Dental Surgeon Railway Group D Peon Job: ईस्टर्न रेलवे जोन के सियालदह डिवीजन में एक दांत की डॉक्टर को रेलवे में चपरासी की नौकरी है. ये नौकरी उन्हें उनके पिता के की मृ्त्यु के बाद अनुकंपा के आधार पर मिली है. खास बात है कि डेंटल सर्जन देबोलिना बिस्वास इस नौकरी से खुश हैं. रेलवे सूत्रों का कहना है कि देबोलिना को दो बार ग्रुप सी में एग्जाम के लिए मौका दिया गया लेकिन वह दोनों बार एग्जाम क्वालीफाई नहीं कर पाईं.
नई दिल्ली.Dental Surgeon Railway Group D Peon Job: ईस्टर्न रेलवे जोन में एक ऐसा मामला आया है जहां एक डेंटल सर्जन को रेलवे ने ग्रुप डी में नौकरी दी है. दांत के डाक्टर को ये नौकरी पिता की मृत्यु के बाद अनुकंपा के रूप में मिली है. वैसे नियम ये है कि जब किसी सरकारी कर्मचारी की मृत्यु उसके कार्यकाल के दौरान हो जाती है तो उसके बेटे या बेटी को उसके पिता की रैंक से दो ग्रेड कम करके नौकरी दी जाती है. इस हिसाब से डेंटल सर्जन को ग्रुप सी में नौकरी मिलनी चाहिए थी लेकिन ऐसा नहीं हो सका. एक डेंटिस्ट को ग्रुप डी में नौकरी ज्वाइन करने पर कई तरह के सवाल उठाए जा रहे हैं.
दरअसल डेंटल सर्जन देबोलिना बिस्वास के पिता दिलीप कुमार बिस्वास रेलवे के सियादह डिवीजन में तैनात थे. इसी दौरान एक दिन उनकी मृत्यु हो गई. उसके बाद अनुकंपा के आधार पर या मृतक आश्रित के परिवार को उनकी जगह नौकरी दी जानी थी. उस समय उनकी बेटी देबोलिना बिस्वास डेंटल सर्जन का कोर्स पूरा कर चुकी थीं. इसलिए ये नौकरी उनको ऑफर की गई. खास बात ये है कि दांतों की डॉक्टर को रेलवे की नौकरी करने में कोई परेशानी नहीं है वह पूरी तरह खुश हैं.
इस मामले पर सियालदह रेलवे सूत्रों का कहना है कि मुझे भी उनके ग्रुप डी में नौकरी ज्वाइन करने पर आश्चर्य हुआ. लेकिन रेलवे सूत्रों के मुताबिक डेंटल सर्जन देबोलिना बिस्वास ग्रुप सी का एग्जाम क्वालीफाई नहीं कर पाईं. उनके एग्जाम में शामिल होने से पहले उन्हें पूरी तरह से गाइड किया गया था कि किस तरह के प्रश्न पूछे जाएंगे. किस प्रकार तैयारी करनी है और किस प्रकार का सिलेबस है.
रेलवे सूत्र ने आगे कहा कि जब देबोलिना बिस्वास पहली बार ग्रुप सी की परीक्षा पास नहीं कर पाईं तो उन्हें दोबारा एक फिर एग्जाम देने के लिए मौका दिया गया. लेकिन दूसरे प्रयास में भी उनका वही हाल रहा ढाख के तीन पात. यानी डेंटिस्ट देबोलिना बिस्वास दूसरी बार भी ग्रुप सी का एग्जाम क्वालीफाई नहीं कर पाईं. इसके बाद रेलवे के पास दूसरा कोई चारा नहीं था और इस तरह एक दांत के सर्जन को ग्रुप डी में नौकरी करनी पड़ी.