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भूकंप के मंज़र से दुनियाभर में तबाही! जानें दिल्ली-NCR की इमारतें कितनी मज़बूत

नई दिल्ली: तुर्की में आए भूकंप में बहुमंजिला इमारतें भरभरा कर ढह गईं। तबाही का ख़ौफ़नाक मंजर हर तरफ नजर आ रहा था। तुर्की के बाद सबसे उन इलाकों की चर्चा शुरू हो गई है जो बड़े भूकंपीय जोखिम वाले इलाके है। आपको बता दें, देश की राजधानी और NCR, देहरादून, अमृतसर, शिमला, चंडीगढ़ भूकंप […]

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भूकंप के मंज़र से दुनियाभर में तबाही! जानें दिल्ली-NCR की इमारतें कितनी मज़बूत
  • February 11, 2023 9:23 pm Asia/KolkataIST, Updated 2 years ago

नई दिल्ली: तुर्की में आए भूकंप में बहुमंजिला इमारतें भरभरा कर ढह गईं। तबाही का ख़ौफ़नाक मंजर हर तरफ नजर आ रहा था। तुर्की के बाद सबसे उन इलाकों की चर्चा शुरू हो गई है जो बड़े भूकंपीय जोखिम वाले इलाके है। आपको बता दें, देश की राजधानी और NCR, देहरादून, अमृतसर, शिमला, चंडीगढ़ भूकंप के जोन IV में आते हैं। सबसे खतरनाक जोन V होता है उसके बाद सबसे ज्यादा भूकंप का जोखिम जोन IV इलाके में इमारतों के लिए है। ऐसे में सवाल यह है कि क्या दिल्ली-NCR की भूकंपरोधी इमारतों और सामान्य इमारतों में क्या अंतर होता है और दिल्ली-NCR की वर्तमान स्थिति क्या है।

 

➨ दिल्ली-NCR की इमारतों के लिए जरूरी गाइडलाइन

आपको बता दें, इमारतों को भूकंप से होने वाले नुकसान से बचाने के लिए बिल्डिंग कोड जारी किए गए हैं। बिल्डिंग को तैयार करने के लिए इमारत को भूकंपरोधी कैसे बनाया जाए। इन नियमों में इसका उल्लेख है। भारतीय मानक ब्यूरो (Bureau of Indian Standards) के अनुसार, जोन IV के अंतर्गत आने वाले दिल्ली-एनसीआर में IS 4326-1993 बिल्डिंग कोड लागू करना अनिवार्य है।

 

➨ जानिए नियम

IIT कानपुर के हवाले से आपको बता दें, बिल्डिंग रेगुलेशन IS 4326-1993 में कहा गया है कि मोर्टार में सीमेंट और बालू का अनुपात 1:4 या 1:6 होना चाहिए। वर्टिकल पिलर का साइज बिल्डिंग के प्लान के हिसाब से तय किया जाएगा। क्षैतिज स्तंभ बाहर और अंदर कंक्रीट से बना होना चाहिए। कमरों के दोनों तरफ खड़े खंभों के किनारों पर ईंटों का इस्तेमाल किया गया था। खिड़कियां खड़ी खंभों के सहारे बनाई जाएँगी , लेकिन खुली खिड़की 60 सेंटीमीटर से ज्यादा नहीं होनी चाहिए। जिन चीजों से खिड़कियों और दरवाजों को बनाने की जरूरत है, उन्हें पहले से ही बनाने की जरूरत है।

 

➨ दिल्ली-एनसीआर की इमारतें कितनी सुरक्षित

भूकंप विज्ञान विभाग की रिपोर्ट की मानें तो, नोएडा, गुरुग्राम, गाजियाबाद, फरीदाबाद समेत दिल्ली-एनसीआर में बड़ी संख्या में ऐसे अपार्टमेंट और घर हैं, जो भूकंप के तेज झटकों को सहन नहीं कर सकते। दिल्ली के तो कई इलाकों में अवैध बस्तियाँ और कॉलोनियाँ हैं जहाँ जीवन खतरे से खाली नहीं है।

➨ भूकंपरोधी और सामान्य इमारतों में फ़र्क़

आपको बता दें, इमारत को कमजोर करने वाली कई चीजें हैं। उदाहरण के लिए, निर्माण में इस्तेमाल के गए सरिया सर्टिफायड नहीं होते हैं। इमारत के चारों ओर पानी जमा होने, कभी-कभी मेंटिनेंस की कमी, वर्षों से पेंट की कमी और कंक्रीट के लगातार उखड़ने की समस्या है। यदि इन बातों पर ध्यान न दिया जाए तो भवन कमजोर हो जाता है और भूकंप आने पर सबसे पहले वही भवन ढहते हैं। इमारत सामान्य है या भूकंपरोधी, बाहर से देखने पर पता नहीं चल सकता। यह इसे बनाने के लिए इस्तेमाल सामग्री और बीम के मैटेरियल पर निर्भर करता है।

 

➨ दिल्ली-एनसीआर में भूकंप क्यों आते हैं?

क्योंकि दिल्ली उत्तरी क्षेत्र में है और इसे जोन 4 का भूकंप कहा जाता है। यही वजह है कि दिल्ली-एनसीआर में साल में कई बार भूकंप के झटके महसूस किए जाते हैं। आबो-हवा में तब्दीली के चलते भूकंप केंद्र भी बदल रहे हैं। ऐसा टेक्टोनिक प्लेटों के खिसकने के कारण हो रहा है। आपको बता दें, दिल्ली हिमालय के करीब है, जो भारतीय और यूरेशियन टेक्टोनिक प्लेटों के मिलने से बनी है। इन प्लेटों में टकराव के चलते दिल्ली-एनसीआर, कानपुर और लखनऊ जैसे शहर सबसे संवेदनशील हैं। इससे आने वाले समय में बड़े भूकंप की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता है।

➨ भूकंप क्यों और कैसे आते हैं?

भूकंप को समझने से पहले आपको धरती के नीचे की प्लेटों की संरचना को समझने की जरूरत है। पूरी पृथ्वी 12 टेक्टॉनिक प्लेटों पर स्थित है। इन प्लेटों के टकराने से जो ऊर्जा निकलती है उसे भूकंप कहते हैं। दरअसल, धरती के नीचे ये प्लेटें बेहद धीमी रफ्तार से घूमती या खिसकती हैं। हर साल 4-5 मिमी जगह से खिसक जाती है। इस दौरान कुछ प्लेटें दूसरों के नीचे सरक जाती हैं और कुछ गायब हो जाती हैं। इस दौरान जब प्लेट आपस में टकराती हैं तो भूकंप के हालात बन जाते है।

➨ रिक्टर स्केल और भूकंप

भूकंपों को मापने और उनके खतरे के अंदाज़ा करने वाले पैमाने को रिक्टर स्केल कहा जाता है। भूकंपीय तरंगों की तीव्रता से पता चलता है कि भूकंप कितना ख़तरनाक था और इसका केंद्र कहाँ था। इसकी खोज अमेरिकी वैज्ञानिक चार्ल्स एफ रिक्टर ने की थी, लिहाज़ा उनके नाम पर इस यंत्र को रिक्टर स्केल का नाम दिया गया। इससे तरंगों की बुनियाद पर भूकंप की तीव्रता और ख़तरे का पता लगाया जाता है।

 

➨ 3-4 तीव्रता

जब 3 से 3.9 की तीव्रता वाला भूकंप आता है तो व्यक्ति झटके को अच्छी तरह महसूस कर सकता है। छत के पंखे भी हिलने लगते हैं। दरवाजों और खिड़कियों पर लगे पर्दे भी हिल जाते हैं। घर में अगर कोई पालतू जानवर है तो वह अजीब सी हरकतें करने लगता है। लेकिन ऐसे भूकंप से दीवारें नहीं हिलतीं।

 

➨ 4-5 तीव्रता

आपको बता दें,4 से 4.9 की तीव्रता वाला भूकंप आने पर खिड़की के शीशे टूट सकते हैं। मेज के किनारे रखा गिलास फर्श पर गिर सकता है। छत के पंखे जल्दी हिलते हैं, लेकिन इतने भूकंप से भी घर की दीवारों को कोई नुकसान नहीं होता है।

 

➨ 5-6 तीव्रता

5-6 की तीव्रता वाला भूकंप कच्चे घर को नुकसान पहुँचा सकता है। अगर दीवारें कमजोर हों तो दरारें आ सकती हैं। भूकंप के बाद अपने घरों की जाँच करनी चाहिए।

➨ 6-7 तीव्रता

जब भूकंप की तीव्रता रिक्टर पैमाने पर 6 से अधिक होती है तो यह सबसे खतरनाक केटेगरी में आता है। इससे दीवारों में दरार पड़ने की संभावना बढ़ जाती है।यदि घर भूकंप रोधी नहीं है तो इस प्रकार के भूकंप में दूसरी या तीसरी मंजिल बुरी तरह से ख़राब हो सकती है।

 

➨ 7-8 तीव्रता

भूवैज्ञानिकों की नजर में जब भूकंप की तीव्रता रिक्टर पैमाने पर 7 से ज़्यादा होती है तो वह विनाशकारी हो जाता है। मज़बूत से मज़बूत घरों के लिए इतना तेज़ भूकंप खतरनाक साबित होता है। 7-8 तीव्रता का भूकंप शर्तिया तौर पर नाशलीला लेकर आएगा.

 

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