Earthquake: मंगलवार रात 6.5 तीव्रता का भूकंप आया और पूरे उत्तर भारत में दहशत फैल गई। भूकंप का केंद्र ताजिकिस्तान के साथ अफगानिस्तान की सीमा के पास काबुल से लगभग 300 किलोमीटर उत्तर में पूर्वोत्तर अफगानिस्तान में था। भूकंप के झटके दिल्ली-एनसीआर में भी काफी देर तक महसूस किए गए हैं। यह भूकंप बहुत खतरनाक था। मंगलवार रात आया भूकंप पृथ्वी की सतह से 187.6 किलोमीटर नीचे उत्पन्न हुआ। वैज्ञानिकों के मुताबिक, ऐसे में भूकंप ज्यादा दूर तक महसूस किए जाते हैं, यही वजह है कि बीती रात के भूकंप के झटके दिल्ली-एनसीआर के साथ-साथ पंजाब, राजस्थान और जम्मू-कश्मीर में भी महसूस किए गए।
तमाम वैज्ञानिक प्रगति के बावजूद अब तक भूकंप की भविष्यवाणी के लिए कोई निश्चित तरीका तैयार नहीं किया जा सका है। भूकंप एक प्राकृतिक खतरा है जिसकी भविष्यवाणी नहीं की जा सकती है। इसके लिए कोई पूर्व चेतावनी प्रणाली विकसित नहीं की गई है, इसलिए अरुणाचल प्रदेश की सीमा से लगे हिंदू कुश पहाड़ों से भूकंप कब आएगा, इस बारे में वैज्ञानिकों ने कुछ नहीं कहा है। हां, अलर्ट जरूर जारी किया गया है। क्योंकि यह काफी खतरनाक इलाका है।
वैज्ञानिकों के मुताबिक भूकंप आने से कुछ पल पहले इसका अहसास जरूर होता है, लेकिन यह बहुत ही कम समय होता है। क्योंकि जब भूकंप जमीन के नीचे होता है तो उसे धरातल तक पहुंचने में कुछ सेकेंड का समय लगता है। हालाँकि, भूकंपीय तरंगें प्रकाश की गति से बहुत धीमी गति से यात्रा करती हैं, मान लीजिए 5 से 13 किलोमीटर प्रति सेकंड। इसलिए, भूकंप आने से कुछ सेकंड पहले सूचित किया जा सकता है, लेकिन भूकंप के खतरों से पूरी तरह बचना असंभव है। समय बहुत प्रभावशाली नहीं है।
क्योंकि दिल्ली उत्तरी क्षेत्र में है और इसे जोन 4 का भूकंप कहा जाता है। यही वजह है कि दिल्ली-एनसीआर में साल में कई बार भूकंप के झटके महसूस किए जाते हैं। आबो-हवा में तब्दीली के चलते भूकंप केंद्र भी बदल रहे हैं। ऐसा टेक्टोनिक प्लेटों के खिसकने के कारण हो रहा है। आपको बता दें, दिल्ली हिमालय के करीब है, जो भारतीय और यूरेशियन टेक्टोनिक प्लेटों के मिलने से बनी है। इन प्लेटों में टकराव के चलते दिल्ली-एनसीआर, कानपुर और लखनऊ जैसे शहर सबसे संवेदनशील हैं। इससे आने वाले समय में बड़े भूकंप की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता है।
भूकंप को समझने से पहले आपको धरती के नीचे की प्लेटों की संरचना को समझने की जरूरत है। पूरी पृथ्वी 12 टेक्टॉनिक प्लेटों पर स्थित है। इन प्लेटों के टकराने से जो ऊर्जा निकलती है उसे भूकंप कहते हैं। दरअसल, धरती के नीचे ये प्लेटें बेहद धीमी रफ्तार से घूमती या खिसकती हैं। हर साल 4-5 मिमी जगह से खिसक जाती है। इस दौरान कुछ प्लेटें दूसरों के नीचे सरक जाती हैं और कुछ गायब हो जाती हैं। इस दौरान जब प्लेट आपस में टकराती हैं तो भूकंप के हालात बन जाते है।
आपको बता दें, भूकंपों को मापने और उनके खतरे के अंदाज़ा करने वाले पैमाने को रिक्टर स्केल कहा जाता है। भूकंपीय तरंगों की तीव्रता से पता चलता है कि भूकंप कितना ख़तरनाक था और इसका केंद्र कहाँ था। इसकी खोज अमेरिकी वैज्ञानिक चार्ल्स एफ रिक्टर ने की थी, लिहाज़ा उनके नाम पर इस यंत्र को रिक्टर स्केल का नाम दिया गया। इससे तरंगों की बुनियाद पर भूकंप की तीव्रता और ख़तरे का पता लगाया जाता है।
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