दूसरा हिस्सा होता है जनरल एजुकेशन का। सरकार दीनी शिक्षा के मामले में बिलकुल दखल नहीं देगी। लेकिन जनरल एजुकेशन वाले हिस्से में मैथ, साइंस, अंग्रेजी और सोशल साइंस की पढ़ाई का प्रावधान किया जाएगा’’। हालांकि ये इतना आसान भी नहीं है। क्योंकि जो स्टूडेंट शुरुआती क्लास में पढ़ रहे हैं, उनके लिए उसी क्लास का एनसीआरटी का सिलेबस लागू किया जा सकता है। लेकिन ऊपर की क्लास के मदरसा छात्रों के लिए ये मुमकिन नहीं है, क्योंकि वो नीचे की क्लासों में ये सब पढ़ ही नहीं पाए। तो बेहतर उपाय ये है कि ऊपर की क्लासेज में पढ़ रहे छात्रों के लिए एनसीईआरटी के स्कूलों की छोटी क्लासेज का सिलेबस पढ़ाया जाए। धीरे धीरे ही ये प्रोग्राम बढ़ाया जाए।

हालांकि एनसीआरटी की मैथ, साइंस की किताबें पहले से ही उर्दू में छपती हैं, सो इससे काफी चीजें आसान हो जाएंगी। हाल ही में यूपी सरकार ने पहली कड़ी में मदरसों के लिए ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन करवाना अनिवार्य कर दिया था, उसके नतीजे भी आए, हर शहर में फर्जी मदरसे सामने आए, बंद भी हुए। कुल 16,500 मदरसे अब तक रजिस्टर्ड हो चुके हैं। ऐसे में उनके लिए नीतियां बनाना, स्कॉलरशिप्स की योजना बनाना आदि आसान हो गया है। अंग्रेजी, साइंस, मैथ और कम्यूटर्स की एजुकेशन के लिए इन विषयों के टीचर्स की भी जरुरत होगी तो सरकार ने यूपी अशासकीय अरबी एंड फारसी मदरसा मान्यता प्रशासन और सेवा रूल्स 2016 में संसोधन भी किया जाएगा।

एक दौर था जब भारत में संस्कृत और कई तमाम देसी भाषाओं में शिक्षा दी जाती थी, लेकिन इस्लाम के अनुयायी शासकों खासकर दिल्ली सल्तनत के शासकों और मुगल बादशाहों के काल में धीरे धीरे अरबी, फारसी और फिर उर्दू शासन-प्रशासन की भाषा बनने लगीं और इसी के चलते मदरसे खोले गए। मदरसों की पढ़ाई को इसलिए भी लोकप्रियता मिली, क्योंकि वो पढाई उन मुस्लिम शासकों के काल में सरकारी नौकरी दिलाने में, आम दिनों के कामकाज में सहायक होती थी। लेकिन जब अंग्रेजों को ये लगने लगा कि अब वो सैकड़ों सालों के लिए इस देश पर राज कर रहे हैं, तो उनके हक में कुछ बातें स्थाई होनी चाहिए। ऐसे में मशहूर इतिहासकार और एमपी जब सुप्रीम काउंसिल के सदस्य के तौर पर भारत आए तो उन्होंने ये आइडिया दिया कि भारतीयों की ऐसी क्लास तैयार की जाए जो देखने और खून से तो भारतीय हों, लेकिन सोच में अंग्रेज हों। ऐसे लोग ही हमारा शासन इंडिया पर हजारों साल तक कायम रख सकते हैं।

देखा जाए तो एक तरीके से इसे गुजरात मॉडल भी कहा जा सकता है। मोदी की गुजरात सरकार इस फॉर्मूले को पहले ही वहां लागू कर चुकी है, और वहां किसी मुस्लिम संगठन ने विरोध भी नहीं किया था। मोदी ने स्लोगन दिया था मुस्लिम युवा के एक हाथ में लैपटॉप और दूसरे मे कुरान होनी चाहिए। केन्द्र सरकार ने भी नई मंजिल स्कीम के तहत मदरसों के आधुनिकीकरण की बात कही है। हालांकि मुस्लिमों के लिए पहले भी ऐसी पहल हो चुकी हैं, अलीगढ़ मुस्लिम यूनीवर्सिटी और जामिया मिलिया यूनीवर्सिटी उसी का उदाहऱण हैं। लेकिन कई राज्यों में मदरसों मे आज भी मध्ययुगीन शिक्षा दी जा रही है, अब यूपी ने इसमें सुधार की पहल की है।

ऐसे में आज जबकि ना मैकाले जिंदा बचा है और ना ही बचे हैं अंग्रेज, मुस्लिम शासकों की सत्ता भी कभी की चली गई है। जाने से पहले वो संस्कृत को भी रसातल में पहुंचा चुके हैं। मैकाले के सिस्टम को आज देश के लिए जरुरी समझा जा रहा है और एक स्वदेशी के मंत्र में भरोसा करने वाली सरकार उसे उन मदरसों में लागू करने जा रही है, जिन्होंने मैकाले की उस घोषणा के 183 साल तक भी खुद को बचाए रखा। लेकिन वक्त के साथ वो अपनी प्रासंगिकता खो चुके हैं, मजबूरी या जरुरत, उन्हें ऐसा करना होगा और तमाम पढ़ा लिखा तबका इसका स्वागत भी करेगा…और करना भी चाहिए क्योंकि कम से कम मदरसे में पढ़ रहे वो लाखों छात्र तो मुख्य धारा में आएंगे, जो हमारी और आपकी तरह नही बन पा रहे हैं। हो सकता है इससे अक्सर आतंकी घटनाओं के बाद मदरसों पर उठने वाली उंगलियां ही बंद हो जाएं।

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Aanchal Pandey

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