नई दिल्ली: वंदे भारत ट्रेनों के निर्माण को लेकर भारत और रूस के बीच विवाद छिड़ गया है. ये विवाद एक संयुक्त उद्यम में हिस्सेदारी को लेकर है. भारत की कंपनी चाहती है कि संयुक्त उद्यम में उसकी हिस्सेदारी अधिक हो रूसी कंपनी जिसके खिलाफ है. इसी बात को लेकर दोनों कंपनियों के बीच झगड़े की नौबत आ गई है.
भारत और रूस के बीच वंदे भारत ट्रेनों के निर्माण से जुड़े एक संयुक्त उद्यम में हिस्सेदारी को लेकर विवाद बढ़ गया है. संयुक्त उद्यम में शामिल भारत की कंपनी चाहती है कि उसकी हिस्सेदारी अधिक हो और रूसी कंपनी इसके खिलाफ है जिसे लेकर दोनों कंपनियों में झगड़े की नौबत आ गई है.
दरअसल 120 नई वंदे भारत ट्रेनों के निर्माण और अगले 35 सालों तक उनके रखरखाव के लिए भारत और रूस की कंपनियों वाले संयुक्त उद्यम ने 30,000 करोड़ का कॉन्ट्रैक्ट हासिल किया है. रूसी कंपनी Metrowagonmash ट्रांसपोर्ट इंजीनियरिंग कंपनी Transmashholding का हिस्सा है जिसे रोलिंग स्टॉक के विकास, डिजाइन और निर्माण में विशेषज्ञता है. भारत सरकार की कंपनी रेल विकास निगम लिमिटेड (RVNL) के साथ इस कंपनी ने 120 वंदे भारत ट्रेनों के निर्माण का कॉन्ट्रैक्ट जीता है.संयुक्त उद्यम में Metrowagonmash की 80 फीसद और RVNL की 26 प्रतिशत की ही हिस्सेदारी है. इस बात को लेकर ही पूरा विवाद है जहां RVNL चाहती है कि उसे संयुक्त उद्यम में 69 फीसदी की बड़ी हिस्सेदारी दी जाए.
ऐसे में भारतीय कंपनी की मांग है कि Metrowagonmash की हिस्सेदारी को घटाया जाए और 26 फीसद किया जाए. लोकोमोटिव इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम्स (LES) को भी 5 प्रतिशत की ही हिस्सेदारी दी जाए जो इस डील का तीसरा हिस्सेदार है.
रूसी कंपनी को लिखे एक पत्र में भारतीय कंपनी ने कहा है कि उसने एक पूर्ण स्वामित्व वाली कंपनी Kinet Railway Solutions Ltd (KRSL) को खुद में शामिल कर लिया है. ये पत्र 25 अप्रैल, 2023 को लिखा गया है. एक रिपोर्ट के अनुसार पत्र में रूसी कंपनी ने सूचना दी है कि एसपीवी के रूप में कंपनी काम करेगी। मैन्यूफैक्चरिंग कम मेंटेनेंस एग्रीमेंट (MCMA) प्रोजेक्ट पर वह रेल मंत्रालय के साथ समझौता करेगी फिर इसे लागू करेगी. क्योंकि RVNL एक सरकारी कंपनी है इस नाते सरकार से क्लियरेंस हासिल करने में उसे काफी आसानी होगी. इसके अलावा कामगारों को रेल निर्माण प्रोजेक्ट में शामिल करने के विषय को भी अच्छे से संभाला जा सकता है.
रूस-यूक्रेन युद्ध के संदर्भ में इस पत्र में कहा गया है, ‘वर्तमान भू-राजनीतिक स्थिति और इस तथ्य को देखते हुए कि RVNL एक भरोसेमंद सरकारी कंपनी है, जिसके सरकारी वित्तीय संस्थानों के साथ मजबूत संबंध हैं, उसके लिए घरेलू बाजार से कम दरों पर पैसा जुटाना आसान होगा.’ भारतीय कंपनी ने इस डील को दोनों ओर से लाभदायक बताया है.
इसी कड़ी में रूसी कंपनी ने भारतीय सरकारी कंपनी के प्रस्ताव का विरोध किया है और रूसी सरकार के समक्ष मामला उठाया है. फिलहाल इस मामले पर दोनों कंपनियों में खींचतान जारी है. संभावना है कि भारत और रूस के शीर्ष नेतृत्व इस मसले को सुलझाए.
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