नई दिल्ली. राहुल गांधी ने कांग्रेस प्रेसीडेंट पद के लिए एक खास तारीख 16 दिसम्बर ही क्यों चुनी? अगर आपने कभी गौर किया होगा तो पाया होगा कि राहुल गांधी अगर सार्वजिनक भाषणों में अपने परिवार से किसी का सबसे ज्यादा नाम लेते हैं तो वो हैं उनकी दादी। गुजरात में भी उन्होंने बताया कि कैसे वो भी अपनी दादी की तरह ही शिव भक्त हैं। इंदिरा गांधी की जब मौत हुई थी तो उनकी लाश को रुद्राक्ष की वो माला पहनाई गई थी, जो उन्हें कभी आनंदमयी मां ने दी थी। गुजरात में आखिरी दिन प्रेस कॉन्फ्रेंस में राहुल ने भी एक रुद्राक्ष की माला पहन रखी थी। ऐसे में ये तारीख भी जुड़ी है उनकी दादी से, बल्कि दादी की उस सबसे बड़ी कामयाबी से जिसकी बराबरी कर पाना आज के किसी नेता के वश की बात नहीं।
तारीख 16 दिसम्बर, इस नाम से एक फिल्म भी बॉलीवुड ने यूं ही नहीं बना ली थी, उसकी प्रेरणा भी इंदिरा गांधी की यही कामयाबी थी। इसी दिन पाकिस्तान की सेना ने ईस्ट पाकिस्तान के शहर ढाका में भारतीय सेना के सामने सरेंडर कर दिया था। 16 दिसम्बर ही वो तारीख थी, जिस दिन 1971 में तय हो गया था कि पाकिस्तान के अब दो टुकड़े हो जाएंगे और दोनों के बीच में होगा भारत। यानी कम से कम एक तरफ से खतरा खत्म। ये एक बड़ी वजह हो सकती है कि राहुल ने ये तारीख अपनी ताजपोशी के लिए चुनी हो।
जिनको नहीं पता उनके लिए ये घटनाक्रम जानना दिलचस्प होगा। जब इंदिरा ने 1970 में लोकसभा भंग करके चुनाव करवाने की सलाह दी थी, उससे पहले ही पाकिस्तान के जरनल याह्या खान ने भी फ्री एंड फेयर इलेक्शन का ऐलान पाकिस्तान में किया। लेकिन दाव उलटा पड़ गया। अवामी लीग के शेख मुजीबुर रहमान ने ना केवल ईस्ट पाकिस्तान की 91 फीसदी सीटें जीत लीं बल्कि पूरे पाकिस्तान में उनकी पार्टी पर सबसे ज्यादा सीटें थीं, उन्होंने पीएम पद पर दावा ठोक दिया।
याह्या खान और पीपीपी के भुट्टो ने हाथ मिला लिया और ईस्ट एंव वेस्ट पाकिस्तान के बीच दवाब बढ़ गया। 40,000 पाक सैनिक ईस्ट पाकिस्तान में उतरे, और मुजीब व उनके समर्थकों को जेल मे डाल दिया, अत्याचार शुरू हो गए। भारत में शरणार्थियों का आना शुरू हो गया। इंदिरा ने कमांडर इन चीफ सैम मानेकशॉ को बुलाया, सैम ने कहा जंग हो सकती है। लेकिन अभी जंग करने का वक्त नहीं क्योंकि नक्सलियों के ऑपरेशन में कई बटालियनें लगी हैं, जिनको लाने में एक से डेढ़ महीना लग सकता है, पंजाब हरियाणा में फसलें काटने का वक्त है, युद्ध शुरू होने से सड़कें बंद हो जाएंगी, अनाज देश के किसी भी हिस्से में नहीं पहुंच पाएगा, इसके अलावा कुछ दिन में चीनी बॉर्डर पर दर्रे भी खुल जाएंगा। उसका भी खतरा है, सर्दी में ही बंद होंगे वो।
लेकिन जेपी हो गए थे इंदिरा गांधी से नाराज
इंदिरा ने फाइनेंस मिनिस्ट्री के प्रधान सचिव आईजी पटेल से भी पूछा कि क्या अमेरिका हमारे खिलाफ हो जाए तो हम झेल सकते हैं, तो पटेल का जवाब था कि हमारे पास पर्याप्त विदेशी मुद्रा है और करीब 6 महीनों का अनाज भी।
इंदिरा ने रिफ्यूजी कैम्पों का बॉर्डर पर दौरा किया, शरणार्थियों के लिए सैकड़ो कैम्प खोले गए, तमाम तरह की राहत उनको दी गई। ऐसे वक्त में जयप्रकाश नारायण ने कई देशों की राजधानियों का दौरा कर पाकिस्तान की ज्यादतियों के बारे में आवाज उठाई, दिल्ली आकर भी उन्होंने इस विषय में वर्ल्ड कॉन्फ्ररेंस बुलाई, लेकिन इंदिरा ना खुद गई और ना अपनी पार्टी के किसी सदस्य को जाने दिया। जिससे जेपी नाराज हो गए और बयान दिया कि वो खुद को समझती क्या हैं, मैंने उन्हें जब से देखा है जब वो फ्रॉक पहनती थीं। इंदिरा नहीं चाहती थीं कि उनके मन मे क्या है ये किसी को पता चले। शायद ये एक बड़ी वजह थी जेपी की उस नाराजगी की जिसके चलते बाद में उन्होंने सम्पूर्ण क्रांति का नारा देकर इंदिरा के खिलाफ मोर्चे की अगुवाई की थी।
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