दिल्ली-NCR में इतने भूकंप की क्या है वजह? जानिए Earthquake की Theory

नई दिल्ली: नेपाल में मंगलवार दोपहर आए भूकंप के झटकों ने लोगों के दिलों में दहशत कायम करने का काम किया है। इसका असर दिल्ली-एनसीआर में भी देखने को मिला था। नेशनल सेंटर फॉर सीस्मोलॉजी (NCS) ने बताया कि इस भूकंप का केंद्र नेपाल में कालिका (जगह का नाम) था। ख़बर के मुताबिक़, रिक्टर स्केल […]

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दिल्ली-NCR में इतने भूकंप की क्या है वजह? जानिए Earthquake की Theory

Amisha Singh

  • January 25, 2023 4:41 pm Asia/KolkataIST, Updated 2 years ago

नई दिल्ली: नेपाल में मंगलवार दोपहर आए भूकंप के झटकों ने लोगों के दिलों में दहशत कायम करने का काम किया है। इसका असर दिल्ली-एनसीआर में भी देखने को मिला था। नेशनल सेंटर फॉर सीस्मोलॉजी (NCS) ने बताया कि इस भूकंप का केंद्र नेपाल में कालिका (जगह का नाम) था। ख़बर के मुताबिक़, रिक्टर स्केल पर भूकंप की तीव्रता 5.8 मापी गई। भूकंप का एपिसोड मिट्टी की सतह के अंदर 10 किलोमीटर के अंदर था।

 

नेपाल के अलावा, भूकंप के झटकों को 30 सेकंड के लिए मसहूस भी किया गया। इसका प्रभाव उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के कई शहरों में देखा गया है। दिल्ली-एनसीआर की बात करें तो यहं बीते एक साल में कई बार भूकंप के झटके महसूस किए जा चुके हैं. यहाँ ऐसा क्यों होता रहा है…इस सवाल पर अब वैज्ञानिकों ने जवाब दिया है।

 

 

दिल्ली-एनसीआर में भूकंप क्यों आते हैं?

क्योंकि दिल्ली उत्तरी क्षेत्र में है और इसे जोन 4 का भूकंप कहा जाता है। यही वजह है कि दिल्ली-एनसीआर में साल में कई बार भूकंप के झटके महसूस किए जाते हैं। आबो-हवा में तब्दीली के चलते भूकंप केंद्र भी बदल रहे हैं। ऐसा टेक्टोनिक प्लेटों के खिसकने के कारण हो रहा है। आपको बता दें, दिल्ली हिमालय के करीब है, जो भारतीय और यूरेशियन टेक्टोनिक प्लेटों के मिलने से बनी है। इन प्लेटों में टकराव के चलते दिल्ली-एनसीआर, कानपुर और लखनऊ जैसे शहर सबसे संवेदनशील हैं। इससे आने वाले समय में बड़े भूकंप की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता है।

 

 

भूकंप क्यों और कैसे आते हैं?

भूकंप को समझने से पहले आपको धरती के नीचे की प्लेटों की संरचना को समझने की जरूरत है। पूरी पृथ्वी 12 टेक्टॉनिक प्लेटों पर स्थित है। इन प्लेटों के टकराने से जो ऊर्जा निकलती है उसे भूकंप कहते हैं। दरअसल, धरती के नीचे ये प्लेटें बेहद धीमी रफ्तार से घूमती या खिसकती हैं। हर साल 4-5 मिमी जगह से खिसक जाती है। इस दौरान कुछ प्लेटें दूसरों के नीचे सरक जाती हैं और कुछ गायब हो जाती हैं। इस दौरान जब प्लेट आपस में टकराती हैं तो भूकंप के हालात बन जाते है।

 

 

रिक्टर स्केल और भूकंप

आपको बता दें, भूकंपों को मापने और उनके खतरे के अंदाज़ा करने वाले पैमाने को रिक्टर स्केल कहा जाता है। भूकंपीय तरंगों की तीव्रता से पता चलता है कि भूकंप कितना ख़तरनाक था और इसका केंद्र कहाँ था। इसकी खोज अमेरिकी वैज्ञानिक चार्ल्स एफ रिक्टर ने की थी, लिहाज़ा उनके नाम पर इस यंत्र को रिक्टर स्केल का नाम दिया गया। इससे तरंगों की बुनियाद पर भूकंप की तीव्रता और ख़तरे का पता लगाया जाता है।

 

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