Delhi Anti CAA Protest Violence: मस्जिद के मौलवी और मंदिर के पंडित निकलकर क्यों समाज को नहीं देते शांति और भाईचारे की सीख?

Delhi Anti CAA Protest Violence: दिल्ली में सीएए समर्थकों और विरोधियों के भिड़ने पर हुई हिंसा से पूरी राजधानी दहशत में है. क्योंकि एक कानून का विरोध या समर्थन अब दो समुदायों के बीच का दंगा बनता जा रहा है. ऐसे में जरूरत है कि मंदिरों से पंडित और मस्जिदों से मौलवी निकलकर शांति और भाईचारे का संदेश दें.

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Delhi Anti CAA Protest Violence: मस्जिद के मौलवी और मंदिर के पंडित निकलकर क्यों समाज को नहीं देते शांति और भाईचारे की सीख?

Aanchal Pandey

  • February 25, 2020 3:34 pm Asia/KolkataIST, Updated 5 years ago

नई दिल्ली. दिल्ली में सीएए समर्थक और विरोधी भिड़ गए. जमकर पत्थरबाजी भी हुई. एक युवक तो पिस्टल लेकर सड़क पर कूद गया और 8 राउंड गोलियां भी चलाईं. हिंसा में एक हेड कॉन्सटेबल की मौत हो गई. 8 आम नागरिक भी अपनी जान गंवा बैठे. किसी कानून के समर्थन और विरोध में होने वाले इस झगड़े ने धार्मिक रूप ले लिया.

अब हालात बेकाबू है, इतनी बेकाबू की सड़कों पर निकलने से पहले भी देश की राजधानी में लोग डर रहे हैं. क्या इस लड़ाई का अंत नहीं होगा, क्या ऐसे ही धर्म के चक्कर में बेगुनाह पुलिसर्मी और लोग अपनी जान गवाएंगे.

आखिर नेता, पुलिस या प्रशासन इस आग को शांत करने के लिए दोनों धर्म के गुरुओं को क्यों नहीं आगे ला रहे हैं. या शांति की बात करने वाले आम नागरिक उन्हें मंदिर- मस्जिद से बाहर क्यों नहीं ला रही है. हो सकता है धर्म के नाम पर लड़ने वाले लोग अपने पंडित या मौलाना की बात को समझ जाए. क्योंकि चाहे धर्म कोई भी हो, हिंसा हर किसी में गलत बताई गई है.

आग में झुलसी दिल्ली में पुलिस की लाठीचार्ज हिंसा को रोकने के लिए काफी है?

पूरी दिल्ली आग में झुलसी है. सीएए विरोधियों का प्रदर्शन शाहीन बाग से शुरू होकर दिल्ली के कई इलाकों में हो गया. जाफराबाद, सीलमपुर, खजूरी, भजनपुरा, मौजपूर समेत कई इलाकों में सीएए विरोधी प्रदर्शन शुरू हुए. प्रदर्शनकारियों ने सड़कें जाम की. सीएए समर्थकों ने इसका विरोध किया और वे भी सड़कों पर उतर गए.

हालात तनावपूर्ण बनते चले गए. पुलिस बीच-बीच मौका पाकर लाठीचार्ज और आंसू गैस के गोले छोड़ती हुई नजर भी आई लेकिन आग पूरी तरह शांत नहीं हुई. दोनों समुदायों के असमाजिक तत्वों को पुलिस, कानून किसी का भी कोई खौफ नहीं नजर आया. एक दूसरे के घरों में घुसकर मारपीट की. सड़कों पर खड़े वाहनों को आग लगा दी गई.

पुलिस की गाड़ियां फूंक दी गई. बार- बार लोगों से शांति की अपील की गई लेकिन किसी ने कोई बात नहीं मानी. पुलिस अब भी आधी से ज्यादा दिल्ली को छावनी बना चुकी है लेकिन हालात पूरी तरह काबू नहीं है. अब सवाल भी यही है कि क्या पुलिस फोर्स, ऐसे दंगों को रोकने के लिए काफी है.

हिंदू इलाकों में पंड़ितों और मुस्लिम इलाकों में मौलवियों को शांतिदूत बनाकर भेजें

जब दोनों समुदाय धर्म के लिए हिंसा पर उतारू हैं तो क्यों नहीं हिंदू इलाकों में पंडितों और मुस्लिम इलाकों में मौलवियों को शांतिदूत बनाकर भेजा जाए. केंद्र या राज्य सरकार इस बात पर चर्चा क्यों नहीं कर रही. शायद हो सकता है कि अपने धर्म के सम्मानित व्यक्ति की शर्म थोड़ी सी लोगों में इंसानियत जगा दे.

अगर पंडित और मौलवी मिलकर शांति मार्च निकालें तो कितनी सुंदर और शांति की तस्वीर दिल्लीवासियों के सामने बनेगी. और वक्त को देखते हुए इसकी जरूरत भी नजर आती है.

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