गोवर्धन मठ पुरी के पीठाधीश्वर का ऐलान: काशी में मंदिरों के संरक्षण के लिए जल्द आयोजित किया जाएगा सम्मेलन

वाराणसी। गोवर्धन मठ पुरी पीठाधीश्वर जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने बुधवार को ज्ञानवापी मामले को लेकर बैठक की। इस दौरान स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने घोषणा की कि सभी शंकराचार्यों, प्रमुख पीठों के महंतों और धर्मगुरुओं का एक सम्मेलन काशी में मंदिरों के संरक्षण के लिए आयोजित किया जाएगा। जल्द ही तारीख की घोषणा की […]

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गोवर्धन मठ पुरी के पीठाधीश्वर का ऐलान: काशी में मंदिरों के संरक्षण के लिए जल्द आयोजित किया जाएगा सम्मेलन

Pravesh Chouhan

  • June 1, 2022 6:55 pm Asia/KolkataIST, Updated 2 years ago

वाराणसी। गोवर्धन मठ पुरी पीठाधीश्वर जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने बुधवार को ज्ञानवापी मामले को लेकर बैठक की। इस दौरान स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने घोषणा की कि सभी शंकराचार्यों, प्रमुख पीठों के महंतों और धर्मगुरुओं का एक सम्मेलन काशी में मंदिरों के संरक्षण के लिए आयोजित किया जाएगा। जल्द ही तारीख की घोषणा की जाएगी।

गोवर्धन मठ पुरी पीठाधीश्वर जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने बुधवार को ज्ञानवापी मामले को लेकर बड़ा बयान दिया। वाराणसी के अस्सी मठ में हिंदू राष्ट्र संगोष्ठी के बाद आयोजित संवाददाता सम्मेलन में उन्होंने कहा कि ज्ञानवापी में सिर्फ शिवलिंग है। वह आदि विशेश्वर हैं। पूरी काशी शिवलिंग है, किसी को संशय नहीं होना चाहिए।

जल्द हिंदूओं को सौंपा जाए ज्ञानवापी

निश्चलानंद सरस्वती ने आगे कहा कि ज्ञानवापी परिसर जल्द से जल्द हिंदुओं को सौंप दिया जाए। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि वह आगरा के ताजमहल को तेजो महल घोषित करने और मक्का को मक्केश्वर महादेव बनना चाहिए। मैं जो कह रहा हूं वह एक अभियान है। इस पर सनातन धर्मियों को कोई संदेह नहीं होना चाहिए। ज्ञानवापी के पूर्व रूप को एक बार फिर असली रूप में लाया जाना चाहिए। मानवाधिकारों की सीमा में दुनिया की कोई ताकत हमें इससे वंचित नहीं कर सकती।

आगे कहा कि कहा कि अब हम सभी स्वतंत्र भारत में हैं और हमें अपने पूर्व मानवाधिकारों को स्थापित करने का अधिकार है। इसके साथ ही ज्ञानवापी से जुड़े एक सवाल के जवाब में स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने मुस्लिम समुदाय से अपील की और साथ ही सलाह भी दी।

मुस्लिमों को देना चाहिए मानवता का परिचय

उन्होंने कहा कि मुस्लिम समुदाय को अपने पूर्वजों द्वारा मानवाधिकारों के उल्लंघन में उठाए गए कदमों को आदर्श नहीं मानना ​​चाहिए। मुस्लिम समाज को अपने पूर्वजों की गलतियों को स्वीकार कर सहिष्णुता दिखानी चाहिए। मानवता का परिचय देना और सबके साथ-साथ चलना चाहिए।

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