Delhi Girl Gangrape in Indraprastha Park: दिल्ली के मशहूर इंद्रप्रस्थ पार्क में हैवानों ने एक लड़की को अपनी हवस का शिकार बना डाला. हालांकि, दिल्ली में ऐसा पहली बार नहीं हुआ बल्कि यह अब एक आम बात बन गई है. महिला सुरक्षा को लेकर सरकारें वादा तो खूब करती हैं लेकिन अपराध या अपराधियों में कोई भी कमी देखने को नहीं मिली है.
नई दिल्ली. दिल्ली में सरकार के सैकड़ों महिला सुरक्षा के वादों के बावजूद आए दिन बलात्कार के मामले अखबारों की सुर्खियां बने रहते हैं. कई लोगों के लिए तो ये इतनी आम खबरें हो गईं कि वे पढ़ने तक की भी जहमत नहीं उठाते. निर्भया के दौरान काफी विरोध हुआ, लोग सड़कों पर उतर गए लेकिन क्या हुआ? क्या अपराध रुके, नहीं लेकिन अपने वादों के साथ सरकारें जरूर बदल गईं. 15 सितंबर 2019 की शाम राजधानी के मशहूर इंद्रप्रस्थ पार्क में घूमने पहुंची उस बेटी का क्या कसूर था जो चार दरिंदों ने उसे अपनी हवस का शिकार बना डाला. लड़की कहती रही मुझे छोड़ दो लेकिन एक के बाद एक आरोपी उसकी अस्मत लूटते रहे.
बलात्कार जैसा अपराध पीड़ितों के मानसिक संतुलन को तोड़ देता है. किसी भी लड़की के लिए उसकी इज्जत सबकुछ होता है, अगर वही छिन जाए तो उसे अपनी जिंदगी से नफरत होने लगती है. ऊपर से समाज में संस्कृति का ढोंग कर रहे ठेकेदार उनका जीना दुश्वार कर देते हैं. कई ऐसे मामले भी सामने आ चुके हैं जहां रेप की पीड़ितों ने अपनी जान दे दी. देश में निर्भया, गुड़िया, कठुआ और न जाने कितने ऐसे केस हो चुके हैं लेकिन अपराधियों की मानसिकता में कोई बदलाव नहीं है.
आकंड़ें इतने खौफनाक कि आपको हैरान कर दें
एनसीआरबी की एक रिपोर्ट के अनुसार, देश में हर रोज औसतन 106 बलात्कार के मामले होते हैं जिसमें 1 घंटे की भीतर ही 4 ज्यादा बेटियां हैवानों की हवस का शिकार होती हैं. आकड़ें तो यह भी बताते हैं कि साल 2012 से 2016 के बीच बच्चियों के साथ रेप के मामलों में दो गुणा बढ़ोतरी हुई. निर्भया रेप कांड जैसे मामलों के बाद दिल्ली में अपराध घटे नहीं और ज्यादा बढ़ गए.
साल 2019 के अगस्त महीने तक करीब 1400 लड़कियों के साथ रेप के मामले सामने आ चुके हैं. वहीं साल 2018 के दिल्ली पुलिस के आकंड़ों पर नजर डालें तो बीते साल रेप के 2 हजार 43 केस दर्ज हुए जबकि साल 2017 में 2 हजार 59 मामले दर्ज किए गए और साल 2016 में 1996 रेपकेस पुलिस ने दर्ज किए.
सरकार वादें सिर्फ चुनाव में करती हैं
दिल्ली में पुलिस व्यवस्था केंद्र सरकार के हाथ में है. फिर भी यह राज्य और केंद्र दोनों सरकार की जिम्मेदारी होती है कि राजधानी में महिलाएं सुरक्षित रहें. निर्भया के समय यूपीए की मनमोहन सरकार केंद्र में थी और शीला दीक्षित की कांग्रेस सरकार दिल्ली में. उस दौरान विपक्षी दल भाजपा ने जमकर विरोध जताया. अन्ना आंदोलन से चमके आप मुखिया अरविंद केजरीवाल ने भी रोष जताया.
जब अरविंद केजरीवाल ने आम आदमी पार्टी बनाई तो चुनाव में सबसे पहले महिला सुरक्षा के मुद्दे को रखा. सिर्फ केजरीवाल ही नहीं बीजेपी ने भी कांग्रेस पर जमकर हमला बोल. समय बदला और केंद्र में भाजपा की नरेंद्र मोदी और दिल्ली में आम आदमी पार्टी की केजरीवाल सरकार आ गई लेकिन महिलाओं पर अपराध लगातार जारी रहे. यानी सभी सियासतदारों ने सालों से चुनाव में महिला सुरक्षा का सिर्फ मुद्दा उठाया और जीतकर चुप बैठ गए.