नई दिल्ली. ईद-उल-अजहा मुस्लिम समुदाय का एक महत्वपूर्ण पर्व है। जिसे भारत में बकरीद के नाम से भी जाना जाता है। इसे ‘त्याग के त्योहार’ के रूप में मनाते हैं।
बकरीद जिल हिज्जा की 10वीं तारीख को बनाई जाती है। यहां बता दें कि जिल हिज्जा इस्लामिक कैलेंडर के हिसाब से आखिरी महीना है। ईद की तरह बकरीद की तारीख भी हर साल बदलती रहती है क्योंकि इस्लामी कलेंडर चांद के निकलने के हिसाब से तय होता है।
ईद उल अजहा 2021
भारत में ईद उल अजहा 21 जुलाई को मनाई जाएगी। इस दिन इस्लामिक कैलेंडर के हिसाब से 10 तारीख पड़ रही है। वैसे तो ईद उल अजहा की नमाज बकरीद की 10 तारीख को ही पढ़ी जाती है। लेकिन कुर्बानी 3 दिनों तक चलती है। यानी 10, 11 और 12 तारीख तक। जो भी कुर्बानी की हैसियत रखता है उसपर वाजिब है कि इन 3 दिनों में से किसी एक दिन कुर्बानी करे।
कैसे शुरू हुआ त्यौहार
ईद उल अजहा का त्यौहार हजरत इब्राहीम के त्याग से शुरू हुआ। दरअसल, हजरत इब्राहीम को लगातर ये ख्वाब आता था कि अल्लाह की राह में वो अपने बेटे इस्माइल को कुर्बान कर दें। इस ख्वाब के बारे में हजरत इब्राहीम ने अपने बेटे हजरत इस्माइल से सारी बात बताई।
पूरी बात सुनने के बाद हजरत इस्माइल ने अपने पिता से कहा कि अल्लाह की राह में काम करने के लिए वो पीछे न हटें और जो अल्लाह ने कहा है उसपर अमल करें।
इस बीच शैतान ने इब्राहीम को बहकाने की कोशिश भी की लेकिन हजरत इब्राहीम ने कंकड़ी(पत्थर) मारकर शैतान को भगा दिया।
इसके बाद कुर्बानी का दिन आया। जब पिता और पुत्र कुर्बानी के लिए तैयार थे तो अल्लाह कि ओर से फरिश्ते (एंजल) जिब्राइल द्वारा एक दुम्बा ( अरब का एक प्रकार का जानवर ) लाकर रख दिया गया जिसकी कुर्बानी हुई। इस तरह से अल्लाह ने हजरत इब्राहीम और हजरत इस्माइल का जो इम्तेहान लिया था वो उसमें सफल रहे।
इसी सिलसिले में कुर्बानी को रस्म शुरू हुई। जिस तरह हजरत इब्राहीम अपने सबसे चहीते बेटे को कुर्बानी के लिए तैयार हो गए थे उसी तरह लोग प्यार से पाले गए जानवर का त्याग देते हैं।
कुर्बानी किया गए जानवर का तीन हिस्सा किया जाता है। जिसमें एक घर वालों के लिए, दूसरा रिश्तेदारों के लिए ऑयर तीसरा ज़रूरतमंद लोगों में बांटा जाता है।
वहीं इसी महीने में लोग हज को भी जाते हैं और वहां कई मान्यताएं पूरी करते हैं जिसमें कुर्बानी और शैतान को पत्थर मारना भी शामिल है।
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