नई दिल्ली. शायद ही कोई दशक ऐसा जाता हो, जब ये विवाद न उठता हो कि आर्य बाहर से भारत में आये या भारत की भूमि के ही मूल निवासी थे. कभी कोई नया उत्खनन होता है या किसी न किसी शोध की रिपोर्ट आती है, जिससे अलग अलग निष्कर्ष निकाले जाते हैं और विवाद हो जाता है. इस साल भी 2 ऐसी ही रिपोर्ट मीडिया में सामने आयी हैं, जिसके चलते फिर एक बार ये विवाद सतह पर आ गया है कि आर्य यहीं के थे या बाहर से आये थे.
दरअसल आजादी से पहले ही ये विवाद उठ गया था, जब सिंधु घाटी सभ्यता से जुड़े स्थानों के उत्खनन होने शुरू हुए और कुछ विदेश विशेषज्ञों ने कहना शुरू किया कि सिंधु घाटी सभ्यता के लोगों का वैदिक सभ्यता के लोगों से कोई वास्ता नहीं था. सिंधु घाटी सभ्यता की लिपि आज तक नहीं पढ़ी जा सकी है और ये सारे निष्कर्ष या अनुमान बाकी मिली वस्तुओं के आधार पर लगाये गए.
उनका मानना था कि सिंधु घाटी सभ्यता नगरीय सभ्यता थी और वेदों को पढ़कर लगता है की वैदिक सभ्यता ग्रामीण सभ्यता थी. विदेशों में कुछ अभिलेख पाए गए जिनके देवता आर्यों के देवों से मिलते जुलते लगते हैं. ऐसे में तिलक और दयानंद सरस्वती जैसे लोगों ने भी अलग अलग तर्क दिए, तो डॉ आंबेडकर ने उन तर्कों को ख़ारिज भी कर दिया. कुछ लोगों ने तर्क दिया कि अंग्रेजों, मुसलमानों आदि ने अपने बाहरी होने को सही साबित करने के लिए इस सिद्धांत को बढ़ावा दिया की आर्य भी बाहरी हैं. नतीजा ये हुआ कि आज तक कोई हल नहीं निकला और अब ये मामला राजनैतिक हो गया.
अब जैसे ही कोई नया उत्खनन होता है, या कोई नयी रिपोर्ट आती है, सांस्कृतिक, इतिहास और मीडिया में बैठे अलग अलग खेमे के लोग उसे हवा देने लगते है. अब फिर 2 रिपोर्ट्स आयीं हैं, क्या है उनका सच. जानिए विष्णु शर्मा के साथ इस वीडियो रिपोर्ट में-
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