नई दिल्ली। आज यानी 26 दिसंबर को सिखों के दसवें गुरु गुरु गोविंद सिंह के बेटे बाबा जोरावर सिंह और बाबा फतेह सिंह के शहादत दिवस पर वीर बाल दिवस मनाया जाता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनके शहादत दिवस पर उन्हें नमन किया है। गुरु गोविंद सिंह जी के दो छोटे साहिबजादों ने छोटी सी उम्र में अपने धर्म की रक्षा के लिए सर्वोच्च बलिदान दिया था। आइये जानते हैं सिखों की इतिहास की सबसे बड़ी कहानी के बारे में-
9 जनवरी 2022 को गुरु गोविंद सिंह जी के प्रकाश पर्व पर पीएम मोदी ने घोषणा की थी कि उनके दोनों पुत्रों बाबा जोरावर सिंह और बाबा फतेह सिंह की शहादत को नमन करते हुए हर साल 26 दिसंबर को वीर बाल दिवस मनाया जाएगा। तभी से आज के दिन हम सभी भारतीय उन्हें याद करते हुए सच्ची श्रद्धांजलि देते हैं। साल 1705 में मुगलों ने गुरु गोविंद सिंह जी से बदला लेने के लिए उनपर हमला किया था। इस हमले में परिवार बिछड़ गया।
माता गुजरी दोनों पोतों को लेकर अपने रसोइए गंगू के साथ उसके घर मोरिंडा चली गई। गंगू ने माता गुजरी के पास सोने की मुहरें देखी तो उसके मन में लालच आ गया और उसने औरंगजेब को इसकी सूचना दे दी। सरहिंद के नवाब वजीर खान के सिपाहियों ने माता गुजरी और दोनों साहिबजादों को पकड़ लिया। पूस की सर्द रात में महज 7 और 5 साल के बच्चे ने मुगलों के सामने घुटने टेकने से मना कर दिया। माता गुजरी देवी ने उन्हें सिखाया कि कुछ भी हो जाए लेकिन अपने धर्म पर टिके रहना।
नन्हे साहिबजादों को वजीर खान ने धर्म बदलकर इस्लाम अपनाने को कहा लेकिन दोनों बच्चें बोले सो निहाल सत श्री अकाल के जयकारे लगाने लगे। वजीर खान ने कहा कि कल तक धर्म नहीं बदला तो मरने के लिए तैयार रहना। अगले दिन भी दोनों साहिबजादों ने धर्म बदलने से मना कर दिया और जयकारा लगाने लगे। फिर क्या था वजीर खान गुस्सा हो गया और दोनों को दीवार में जिंदा चुनवा दिया। 26 दिसंबर 1705 को दो सिख बच्चों ने इस्लामिक आक्रांताओं के सामने झुकने से मना कर दिया और शहादत चुनी।
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