Delhi Assembly Election 2020 Public Agenda: दिल्ली में 8 फरवरी को विधानसभा चुनाव होंगे, वोट डालने से पहले दिल्ली की असल समस्या जान लीजिए

नई दिल्ली:  देश की राजधानी दिल्ली में विधानसभा चुनावों की तारीख की घोषणा कर दी गई है. 8 फरवरी 2020 को वोटिंग होगी और 11 फरवरी को मतगणना के बाद नतीजे आ जाएंगे. आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल हों या भारतीय जनता पार्टी के मनोज तिवारी सभी एक-दूसरे पर हमलावर हैं. कांग्रेस तो जैसे तीसरे नंबर की ही लड़ाई लड़ रही है. लेकिन नेताओं के बयानबाजी के दौर में दिल्ली के असली मुद्दे कहीं खो गए हैं. दिल्ली की जनता को यहां के वास्तविक मुद्दों की तरफ सोचना चाहिए. नेताओं को इसके बाद ही इन विषयों पर बात करने को मजबूर किया जा सकेगा. आइए समझने की कोशिश करते हैं कि देश की राजधानी दिल्ली के असली चुनावी मुद्दे क्या होने चाहिए.

1.जानलेवा है दिल्ली का प्रदूषण: दिल्ली देश की राजधानी है. यहां गर्व करने वाली ऐतिहासिक विरासत है तो देश की राजनीति का गढ़ भी. इसके बावजूद दिल्ली पिछले कुछ वर्षों से वायू प्रदूषण के जानलेवा हो जाने की वजह से चर्चा में है. ग्रीनपीस की रिपोर्ट ने दिल्ली को 2019 में दुनिया की सबसे प्रदूषित राजधानी बताया है. वहीं एक शोध के मुताबिक दिल्ली में रोजाना वायू प्रदूषण की वजह से 80 लोगों की मौत होती है.

आईआईटी कानपुर की रिपोर्ट बताती है कि दिल्ली में एक सामान्य आदमी के फेफड़े को उतना ही नुकसान होता है जितना रोजाना 25 सिगरेट पीने वाले व्यक्ति को. दिल्ली की सियासत में प्रदूषण सबसे बड़ा मुद्दा होना चाहिए था. मगर अफसोस सियासी आरोप-प्रत्यारोप में दिल्ली वालों के जान के सवाल को नजरअंदाज कर दिया गया है.

2.एक नदी थी यमुना: यकीन मानिए ये लिखते हुए बहुत तकलीफ हो रही है. जब दिल्ली को बसाया गया तो उसके पीछे एक बड़ी वजह थी यमुना नदी. शहर बिना नदी के जीवित नहीं रह सकता था. लेकिन आजादी के बाद हमने दिल्ली की जीवनरेखा यमुना नदी पर ही प्रहार करना शुरू कर दिया. दिल्ली का सारा औधोगिक कचरा, घरेलू कचरा यमुना में प्रवाहित होता रहा. नदी के कछार का अतिक्रमण कर लिया गया.

यमुना को ऐसी स्थिति में पहुंचा दिया गया कि आज लोग यमुना को नाला कहने लगे हैं. मेट्रो के बंद वातानूकुलित डब्बे भी जब यमुना के ऊपर से गुजरते हैं तो भी बदबू से पता चल जाता है हम यमुना के ऊपर से गुजर रहे हैं. यमुना नदी के प्रदूषण ने आज उसे दिल्लीवालों के जेहन से भी मिटा दिया है. दिल्ली दुनिया का इकलौता शहर है जहां एक नदी बहती तो है लेकिन कोई उसके किनारे नहीं जाता.

3. ट्रैफिक और पार्किंग की विकराल होती समस्या: दिल्ली में गाड़ियों की संख्या में पिछले एक दशक में गजब का उछाल आया है. सैकड़ों फ्लाईओवर बनने के बावजूद ट्रैफिक जाम दिल्ली की हर सड़क, गली, मोहल्ले में महीनों से खड़ी गाड़ियों ने अतिक्रमण किया हुआ है. गाड़ी खरीदने के लिए पार्किंग स्पेस की अनिवार्यता नहीं रहने के कारण लोगों ने बड़ी संख्या में गाड़ियां ऐसे इलाकों में खड़ी कर रखी हैं जो पार्किंग के लिए आरक्षित नहीं हैं.

दिल्ली में अवैध रूप से पार्किंग में खड़ी गाडि़यों को अगर हटा दिया जाए तो ट्रैफिक की समस्या आधी रह जाएगी. मोहल्लों और कॉलोनियों में भी काफी जगह खाली हो सकती है. नागरिकों का गैरजिम्मेदाराना रवैया भी दिल्ली की ट्रैफिक और पार्किंग समस्या के पीछे बड़ा कारण है. वहीं सालों से पड़ी और कचरा बन चुकी गाड़ियोें को हटवाने का इंतजाम करना भी जरूरी है. पुरानी जर्जर गाड़ियों से दिल्ली की आबो-हवा भी खराब हो रही है. 

4. दिल्ली में बढ़ती नशाखोरी: देश की राजधानी दिल्ली में हर तरह के मादक द्रव्यों, पदार्थों का चलन तेजी से बढ़ा है. चाहे स्कूल जाने वाले छात्र हों या कॉलेज में पढ़ने वाले युवा, नशाखोरी का चलन दिल्ली में आम हो चुका है. दिल्ली के सीमापुरी इलाके में एक सर्वे में चौंकाने वाले आंकड़े आए थे. इस इलाके के लगभग 80 फीसदी बच्चे ड्रग्स के आदी हो चुके हैं. इस सर्वे में 7 साल के बच्चे भी शामिल थे.

नशाखोरी की लत गरीब से लेकर अमीर तक सबको अपनी जद में ले चुका है. सड़कों पर कचरा बीनते बच्चें हों या संपन्न घरों से ताल्लुक रखने वाले युवा, अधिकांश किसी न किसी नशे की लत का शिकार हैं. दिल्ली में खुलेआम नशे का कारोबार होता है. ऐसे कई इलाके हैं जिनके बारे में आम लोगों को पता है लेकिन पता नहीं किन वजहों से पुलिस की नजर इन पर नहीं पड़ती.

5. अनियमित कॉलोनियों का नारकीय जीवन: 1962 में दिल्ली में कुल 112 अनियमित कॉलोनियां थीं जिसमें करीब 2 लाख लोग रहते थे. 2019 में ऐसी कॉलोनियां की संख्या 1,797 हो चुकी है. इन इलाकों मे रहनेवालों की संख्या अब लगभग 50 लाख हो चुकी है. दिल्ली की लगभग 30 फीसदी आबादी अनियमित कॉलोनियों में रहती है. इन कॉलोनियों में बाहर से आने वाले बसते गए.

चुनावों के पहले इन कॉलोनियों को नियमित करने का निर्णय जरूर ले लिया गया है लेकिन असल में इसका होगा क्या यह तो चुनाव के बाद ही पता चलेगा. इन कॉलोनियों में बुनियादी सुविधाएं तक नहीं हैं. दिल्ली के किसी झुग्गी में जाएं जिसे सभ्य शब्दों में अनियमित कॉलोनी कहते हैं आपको दिल्ली के वर्ल्ड क्लास शहर होने के दावे पर हंसी आने लगेगी. इन चुनावों में दिल्ली की 30 फीसदी आबादी का नारकीय जीवन एक जरूरी मुद्दा होना चाहिए.

6. कचरे के पहाड़ में दबती दिल्ली: दिल्ली में प्रकृति ने तो कोई पहाड़ नहीं बनाया लेकिन दिल्लीवालों ने यहां कचरे के कई पहाड़ बना दिए हैं. दक्षिणी दिल्ली के ओखला लैंडफिल साइट पर कूड़े के पहाड़ की ऊंचाई करीब 55 मीटर है.1996 में इसकी शुरुआत की गई थी.ये जगह करीब 32 एकड़ में बनी है. इसके अलावा गाजीपुर लैंडफिल साइट की ऊंचाई 45 मीटर है. 71 एकड़ में फैली इस जगह को 1984 में डंपिंग ग्राउंड के लिए चिन्हित किया गया था. इसी तरह करीब 51 एकड़ में भलस्वा लैंडफिल साइट को 1994 में शुरू किया गया.

यहां पर कूड़े का पहाड़ करीब 40 मीटर ऊंचा है. अभी पिछले दिनों गाजीपुर में कचरे के पहाड़ में दबने से दो लोगों की मौत भी हो गई थी. कचरे का पहाड़ आस-पास रहने वाले हजारों लोगों को रोज बीमार कर रहा है. नेचर पत्रिका ने अपने नवंबर, 2013 के अंक में कहा था कि भारत तेजी से दुनिया का सबसे बड़ा कचरा उत्पादक देश बनने की राह पर बढ़ रहा है. द एनर्जी एंड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट का अनुमान है कि वर्ष 2047 तक भारतीय शहरों में कचरे का उत्पादन पांच गुना बढ़ जाएगा. अगर जल्द कुछ नहीं किया गया तो दिल्ली में रहना और अधिक जानलेवा हो जाएगा.

7. पर्यावरण है तो हम हैं: दिल्ली के वायू प्रदूषण का जिक्र बार-बार होता है लेकिन दिल्ली में जल, वायू और ध्वनि प्रदूषण भी चिंताजनक स्थिति में है. आज दिल्ली के किसी इलाके का ग्राउंड वाटर पीने लायक नहीं है. ध्वनि प्रदूषण को प्रदूषण मानने तक को हम तैयार नहीं हैं. हर तरफ शोर-शराबा, गाड़ियों के हॉर्न से लोगों के सुनने की क्षमता पर असर हो रहा है. दिल्ली में प्रदूषण से निपटने के लिए ऑड-इवन फॉर्मूला भी अपनाया गया लेकिन यह कवायद भी सफल नहीं हो पाई.

यह भी हैरान करने वाली बात है कि दिल्ली में एक भी एक्टिव साईकिल ट्रैक नहीं है. देश की राजधानी में साईकिल सवारों की संख्या भले निरंतर कम हुई हो लेकिन आज भी बड़ी संख्या में लोग साईकिल का इस्तेमाल अपने कामकाज की जगह पर जाने के लिए करते हैं. दुर्भाग्य से हम दिल्ली को साईकिल फ्रेंडली शहर नहीं बना पाए हैं. दिल्ली में जो भी साईकिल चलाता है अपनी जान जोखिम में डालकर चलाता है. पर्यावरण फ्रेंडली यातायात साधनों पर अगर दिल्ली में जल्द कोई गंभीर कदम नहीं उठाया गया तो हम दिल्ली की बर्बादी पर आंसू बहाने के अलावा कुछ नहीं कर पाएंगे.

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Delhi Assembly Election 2020 Date: दिल्ली विधानसभा चुनावों की तारीख की चुनाव आयोग ने की घोषणा, 8 फरवरी को वोटिंग, 11 फरवरी को मतगणना और नतीजे

Aanchal Pandey

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