नई दिल्ली : मां बनना एक सुखद अनुभव होता है, लेकिन इस अनुभव से गुजरने के लिए उन्हें काफी तकलीफों से गुजरना पड़ता है. और ये तकलीफ़ शारीरिक ही नहीं होती मानसिक भी होती है यानी इस दौरान शरीर के साथ ही साथ उनके दिमाग में भी कई तरह के बदलाव होते हैं. ये बदलाव हर महिला के साथ होते हैं मगर ये बात अलग है कि कुछ इस पर ध्यान देती है तो कुछ अनदेखी कर देती है और ये बदलाव कुछ समय के लिए नहीं बल्कि बच्चे के जन्म के दो साल या लंबे समय तक बने रह सकते हैं. चलिए जानते हैं आखिरकार ये बदलाव कैसे होते हैं इसके पीछे किस हार्मोन्स का हाथ है
अध्ययन की रिपोर्ट के अनुसार ये शोध महिलाओं के ब्रेन के स्कैंस के आधार पर किया गया है. गर्भवती महिलाओं की शारीरिक संरचना के साथ साथ मस्तिष्क की संरचना भी बदलती है. इन्हीं बदलावों की वज़ह से महिलाएं अपने बच्चे से जुड़ाव महसूस करती हैं तथा उनकी ज्यादा देखभाल करती हैं.
शोध के मुताबिक पाया गया कि गर्भवती महिलाओं के दिमाग में कई जगह ग्रे मैटर की मात्रा कम हो जाती है. ये कमी लगभग दो साल तक बनी रहती है. इसी बदलाव की वजह से मां को नवजात बच्चे की जरूरतों को समझने में मदद मिलती हैं. साथ ही दिमाग में दिमाग की संरचना में होने वाले ये बदलाव हर मां बनने वाली महिलाओं में पाए जाते है. शोधकर्ताओं का कहना है कि इन्हीं बदलावों के कारण कंप्यूटर भी इनकी पहचान खुद ही कर लेता था. इस शोध में एमआरआई (MRI ) की मदद से पहली बार मां बनने जा रही 25 से ज्यादा महिलाओं के मां बनने से पहले उनकी मस्तिष्क की संरचना देखी गई और बाद की भी मस्तिष्क की संरचना को देख कर दोनों की तुलना की गई.
यूनिवर्सिटी ऑफ ब्रिटिश कोलंबिया के एक शोध के अनुसार मां बनने में महिलाओं के मस्तिष्क में काफी बदलाव होते हैं.ये बदलाव खास कर सोचने-समझने और महसूस करने की शक्ति पर प्रभाव डालती है. नेचर न्यूरो साइंस में प्रकाशित एक अध्ययन के मुताबिक गर्भावस्था में महिलाओं के मस्तिष्क में कई जगह ग्रे मैटर की मात्रा कम हो जाती है. ये ग्रे मैटर मस्तिष्क कि केंद्रीय तंत्रिका तंत्र में एक प्रकार का ऊतक होता है जो दिन-प्रतिदिन सामान्य कामों को करने की अनुमति देता है जिसकी वजह से नई मां की याददाश्त कमजोर होने लगती है.
गर्भावस्था में महिलाओं की याददाश्त में कमी आना आम बात है और मेडिकल साइंस की भाषा में यादाश्त की कमी को एमनीसिया कहते है. मगर यही मां की याददाश्त के साथ होता है तो उसको ‘मॉमनीसिया’ कहते हैं. यह बदलाव एक प्रकार न्यूरो बायोलॉजिकल बदलाव होता है. जो मां बनने के दौरान होता है इससे याददाश्त पर असर पड़ता है मगर ये बच्चे से जुड़ाव में भी मददगार साबित होता है. नई मां ज्यादा भावुक होती हैं और हर छोटी बात पर रोते हैं बच्चे को लेकर ज्यादा परेशान होती देखी जाती हैं. ये सब कुछ ‘मॉमी ब्रेन’ की वज़ह से ही होता है. ये एक सामान्य प्रतिक्रिया है इससे परेशान होने की जरूरत नहीं है
वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन (WHO ) की 2018 में जारी हुई एक शोध रिपोर्ट के अनुसार भारत में 22 फीसदी से ज्यादा गर्भवती महिलाएं पोस्टपार्टम डिप्रेशन की शिकार होती है. उनके अनुसार इससे निपटारा पाने के लिए भारत को मातृ स्वास्थ्य देखभाल को लेकर ज्यादा सतर्कता की जरूरत है. ऐसी समस्याओं को नजरअंदाज ना करें ऐसा करने से मां और बच्चे दोनों की सेहत पर बुरा असर पड़ सकता है.
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