नई दिल्लीः मध्य प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी को भले ही प्रचंड बहुमत मिल गई हो लेकिन इसके बावजूद सिंधिया खेमे में बहुत मायूसी छाई हुई है। क्योंकि परिणाम उनके मुताबिक नहीं आए हैं। जैसे कि प्रदेश में भाजपा की सूनामी चल रहा है। ग्वालियर चंबल में सिंधिया के 13 समर्थक चुनावी मैदान में थे, […]
नई दिल्लीः मध्य प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी को भले ही प्रचंड बहुमत मिल गई हो लेकिन इसके बावजूद सिंधिया खेमे में बहुत मायूसी छाई हुई है। क्योंकि परिणाम उनके मुताबिक नहीं आए हैं। जैसे कि प्रदेश में भाजपा की सूनामी चल रहा है। ग्वालियर चंबल में सिंधिया के 13 समर्थक चुनावी मैदान में थे, जिनमें से पांच समर्थकों ने मैदान फतह कर दिए, वहीं आठ सिंधिया समर्थकों को हार का मुंह देखना पड़ा। यही कारण है कि प्रचंड बहुमत से बीजेपी जीतने के बाद भी सिंधिया खेमे में मायूसी का माहौल है।
बता दें कि ग्वालियर चंबल अंचल की 34 सीटों में से बीजेपी को 18 सीटें मिली है। वहीं 16 सीटे कांग्रेस ने अपने नाम कर लिए हैं। जिनमें से लगभग 13 सीटों पर सिंधिया समर्थक चुनावी मैदान में थे। जिनमें से आठ सिंधिया समर्थक चुनाव हार गए। हारे हुए उम्मीदारों में रघुराज सिंह कंसाना, कमलेश जाटव, इमरती देवी, माया सिंह, सुरेश धाकड़, महेंद्र सिसोदिया, जसपाल जज्जी और हीरेंद्र सिंह बना शामिल है। वहीं जो सिंधिया समर्थक प्रत्याशी चुनाव जीते हैं, उनमें प्रद्युमन सिंह तोमर, मोहन सिंह राठौड़, महेंद्र यादव, जगन्नाथ रघुवंशी और वीरेंद्र यादव है।
ग्वालियर चंबल अंचल में जितने सिंधिया के समर्थक चुनाव जीते हैं, उससे ज्यादा हारे हैं। इसे सिंधिया की साख पर भी कई प्रश्न खड़े होगे। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि जब केंद्रीय मंत्री सिंधिया साल 2018 में कांग्रेस में थे, तब ग्वालियर चंबल अंचल से कांग्रेस ने 26 सीटें जीती थी और जिसका श्रेय सिंधिया को गया था। वहीं बगावत करने के बाद जब सिंधिया बीजेपी में आए और उसके बाद अपने साख को बचाने के लिए और उनके वर्चस्व को आंकने के लिए पार्टी ने इस बार के चुनाव में पूरी कमान सौंप दी थी। यही कारण है कि ग्वालियर चंबल अंचल में उन्होंने सबसे ज्यादा ताबड़तोड़ रैलियां और जनसभाएं की। वहीं पार्टी ने पूरी जिम्मेदारी उनपर ही सौंप दी, लेकिन इसके बावजूद सिंधिया का जादू नहीं चला।