लखनऊ। मैनपुरी में उपचुनावों के लेकर जहाँ भाजपा भरपूर प्रयास कर रही है वहीं रामपुर एवं आज़मगढ़ की सीट हारने के बाद समाजवादी पार्टी के लिए मैनपुरी की सीट किसी चुनौती से कम नहीं है। समाजवादी पार्टी के टिकट पर अखिलेश यादव की पत्नी एवं पूर्व सांसद डिंपल यादव भाजपा को टक्कर देंगी। इस चुनाव […]
लखनऊ। मैनपुरी में उपचुनावों के लेकर जहाँ भाजपा भरपूर प्रयास कर रही है वहीं रामपुर एवं आज़मगढ़ की सीट हारने के बाद समाजवादी पार्टी के लिए मैनपुरी की सीट किसी चुनौती से कम नहीं है। समाजवादी पार्टी के टिकट पर अखिलेश यादव की पत्नी एवं पूर्व सांसद डिंपल यादव भाजपा को टक्कर देंगी। इस चुनाव में समाजवादी पार्टी एवं अखिलेश यादव की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। मैनपुरी लोकसभा सीट हारने का अर्थ यह होगा कि, अखिलेश यादव अपने पिता की विरासत को नहीं बचा पाए।
मैनपुरी में धार्मिक ध्रुवीयकरण की संभावनाएं शून्य हैं क्योंकि यहाँ पर मुस्लिम मतदाताओं की संख्या मात्र 50-60 हज़ार के बीच है। बल्कि इस सीट पर जातीय समीकरण काम करता है. मुलायम सिंह की मृत्यू के बाद हो सकता है की सहानुभूति के तौर पर समाजवादी पार्टी को कुछ बढ़त मिल जाए लेकिन मोदी एवं हिंदुत्व फैक्टर के चलते समाजवादी पार्टी को यहाँ समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। मैनपुरी में यादव, शाक्य, ब्राह्मण, जाटव, लोधी और मुस्लिम कम्यूनिटी के लोग रहते हैं।
सवा चार लाख यादव एवं सवा तीन लाख शाक्य वोटर्स से भरी विधानसभा में क्षत्रिय मतदाता 2.25लाख, ब्राह्मण मतदाता 1.10 लाख जाटव 1.20 लाख एवं मुस्लिम मतदाताओं की संख्या लगभग 55 हज़ार तक है।
मैनपुरी सीट में शाक्य मतदाता किसी भी उम्मीदवार को विजयी बनाने में महत्वपूर्ण योगदान निभाते है तो वहीं जाटव समुदाय का मत भी अहम माना जाता है। इस चुनाव को मुलायम सिंह के जीवित होने वाले समय से जोड़कर देखना ग़लत होगा। भाजपा ने शाक्य उम्मीदवार को टिकट देकर चुनाव को अधिक दिलचस्प बना दिया है। शाक्य उम्मीदवार के होने से शाक्य मतदाताओं का अधिकतम वोट भाजपा के पाले में आने की संभावनाएं हैं साथ ही यादव समुदाय का भी एक तबका मोदी समर्थक है और दलित वोट पर भाजपा पहले ही सेंध लगा चुकी है। इसलिए रामपुर एवं आज़मगढ़ के चुनावों को देखते हुए समाजवादी पार्टी के लिए यह चुनाव किसी बड़ी कसौटी से कम नहीं है।