जोधपुर: उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने शनिवार को न्यायपालिका की स्वतंत्रता और न्याय के प्रति प्रतिबद्धता की सराहना की। उन्होंने जून 1975 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा लागू किए गए आपातकाल को “स्वतंत्रता के बाद का सबसे काला दौर” बताया। धनखड़ ने इस दौरान न्यायपालिका की भूमिका और इसके प्रभाव पर भी विचार किया।
धनखड़ ने कहा कि आपातकाल के दौरान सर्वोच्च न्यायालय ने लोगों के मौलिक अधिकारों की रक्षा में असफलता का प्रदर्शन किया और “तानाशाही शासन” के आगे झुक गए। उन्होंने आरोप लगाया कि न्यायपालिका ने यह फैसला सुनाया कि आपातकाल के दौरान किसी भी व्यक्ति को न्यायालय में अधिकारों के प्रवर्तन की अनुमति नहीं थी। इसके परिणामस्वरूप हजारों लोगों को बिना दोष के गिरफ्तार किया गया।
धनखड़ ने विशेष रूप से राजस्थान उच्च न्यायालय की सराहना की, जो आपातकाल के बावजूद नागरिकों की हिरासत और गिरफ्तारी की वैधता को चुनौती देने में सफल रहा। उन्होंने कहा कि अगर न्यायपालिका ने तानाशाही के सामने नहीं झुका होता, तो देश को अधिक समय तक इंतजार नहीं करना पड़ता और विकास की राह पर बहुत पहले आगे बढ़ जाता।
उपराष्ट्रपति ने 25 जून को “संविधान हत्या दिवस” के रूप में मनाने के लिए सरकार की सराहना की। उन्होंने चेतावनी दी कि कुछ ताकतें जो लोकतंत्र को कमजोर करने का प्रयास कर रही हैं, वे हमारे मौलिक संवैधानिक संस्थानों का दुरुपयोग कर सकती हैं। धनखड़ ने नागरिकों से सतर्क रहने की अपील की और राष्ट्रीय हितों को हर चीज से ऊपर रखने का आग्रह किया।
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